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टूटते रिश्ते: सिर्फ औरत ही क्यों सवालों के घेरे में?

ओपिनियन: समाज में अक्सर तलाक का ठीकरा महिलाओं के माथे फोड़ा जाता है। जानिए तलाक के पीछे क्या हो सकते हैं कारण और क्यों हमें तलाक को लेकर अपनी सोच बदलनी चाहिए।

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Vaishali Garg
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sad women freepik.

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Broken Relationships: Why Only Women Face Questions? क्या आपने कभी गौर किया है कि जब भी किसी शादी के टूटने या किसी जोड़े के अलग होने की खबरें आती हैं, तो आमतौर पर हम औरत को ही कोसना शुरू कर देते हैं? अचानक से वही औरत, जो कल तक परिवार की रीढ़ मानी जाती थी, आज उसी परिवार की कमजोरी बन जाती है।

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टूटते रिश्ते: सिर्फ औरत ही क्यों सवालों के घेरे में?

ये सिलसिला क्रिकेट जगत में भी देखने को मिला है। हाल ही में क्रिकेटर हार्दिक पांड्या और उनकी पत्नी नताशा के अलग होने की अफवाहें उड़ीं और देखते ही देखते कई लोगों ने नताशा को ही जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। लेकिन क्या ये सोच सही है? क्या तलाक सिर्फ औरत की ही गलती होती है? 

जी नहीं! तलाक के पीछे कई कारण हो सकते हैं और यह जरूरी नहीं कि हमेशा औरत ही जिम्मेदार हो। दरअसल, ये समाज का एक पुराना दोगलापन है, जहां रिश्तों के टूटने का ठीकरा सिर्फ औरतों के माथे फोड़ा जाता है। लेकिन जमाना बदल रहा है और अब हमें भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है। आज हम आपको इसी विषय पर बात करने जा रहे हैं। आइए जानते हैं कि तलाक को लेकर समाज में फैली गलत धारणाएं क्या हैं और हमें अपनी सोच को कैसे बदलना चाहिए। 

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समाज का दोहरा मापदंड (Society's Double Standards)

समाज में एक दोहरा मापदंड है। जब कोई रिश्ता टूटता है, तो औरत को ही कमियों से भरा हुआ माना जाता है। ये सोच पुरानी है और इसे बदलने की जरूरत है। तलाक लेना या रिश्ता खत्म करना कोई बुरी बात नहीं है। कई बार रिश्ते में रहने से ज्यादा अलग होना ही बेहतर होता है। 

कई कारण होते हैं जिनकी वजह से रिश्ते टूटते हैं। ये सिर्फ औरत की गलती ही नहीं हो सकती। कई बार पुरुष भी जिम्मेदार होते हैं। किसी रिश्ते में बेवफाई, हिंसा, अहम, या फिर तालमेल की कमी जैसी चीजें तलाक का कारण बन सकती हैं। 

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अब वक्त आ गया है कि हम तलाक को लेकर अपनी सोच बदलें। किसी भी रिश्ते के टूटने की जिम्मेदारी कई बार दोनों पर होती है। हमें औरत को ही नहीं, बल्कि पुरुष को भी जवाबदेह ठहराना चाहिए। साथ ही, ये भी समझना चाहिए कि तलाक जैसा फैसला लेना आसान नहीं होता और हर किसी के पीछे एक कहानी होती है। 

इसलिए किसी को भी जल्दी से जज न करें। समाज को ये भी स्वीकार करना होगा कि तलाकशुदा औरत या मर्द कमजोर नहीं होते। वे अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए स्वतंत्र हैं। 

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