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क्या यह मुमकिन है कि अकेले रहना या तलाकशुदा होना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो? फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च का दावा है कि जो लोग अविवाहित रहते हैं, उनमें डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा शादीशुदा लोगों के मुकाबले कम होता है। यह दावा पहले से चली आ रही मान्यताओं के ठीक उलट है, जहां माना जाता था कि शादी मानसिक सेहत को मज़बूत बनाती है।
दिमाग के लिए बेहतर है अकेले रहना? नई रिसर्च में सामने आई चौंकाने वाली सच्चाई
रिसर्च में क्या सामने आया?
इस अध्ययन में 24,000 से अधिक अमेरिकियों के डेटा को करीब 18 वर्षों तक ट्रैक किया गया। रिसर्च की शुरुआत में किसी भी प्रतिभागी को डिमेंशिया नहीं था। इन लोगों को उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर चार वर्गों में बांटा गया शादीशुदा, तलाकशुदा, विधवा/विधुर और जिन्होंने कभी शादी नहीं की।
अध्ययन में पाया गया कि शादीशुदा लोगों की तुलना में बाकी सभी वर्गों में डिमेंशिया का खतरा कम था। खासकर तलाकशुदा और कभी शादी न करने वाले लोगों में यह जोखिम सबसे कम देखा गया। हालांकि, जब स्मोकिंग, डिप्रेशन और दूसरी स्वास्थ्य संबंधी आदतों को ध्यान में रखा गया, तो भी यह ट्रेंड बरकरार रहा।
अल्ज़ाइमर पर खास असर, पर हर तरह के डिमेंशिया पर नहीं
इस रिसर्च में एक और दिलचस्प बात सामने आई कि अविवाहित और तलाकशुदा लोगों में अल्ज़ाइमर जैसी आम किस्म की डिमेंशिया का खतरा कम पाया गया। हालांकि, वैस्कुलर डिमेंशिया जैसे कम आम प्रकार पर इसका प्रभाव नहीं दिखा। यहां तक कि जो लोग अध्ययन के दौरान विधवा या विधुर हुए, उनमें भी डिमेंशिया होने की आशंका घट गई थी।
क्या यह शादी को लेकर हमारी सोच को बदलता है?
इस स्टडी को सिर्फ ‘शादी बनाम अकेलापन’ के नजरिए से देखना सही नहीं होगा। दरअसल, शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि वैवाहिक स्थिति से ज्यादा अहम है कि आपका रिश्ता कैसा है। क्या आप मानसिक रूप से अपने रिश्ते में संतुष्ट हैं? क्या आपको इमोशनल सपोर्ट मिल रहा है? क्या आप भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं या अकेलापन महसूस कर रहे हैं?
इसका मतलब यह नहीं कि शादी बुरी है, बल्कि यह बताता है कि सिर्फ शादीशुदा होना ही मानसिक सेहत की गारंटी नहीं है। अगर कोई अविवाहित है, लेकिन खुश है, संतुलित जीवन जी रहा है और सामाजिक रूप से जुड़ा हुआ है, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर रह सकता है।
क्या यह महिलाओं के लिए भी सोचने का मौका है?
यह रिसर्च खासतौर पर महिलाओं के लिए एक सोचने वाली बात बन सकती है। समाज में अक्सर महिलाओं की पहचान उनकी वैवाहिक स्थिति से जोड़ी जाती है। लेकिन अगर कोई महिला अकेले रहकर ज़्यादा संतुलित और मानसिक रूप से स्वस्थ जीवन जी सकती है, तो क्या हमें शादी को ज़रूरत मानना चाहिए या एक विकल्प?
शायद अब समय आ गया है कि हम यह स्वीकार करें कि हर व्यक्ति को अपनी मानसिक और भावनात्मक भलाई के लिए सबसे बेहतर रास्ता चुनने का हक है चाहे वह शादी में हो या अकेले।
इस नई स्टडी ने मानसिक स्वास्थ्य और वैवाहिक स्थिति को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि आप शादीशुदा हैं या नहीं, बल्कि यह है कि आप अपने जीवन से कितने संतुष्ट हैं। शायद यही संतुलन आपके दिमाग की सेहत तय करता है।