तलाक के बाद महिलाओं को सुनने पड़ते हैं समाज से ये ताने

तलाक के बाद भारतीय समाज में महिलाओं को कई तरह के ताने और आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। जानिए, समाज की इस सोच को बदलने की जरूरत क्यों है और कैसे महिलाएं इस स्थिति में आत्मनिर्भर बन सकती हैं

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Divya Sharma
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Society Mindset Perpetuating Colour Discrimination

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Judgmental Remarks Women Face from Society After Divorce: भारतीय समाज में शादी को न केवल एक व्यक्तिगत संबंध बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी और परंपरा के रूप में देखा जाता है। ऐसे में जब किसी महिला का तलाक होता है, तो यह केवल एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं रह जाता बल्कि समाज का एक बड़ा हिस्सा इसे अपनी राय देने का मुद्दा बना लेता है। तलाक के बाद महिलाओं को समाज से जिस तरह के ताने और बातें सुननी पड़ती हैं, वह उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को और अधिक कमजोर कर देती है।

तलाक के बाद महिलाओं को सुनने पड़ते हैं समाज से ये ताने

तलाक और महिलाओं को जिम्मेदार ठहराने की परंपरा

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भारतीय समाज में तलाक को आज भी एक महिला की असफलता के रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि अगर शादी टूटी है, तो उसकी वजह महिला ही होगी।

"तुमसे ही निभ नहीं पाई होगी": यह सबसे आम ताना है जो महिलाओं को सुनने को मिलता है। चाहे रिश्ते में कितनी भी समस्याएं रही हों, महिला को हमेशा दोषी ठहराया जाता है।

"पति को खुश रखना नहीं आया": कई बार महिलाओं से यह कहा जाता है कि उन्होंने अपने पति की इच्छाओं का ध्यान नहीं रखा और यही तलाक का कारण बना।

तलाकशुदा महिलाओं को दूसरा दर्जा देना

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तलाक के बाद महिलाओं को अक्सर समाज में दूसरे दर्जे की नज़र से देखा जाता है। उन्हें कई बार ‘अधूरी’ या ‘समस्या की जड़’ माना जाता है।

"अब कौन करेगा शादी?" तलाकशुदा महिला से बार-बार पूछा जाता है कि क्या वह दोबारा शादी करेगी। यह सवाल समाज की उस सोच को दर्शाता है जो महिला की पहचान को केवल उसकी वैवाहिक स्थिति से जोड़ती है।

"बच्चों का क्या होगा?" यदि महिला के बच्चे हैं, तो समाज यह मानने लगता है कि वह एक मां के रूप में असफल हो चुकी है और बच्चे उसके फैसले का खामियाजा भुगतेंगे।

आर्थिक स्वतंत्रता पर सवाल

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तलाक के बाद महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी समाज की गहरी चर्चा का विषय बन जाती है।

"अब कैसे चलेगा गुजारा?" यह सवाल महिलाओं की क्षमता पर सवाल उठाता है, यह भूलते हुए कि महिलाएं आज हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं।

"पैसों के लिए तलाक लिया होगा": समाज अक्सर यह मान लेता है कि महिला ने तलाक केवल पैसे या संपत्ति के लिए लिया है, जिससे उसकी छवि को खराब किया जाता है।

भावनात्मक दबाव और पुनर्विवाह की चर्चा

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तलाकशुदा महिलाओं पर समाज एक और दबाव डालता है – उन्हें पुनर्विवाह के लिए राजी करने का।

"अकेले जिंदगी कैसे कटेगी?" यह सवाल महिलाओं को उनकी अकेली जिंदगी का डर दिखाकर उन्हें दोबारा शादी करने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है।

"कोई अच्छा लड़का देखो": तलाकशुदा महिलाओं के लिए हर रिश्तेदार और पड़ोसी अपना 'रिश्ता एक्सपर्ट' बन जाता है और उनके लिए 'अच्छा लड़का' ढूंढने की जिम्मेदारी ले लेता है।

समाज की सोच में बदलाव की जरूरत

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यह बेहद जरूरी है कि भारतीय समाज तलाक को एक व्यक्तिगत निर्णय और अधिकार के रूप में देखे, न कि इसे महिला के चरित्र या उसकी क्षमताओं का प्रमाण पत्र मानें।

जागरूकता बढ़ाएं: शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि तलाक एक असफलता नहीं है, बल्कि एक नया शुरुआत है।

भावनात्मक समर्थन दें: तलाक के बाद महिलाओं को ताने देने के बजाय उन्हें मानसिक और भावनात्मक समर्थन देना चाहिए।

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आत्मनिर्भरता को बढ़ावा: महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि वे समाज के दबाव से ऊपर उठ सकें।

तलाक भारतीय समाज में आज भी एक ऐसा विषय है जिसे समझने और स्वीकारने की जरूरत है। महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है। समाज को यह समझना होगा कि तलाक जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत हो सकती है। महिलाओं को ताने देने के बजाय उन्हें प्रेरित करना और उनके फैसलों का सम्मान करना ही सच्चे समाज की पहचान होनी चाहिए।