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Photograph: (freepik)
Sex and Age What Difference Do They Make: समाज में लिंग और उम्र दोनों ही ऐसे पहलू हैं जिनके आधार पर लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है। अक्सर किसी व्यक्ति की क्षमताओं जिम्मेदारियों और अधिकारों को उसकी उम्र और लिंग से जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए महिलाओं को पारंपरिक रूप से घरेलू कामों तक सीमित किया गया जबकि पुरुषों को बाहर के कामों के लिए उपयुक्त समझा गया। इसी तरह छोटे बच्चों की राय को नजरअंदाज किया जाता है और बुजुर्गों को कभी कभी अक्षम मान लिया जाता है।
सेक्स और उम्र क्या फर्क है
1. लिंग आधारित भेदभाव
सेक्स यानी लिंग के आधार पर भेदभाव आज भी समाज के कई हिस्सों में देखने को मिलता है। पुरुष और महिला दोनों की भूमिका समाज में बराबर होनी चाहिए लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा नहीं होता। महिलाएं जब नेतृत्व की भूमिका में आती हैं तो उन्हें अक्सर संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं पुरुषों से हमेशा ताकत कठोरता और कम भावनात्मकता की उम्मीद की जाती है। यह भेदभाव न केवल व्यक्तिगत विकास को रोकता है बल्कि समाज को भी पीछे खींचता है।
2. उम्र और सामाजिक अपेक्षाएं
उम्र के साथ भी समाज की अपेक्षाएं बदल जाती हैं। बच्चों से आज्ञाकारी और पढ़ाई में अव्वल रहने की उम्मीद की जाती है युवाओं से करियर में सफलता और परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाने की जबकि बुजुर्गों को आराम करने वाला वर्ग मान लिया जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि किसी भी उम्र में व्यक्ति कुछ नया सीख सकता है नया कर सकता है। उम्र केवल एक संख्या है लेकिन जब समाज इसे सीमाओं में बदल देता है तो यह व्यक्तित्व को बाँधने लगती है।
3. समान अवसरों की आवश्यकता
यदि समाज में लिंग और उम्र को आधार बना कर अवसर बाँटे जाएँ तो कई प्रतिभाएँ दब जाती हैं। एक महिला भी विज्ञान खेल राजनीति या किसी भी क्षेत्र में उतनी ही सक्षम हो सकती है जितना कोई पुरुष। उसी तरह एक साठ वर्षीय व्यक्ति भी नया व्यवसाय शुरू कर सकता है और एक सोलह वर्षीय किशोर भी सामाजिक बदलाव ला सकता है। जरूरी है कि हम सभी को समान अवसर दें और उनकी काबिलियत को उम्र या लिंग की सीमाओं में न बाँधें।
4. कार्यक्षमता और पहचान का संबंध
लोगों की कार्यक्षमता को अक्सर उनके लिंग या उम्र से जोड़ दिया जाता है जो कि एक बड़ी सामाजिक भूल है। उदाहरण के लिए कई बार युवा कर्मचारियों को अनुभवहीन समझकर जिम्मेदारियों से वंचित कर दिया जाता है जबकि वे नए विचारों और ऊर्जा से भरपूर होते हैं। वहीं महिलाओं को मातृत्व या घरेलू जिम्मेदारियों के कारण कम सक्षम समझा जाता है जबकि वे बहुकार्य क्षमता में उत्कृष्ट होती हैं। समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि किसी की पहचान या कार्यक्षमता सिर्फ उसकी उम्र या लिंग से तय नहीं होती बल्कि उसके अनुभव दृष्टिकोण और मेहनत से तय होती है।
5. शिक्षा और जागरूकता की भूमिका
सेक्स और उम्र से जुड़ी सामाजिक धारणाओं को तोड़ने में शिक्षा और जागरूकता का बड़ा योगदान होता है। जब लोग पढ़े लिखे होते हैं और समाज के मुद्दों को समझते हैं तब वे इन पुराने ख्यालों को चुनौती देना शुरू करते हैं। स्कूलों में जेंडर समानता और उम्र की विविधता को सकारात्मक रूप में सिखाया जाना चाहिए ताकि बच्चों के मन में किसी के प्रति भेदभाव की भावना न पनपे। मीडिया साहित्य और फिल्में भी इस बदलाव का साधन बन सकती हैं। सही जानकारी और समझ के ज़रिए ही हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहाँ व्यक्ति की योग्यता को उसके सेक्स और उम्र के चश्मे से न देखा जाए।