आज लड़कियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। मर्द के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है। पित्तरसत्ता सोच को पीछे छोड़ आगे बढ़ रही है।किसी भी फ़ील्ड की बात की जाए चाहे वे डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, एस्ट्रोनॉट या फिर पत्रकारी की बात हो लड़कियाँ किसी भी फ़ील्ड में कम नहीं है लेकिन फिर भी क्यों उन्हें बोझ माना जाता है?इतनी तरक़्क़ी के बाद सिर्फ़ लड़की के जेंडर की वजह उसे क्यों बोझ माना जाता है?
Women In Society: क्यों आज भी लड़कियों को बोझ माना जाता है?
आज लड़कियाँ इतनी तरक़्क़ी कर रही है हर फ़ील्ड में आगे बढ़ रही है लेकिन फिर भी माँ-बाप कह देते लड़कियाँ तो बोझ होती है।लड़की के जन्म से सभी लोग चाहे वे परिवार के हो, या फिर रिश्तेदार सभी कहने लग जाते है लड़की हो गई बहुत अशुभ हुआ लड़का होता तो अच्छा होता।यह चीज़ अभी भी हमारे समाज में से नहीं जा रही है।
लड़की के शादी बाद बोझ हल्का हुआ
जब लड़की की शादी हो जाती है तो सब कहने लग जाते है चलो बोझ हल्का हुआ।अब हमारी टेन्शन खतम हुई।लड़की चाहे कमा भी रही हो तब भी परिवार वाले उसे बोझ कहने में गुरेज़ नहीं करते है।
हमारे समाज ने खुद लड़की को बोझ बनाया-
लड़की को बोझ बनाने में हमारा समाज खुद ज़िम्मेदार है।पहले हम लड़कियों को इतने मौक़े नहीं देते है उन्हें अच्छे से पढ़ने भी नहीं देते है।फिर हम उन्हें सिर्फ़ घर के काम तक सीमित रखते उन्हें जॉब करने स्व रोकते है।फिर हम दहेज जैसी प्रथा का भी खंडन नहीं करते है।बाद में हम लड़की को बोझ बनाकर पेश कर देते है।
लड़कियों को मौक़े देने चाहिए-
जितना हम लड़कियों को मौक़ा देंगे उतना ही वे आगे बढ़ रही है।अगर हम उन्हें मौक़ा ही नहीं देंगे उन्हें घर पर क़ैद करके रखेंगे उन्हें आगे बढ़ने नहीं देंगे तो वे आप पर ही निर्भर होगी।उन्हें अपने पैरों पर खड़े करो।उन्हें आत्म-निर्भर बनने दो।उनके पंख मत काटो।उन्हें नीचा मत देखो।हम में से कुछ लोग उन्हें पैदा होते ही या पैदा होने से पहले मार देते है।सोच हमें बदलनी है।