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Single Mothers: क्यों सपोर्ट करने के बजाय समाज उन्हें बुरा समझता है?

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भारत में सिंगल मदर्स को बच्चे को पालने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह परेशानियां केवल सामाजिक नहीं बल्कि कानूनी भी है। बच्चे के लिए डाक्यूमेंट्स में सबसे पहले उसके पिता का नाम मांगा जाता है। लेकिन जब एक बच्चे को मां अकेले पाल सकती है तो डाक्यूमेंट्स में उसके नाम की जगह पिता के नाम की जरूरत क्यों होती है?

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गलत नजरों से देखते हैं सिंगल मदर्स को

आपने कई लोगों को कहते सुना होगा अकेली लड़की खुली तिजोरी के समान होती है। एक लड़की का शरीर उस की अमानत है दूसरों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला कोई सम्मान नहीं। किसी भी प्रकार से लड़की का अकेले होना और उसके साथ किसी मर्द का ना होना लोगों द्वारा स्वीकार्य नहीं होता।

लोग सिंगल मदर्स को भी इसी नजरिए से देखते हैं। वे मानते हैं कि डायवोर्स के बाद अगर एक महिला अपने बच्चे को अकेले पाल रही है तो इसका मतलब है उसमें कोई कमी थी जिसके कारण उसके पति ने उसे छोड़ दिया। बेशक महिला ने अपने पति को क्यों ना छोड़ा हो लेकिन समाज तो हमेशा महिलाओं को ही निशाना बनाता है। 

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उसे यह लगता है कि एक महिला कभी खुद से अकेले रहने का सोच नहीं सकती क्योंकि यह उसके बस का नहीं है। और डायवोर्स तो वैसे भी इस समाज में किसी गंदगी से कम नहीं है। अगर कोई महिला तलाकशुदा है तो उन्हे फर्क नहीं पड़ता उसका पद क्या है वह लोगों की नजरों में पूरी बन ही जाती है।

सिंगल हूं अकेली नहीं

लोग समझते हैं कि अगर कोई महिला बच्चे को अकेले पाल रही है तो वह उसका नाजायज बच्चा है। या अपने पति से अलग होकर वह दूसरे पुरुषों के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए सिंगल मदर बनी है। सच तो यह है कि सिंगल मदर को हमारे समाज में जितने परेशानी का सामना करना पड़ता है उतना शायद किसी को नहीं करना पड़ता होगा।

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लोग ऐसा क्यों समझ लेते हैं कि एक पुरुष के बिना महिला अपने बच्चे को अकेले नहीं पाल सकती। एक महिला के सिंगल होने का मतलब यह नहीं है कि वह अकेली है और लाचार है। वह अपने बलबूते पर अपनी जिंदगी आजादी से जी सकती है और अपने बच्चे को एक अच्छी जिंदगी और परवरिश भी दे सकती है।

अगर एक महिला विमान उड़ा सकती है, खाना पका सकती है, देश के प्रधानमंत्री बन सकती है, तो एक बच्चे को अकेले संभालना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।

क्या आप जानते हैं कि समाज को सबसे ज्यादा क्या खटकता है? उसे यह बात खटकती है कि एक महिला कैसे इतनी सशक्त हो सकती है कि वह अपने बच्चे को बिना किसी आदमी की सहायता से पाले। उसे यह खटकता है कि महिला को पुरुष की जरूरत क्यों नहीं है? जिस पुरुष प्रधान समाज में हम रहते हैं वह शुरू से महिलाओं को यही सिखाते आया है कि वह अकेले अपने दम पर कुछ नहीं कर सकती। उन्हें अपने जीवन यापन के लिए एक पुरुष की आवश्यकता है और इसलिए पुरुष श्रेष्ठ है।

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लेकिन जब महिलाएं लोगों के इस भ्रम को तोड़कर अकेले अपने बच्चे को परवरिश देती है और उनकी हर जरूरत को पूरा करती है तो समाज यह स्वीकार नहीं पाता है।

सिंगल मदर होना चॉइस है

क्यों हमेशा हम ऐसा समझते हैं कि सिंगल मदर होने के पीछे कोई मजबूरी छिपी है। क्यों हम यह नहीं सोचते कि सिंगल मदर होना एक महिला की अपनी चॉइस भी हो सकती है? जरूरी नहीं है कि एक सिंगल मदर होने का कारण डाइवोर्स होना ही हो। हो सकता है कि कोई महिला अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक बच्चा गोद लेले। 

यह जरूरत है कि हम सिंगल मदर्स को सपोर्ट करें ना कि उनका कॉन्फिडेंस गिराए। अक्सर लोग इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि किसी तरह हमें सिंगल मदर्स को बुरा महसूस कराएं। लेकिन महिलाओं को ही महिलाओं की शक्ति बनना होगा। हमें जरूरत है कि हम दूसरी महिलाओं का समर्थन करें और उनके लिए आवाज़ उठाएं।

ओपिनियन
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