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तुलना का खेल न खेलें: क्यों बच्चों की तुलना दूसरों से नहीं करना चाहिए?

हर बच्चा अनोखा है, ये बात हम सब जानते हैं। फिर भी, कई बार माता-पिता अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, चाहे वो पड़ोस के बच्चे हों, रिश्तेदारों के बच्चे हों, या स्कूल में टॉप करने वाले बच्चे हों। जानें अधिक इस पेरेंटिंग ब्लॉग में-

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Vaishali Garg
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kids eating(freepik)

Parenting Tips: हर बच्चा अनोखा है, ये बात हम सब जानते हैं। फिर भी, कई बार माता-पिता अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, चाहे वो पड़ोस के बच्चे हों, रिश्तेदारों के बच्चे हों, या स्कूल में टॉप करने वाले बच्चे हों। लेकिन इस तुलना के खेल में न सिर्फ बच्चों का नुकसान होता है, बल्कि माता-पिता के रिश्ते में भी तनाव आ जाता है। आइए जानते हैं कि क्यों बच्चों की तुलना दूसरों से न करना चाहिए।

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तुलना का खेल न खेलें: क्यों बच्चों की तुलना दूसरों से नहीं करना चाहिए?

1. हताशा और आत्म-संदेह का जहर

जब आप अपने बच्चे की तुलना दूसरे से करते हैं, तो असल में आप उन्हें कह रहे होते हैं कि वो "काफी नहीं हैं"। इससे उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती है और वो हताश और आत्म-संदेह में डूब जाते हैं। वो अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते हैं और अपनी पहचान खोने लगते हैं।

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2. प्रतिस्पर्धा की जगह, सहयोग का माहौल खोना

तुलना बच्चों में प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करती है। वो दूसरों से आगे निकलने की कोशिश में जुट जाते हैं, जिससे सहयोग और टीम वर्क की भावना कम होती है। इससे भाई-बहन के रिश्ते प्रभावित होते हैं और स्कूल में भी समूह गतिविधियों में परेशानी आती है।

3. अनदेखी प्रतिभाओं का दमन

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हर बच्चे की अपनी प्रतिभा और रुचि होती है। लेकिन तुलना के चक्कर में हम अक्सर बच्चों की खूबियों को नजरअंदाज कर देते हैं। हम चाहते हैं कि वो दूसरों की तरह बनें, जिससे उनकी वास्तविक क्षमताएं दब जाती हैं। क्या पता आपके बच्चे को स्पोर्ट्स में धांसू हो, संगीत में जादूगर हो, या कला में अनमोल कलाकार हो!

4. दबाव और तनाव का बोझ

माता-पिता की तुलना बच्चों पर दबाव डालती है। वो लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश करते हैं, जिससे उन्हें तनाव होता है। इससे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है।

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5. अतृप्ति और अपूर्णता की भावना

तुलना के चलते बच्चे कभी संतुष्ट नहीं होते। वो हमेशा दूसरों को देखते रहते हैं और लगता है कि उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ है। इससे अतृप्ति और अपूर्णता की भावना पैदा होती है, जो उनके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।

इसलिए, बच्चों की तुलना करने के बजाय, माता-पिता को उन्हें स्वीकार करना चाहिए, उनकी प्रतिभाओं को पहचानना चाहिए, और उन्हें उनकी अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ने का मौका देना चाहिए। बच्चों को प्रोत्साहित करें, उनकी कमियों की ओर ध्यान दिलाएं, लेकिन तुलना का हथियार कभी न उठाएं। याद रखें, आपके बच्चे अनोखे हैं और उनकी अपनी खूबियां हैं। उन्हें वो बनने दें जो वो बनना चाहते हैं, न कि जो आप चाहते हैं।

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