Why Does Society Want To Make Only Women Responsible?: यह धारणा हमारे समाज में सदियों से चली आ रही हैं जहाँ माता-पिता बच्चों को जन्म देते हैं लेकिन पैदा होते ही जब पता चलता है कि लड़की हुई है या लड़का तो तभी से लिंग के आधार पर उनका जीवन तय कर दिया जाता है। लड़का है तो धूम-धाम से सब कुछ किया जाता खुशियाँ मनाई जाती हैं और अगर लड़की है तो अगली बार लड़का हो जायेगा यह तय कर दिया जाता है और इसके बावजूद भी लड़की को ही हर चीज के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
क्यों समाज सिर्फ महिलाओं को ही बनाता है हर चीज के लिए जिम्मेदार
भारतीय समाज में अगर लड़का न हो तब भी लड़की का दोष कि "ये ना हुई होती तो लड़का हो जाता" या फिर महिला का दोष कि "एक लड़का नहीं पैदा कर पाई", प्रसव के दौरान महिला को समस्या हो जाये या मौत हो जाए तो "आते ही अपनी लड़की अपनी माँ को खा गई", शादी न हो तो लड़की जिम्मेदार, रेप हो जाये तो लड़की जिम्मेदार और लड़का बिगड़ जाए तो माँ जिम्मेदार। हर जगह महिलाएं ही जिम्मेदार हैं।
यह आज से नहीं सदियों से चलता चला आ रहा है और हर समाज की कहानी है। आज भी लोग लड़कियों को कोख भी में ही मार देते हैं और इसमें भी गलती लड़की की। "लड़की न होती तो रख लेते"। आखिर यह कब तक चलेगा। लोग अपने आप को जिम्मेदार मानने और समाज खुद को इसके लिए जिम्मेदार मानने को तैयार क्यों नहीं होता है।
जब कोई भी लड़का बिगड़ जाए तो लोग यह कह देते हैं कि शादी कर दो सुधार जायेगा। आखिर क्यों यह जिम्मेदारी लड़की पर है कि लड़का बिगड़ गया है तो शादी करके आने वाली लड़की उसे सुधारे, लोगों को यह समझने की जरूरत है कि लड़कियां सुधारने और जिम्मेदारी उठाने के लिए ही नहीं बनी हैं। क्यों समाज यह नहीं डिसाइड करता कि पहले लड़का सुधर जाये तब शादी करेंगे। ताकि आने वाली लड़की को समस्या न हो। समाज को ऐसा करने की जरूरत है।
किसी लड़की का रेप हो जाए तो समाज कहता है कि इसके लिए लड़की जिम्मेदार है उसने छोटे कपड़े पहने होंगे, वह बाहर घूमने गई थी, उसने शराब पी होगी, वगैरह-वगैरह। आखिर क्यों उसने चाहे जो पहना था, चाहे जहाँ गई थी, उसके साथ रेप होने पर वह कहाँ से जिम्मेदार है? जिम्मेदार वह व्यक्ति है जिसने एक लड़की के साथ रेप किया है।
अगर किसी लड़की को उसके ससुराल वाले प्रताड़ित करते हैं और वह घर छोडकर चली आती है तब भी वह जिम्मेदार की गलती उसकी होगी या उसके घरवालों ने दहेज कम दिया था तो उसे कोम्प्रोमाइज़ करने की जरूरत थी। लेकिन उसे तो घर सम्भालना ही नहीं आता। समाज यह क्यों नहीं कहता कि लड़के के परिवार वाले गलत थे जिन्होंने लड़की को परेशान किया।
ऐसे ना जाने कितने उदाहरण मौजूद हैं हमारे बीच इन मानदंडों को बदलने के प्रयासों के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। शिक्षा महत्वपूर्ण है और समाज के लिए यह समझना जरूरी है कि अन्य लोगों की तरह ही महिलाएं भी इंसान हैं और उन्हें इस तरह से हर बात के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत है। मीडिया और समाज द्वारा मिलकर पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को चुनौती देने वाले सकारात्मक रोल मॉडल को बढ़ावा देने से समय के साथ सामाजिक धारणाओं को बदलने में मदद मिल सकती है।