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हाल ही में एक आदमी ने अपनी बीवी से डायवोर्स लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दी है। उसका कहना है कि उसकी पत्नी बिना उसकी इजाजत के बार-बार लंबे समय के लिए उसे छोड़कर अपने पेरेंट्स के घर चली जाती है। बरेली के फैमिली कोर्ट ने इस अर्जी को मंजूर कर दिया था। लेकिन पत्नी ने इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की।
कोर्ट की जजमेंट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी जजमेंट में कहा कि बिना इजाजत के अपने पेरेंट्स के घर जाना अपने पति को छोड़ना या निर्दयता नहीं है।
यह जजमेंट हमारे मन में कई सारे सवाल उठाती है। क्या एक महिला शादी के बाद अपनी जिंदगी को आजादी से जीने का अधिकार खो देती है? क्या शादी के बाद अपने फैसलों के लिए पति की इजाजत जरूरी है? क्या एक महिला शादी के बाद अपने पेरेंट्स और फैमिली से बिना पति की इजाज़त के मिल नहीं सकती? क्या वह अपने पेरेंट्स पर खर्चा नहीं कर सकती?
ऐसा माना जाता है की शादी के बाद एक महिला को अपनी जिंदगी अपने पति के परिवार के लिए अर्पण करनी होती है। उसकी प्रायोरिटी उसका पति और उसका परिवार होना चाहिए। अपने माता पिता और अपने परिवार के बारे में सोचने पर उसे सेल्फिश माना जाता है। लेकिन क्या शादी के बाद अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाना गलत है? जिम्मेदारी उठाना तो दूर उनसे ज़्यादा मिलना और बात करना भी गलत ही माना जाता है।
शादी के बाद पेरेंट्स से मिलना हर महिला का अधिकार
शादी के बाद महिला को एक संपत्ति की तरह ट्रीट किया जाता है। एक शारीरिक संपत्ति जो घर का काम करने और घर के चिराग को पैदा करने के लिए पति द्वारा ब्याह कर घर में लाई गई है। उसकी शरीर और क्रियाओं पर पति का अधिकार है।
भारतीय घरों में ऐसा माना जाता है अगर किसी बहू को शादी करके घर लाया गया है तो वह उसकी जिंदगी के सारे फैसले ले सकते हैं। वह क्या खाएगी, क्या पहनेगी, कहां बैठेगी, कैसे चलेगी यह सब फैसले अब वही करेंगे। और अगर वह इन सब चीजों के लिए इजाजत ना लें और अपनी मर्जी से करें तो उसे बेशर्म और असंस्कारी कहा जाता है।
बेटी है पराया धन ?
शादी के बाद महिला अपने पेरेंट्स से मदद की उम्मीद भी नहीं कर सकती। क्योंकि उसके पेरेंट्स भी इसी पुरुष प्रधान सोच का हिस्सा है। उनके लिए शादी के बाद लड़की पराया धन हो जाती है। शादी के बाद उसकी जिंदगी पर उसके ससुराल वालों का हक है। वे उसे जैसे रखें उसे रहना होगा। अगर वह उसे मारे तो उसे चुपचाप सहना होगा। क्योंकि उसकी जिंदगी के सभी फैसले अब उन्हीं के हाथ में हैं। और अपनी बेटी पर पेरेंट्स का कोई हक नहीं।
आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि शादी के बाद लड़की बेटी नहीं बहू हो जाती है। लेकिन यह गलत है। शादी के बाद भी वह बेटी ही रहती है और उसकी अपने परिवार की तरफ से उतनी ही जिम्मेदारियां भी होती है। उसका अपनी जिंदगी पर पूरा हक है और उसे अपने पेरेंट्स से मिलने और बात करने का पूरा अधिकार।