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Why do we feel ashamed when we have our periods: पीरियड्स एक प्राकृतिक और स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया जो हर लड़की और महिला के जीवन का हिस्सा है। फिर भी, आज भी समाज में इसे लेकर चुप्पी, झिझक और शर्म का माहौल बना हुआ है। क्या आपने कभी सोचा है कि एक सामान्य बायोलॉजिकल प्रोसेस के लिए शर्म क्यों महसूस होती है? क्यों इसे "गंदा" या "अशुभ" माना जाता है? आइए, इस सामाजिक कलंक को समझें और इस पर खुलकर बात करें।
पीरियड्स आने पर शर्म क्यों आती है?
सदियों पुरानी गलत धारणाएँ
भारतीय समाज में periods को लेकर कई तरह की अंधविश्वासी मान्यताएँ रही हैं जैसे कि पीरियड्स के दौरान महिलाएँ "अशुद्ध" होती हैं, उन्हें मंदिर जाने या पूजा करने की इजाजत नहीं होती, यहाँ तक कि किचन में जाने तक पर पाबंदी होती है। ये विचार सदियों से चले आ रहे हैं और आज भी कई घरों में इन्हें माना जाता है।
पीरियड्स पर खुलकर बात न करना
अक्सर लड़कियों को पीरियड्स के बारे में बात करने से रोका जाता है। sanitary napkin खरीदते समय उसे काले पन्नी में छुपाया जाता है, या फिर इसे "वो दिन" या "मासिक धर्म" जैसे कोड वर्ड्स से बुलाया जाता है। जब हम किसी चीज़ को छुपाते हैं, तो वह "शर्मिंदगी" का विषय बन जाता है।
पुरुष प्रधान समाज का दृष्टिकोण
एक पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के शरीर और उनकी प्राकृतिक प्रक्रियाओं को लेकर गलत धारणाएँ फैलाई गई हैं। पीरियड्स को मर्दों की बात नहीं मानकर इसे और भी गोपनीय बना दिया गया है। जब तक पुरुष इसके बारे में जानेंगे नहीं, समझेंगे नहीं, तब तक यह टैबू बना रहेगा।
यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है
जिस तरह सांस लेना, खाना या सोना शरीर की जरूरत है, उसी तरह पीरियड्स भी एक नॉर्मल बायोलॉजिकल प्रोसेस है। इसमें शर्मिंदा होने जैसा कुछ नहीं है।
स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है
पीरियड्स के दौरान होने वाली समस्याएँ जैसे क्रैम्प्स, अनियमितता या PCOS जैसी स्थितियों के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। चुप रहने से समस्याएँ बढ़ती हैं, जबकि जागरूकता से बेहतर इलाज संभव है।
समाज बदल रहा है
आजकल कई सेलिब्रिटीज़, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और युवा पीढ़ी पीरियड्स पर खुलकर बात कर रही है। सेनेटरी पैड्स पर टैक्स हटाने जैसे कदम भी सही दिशा में उठाए जा रहे हैं।
पीरियड्स शर्म का नहीं, गर्व का विषय होना चाहिए, क्योंकि यही प्रक्रिया नई जिंदगी को जन्म देने का आधार है। अब समय आ गया है कि हम इस टैबू को तोड़ें और खुलकर बात करें। "पीरियड्स शर्म नहीं, सशक्तिकरण की निशानी हैं
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