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बेटियों की तारीफ बेटा कहकर करने का चलन क्यों?

पेरेंटिंग: समाज में अक्सर बेटियों की प्रशंसा को "बेटा" कहकर व्यक्त किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारी संस्कृति में बेटों को उच्च स्थान दिया जाता है। जब बेटियों को "बेटा" कहा जाता है, तो यह समाज द्वारा उनके महत्व को स्वीकारने का एक तरीका होता है।

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Trishala Singh
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Daughter appreciated by calling sons

(Credits: Pinterest)

Why Are Daughters Complimented by Calling Them Sons: समाज में बेटियों को अक्सर उनकी पहचान से नहीं, बल्कि उन्हें 'बेटा' बुलाकर सराहा जाता है। यह प्रथा न केवल हमारी सोच को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि इसके पीछे गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक कारण भी हैं। इस लेख में, हम इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि बेटियों को उनके अपने अस्तित्व से सराहना क्यों नहीं मिलती।

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Understanding Kids: बेटियों की तारीफ बेटा कहकर करने का चलन क्यों?

1. पितृसत्तात्मक समाज की सोच (Thinking of Patriarchal Society)

हमारे समाज की संरचना पितृसत्तात्मक है, जहाँ बेटों को अधिक महत्व दिया जाता है। बेटियों को 'बेटा' बुलाने का एक कारण यह हो सकता है कि समाज में बेटों को जो सम्मान और अधिकार मिलता है, वही बेटियों को भी देने की कोशिश की जाती है। लेकिन यह तरीका गलत है, क्योंकि यह बेटियों की अपनी पहचान को नजरअंदाज करता है।

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2. बेटों के गुणों का महत्त्व (Importance of Qualities of Sons)

समाज में बेटों की विशेषताओं को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे कि साहस, दृढ़ता और आत्मनिर्भरता। जब बेटियों में यह गुण दिखाई देते हैं, तो उन्हें बेटा कहकर सराहा जाता है। यह एक तरह से यह इंगित करता है कि बेटियाँ केवल तभी महत्वपूर्ण होती हैं जब वे बेटों जैसी होती हैं, जो कि निहायत गलत है।

3. परिवार की प्रतिष्ठा का मुद्दा (Issue of Family's Prestige)

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परिवार में बेटियों को बेटा बुलाना एक सांकेतिक संदेश है कि वे भी परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सक्षम हैं। यह सोच परिवार के भीतर और बाहर बेटियों की योग्यता और क्षमता को उजागर करने का एक तरीका है। हालांकि, यह तरीका उनकी अपनी पहचान को धूमिल करता है।

4. समानता का भ्रम (illusion of equality)

बेटियों को बेटा बुलाना एक प्रकार से समानता का भ्रम पैदा करता है। ऐसा कहकर यह संदेश दिया जाता है कि बेटियाँ भी बराबरी की हकदार हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि यह समानता नहीं है, बल्कि एक स्टीरियोटाइप है जो बेटियों को उनकी वास्तविक पहचान से वंचित करता है।

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5. बेटियों की अपनी पहचान का महत्व (Importance of Daughter's Own Identity)

बेटियों की सराहना उनके अपने अस्तित्व और उनकी खासियत के लिए होनी चाहिए। उन्हें बेटा बुलाकर नहीं, बल्कि बेटी के रूप में ही सम्मानित किया जाना चाहिए। यह उनके आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा और समाज में उनकी सही पहचान को स्थापित करेगा।

बेटियों को 'बेटा' बुलाकर सराहना देने की बजाय, हमें उनकी अपनी पहचान और खासियत को मान्यता देनी चाहिए। यह न केवल उनके आत्मसम्मान को बढ़ावा देगा, बल्कि समाज में भी उनके सही स्थान को स्थापित करेगा। बेटियाँ अपनी पहचान में ही अद्वितीय और महत्वपूर्ण हैं और उन्हें उसी रूप में सम्मानित किया जाना चाहिए।

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