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गोल रोटी नहीं है कुशल भारतीय नारी की पहचान

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Swati Bundela
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बचपन से एक बात बहुत बार सुनी है, एक कुशल भारतीय नारी को गोल रोटी बनानी आनी ही आनी चाहिए. अब चाहे यह माँ समझाती है या फिल्मों व सीरियल में दिखाया जाए.
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रिश्ता देखने आई, लड़के की माँ को सर्वगुण संपन्न बहु की तलाश होती है. ऊपर से नीचे तक, अच्छे से जाँचने व परखने के बाद लड़की की परीक्षा ली जाती है. सवालों का एक लंबा ढेर लगा दिया जाता है जैसे- क्या घर के सब काम आते है? और इस परीक्षा को अव्वल दर्ज़े से पास करने के लिए एक अहम चीज़ है- गोल रोटी.
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ज़रा सोचिए, क्या गोल रोटी बनाना काफी है? क्या सिर्फ रसोई में काबिल होना काफी है, एक महिला के लिए? क्या पति और ससुराल को खुश करने के लिए चपटी फुटबॉल जैसी रोटी काफी है?
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भारतीय नारी की परिभाषा में गोल रोटी बनाना नहीं है


एक समझदार, संवेदनशील और काबिल महिला, जिसे गोल रोटी नहीं बनानी आती, क्या वह एक अच्छी ग्रहणी नहीं हो सकती? जी ऐसा बिलकुल नहीं है. भारतीय नारी की परिभाषा में गोल रोटी बनाना दूर दूर तक नहीं है. बल्कि, परिभाषा है क्या? कभी विचार किया है आपने? एक भारतीय नारी को सुशील, संस्कारी, कोमल, सहज और पतिव्रता होना चाहिए.
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रोटी गोल हो या नहीं, शादी प्रेम और विश्वास से ही निभाई जा सकती है


शादी का लड्डू खाने की जल्दी और उत्साह सबके अंदर होता है. पुरुषों के अंदर तो दुगुना उत्साह होता है. यौवन आया नहीं कि हम बस शादी के सपने बुनने लग जाते है. कई तो हमसफ़र की तलाश में लग जाते है. और फिर शुरू होता है, दोस्ती से प्रेम तक का सफर. और अगर यह सफर अच्छा हुआ तो शादी तक पहुंच जाते है.
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पति-पत्नी को एक दूसरे को कई बार माफ़ करना पड़ता है


शादी एक अहम पड़ाव है ज़िन्दगी का, जिसको गोल आकार वाली रोटी नहीं, प्रेम, दोस्ती, एक दूसरे को समझना और अटूट विश्वास ही चला सकता है. एक शादी को निभाने के लिए पति-पत्नी दोनों को एक दूसरे को कई बार माफ़ करना पड़ता है. और कई बार, एक दूसरे को याद दिलाना पड़ता है,आखिर क्यों यह रिश्ता अटूट है, और वह दोनों एक दूसरे के.

चाहे रोटी का नक्शा जो भी हो, शादी का नक्शा प्रेम से है


अकसर, रोटी किस आकार की बन जाए, यह तो न मुझे मालूम है और न ही शायद किसी और को. पर जब प्रेम से बनी रोटी सबको परोसते है, तो सबको अच्छी ज़रूर लगती है. क्या यह काफी नहीं?

जहाँ एक मासूम की जान की कीमत एक गोल रोटी है, इस गूंगे पित्तृसत्तात्मक समाज पर शर्म आती है.


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इस गूंगे पित्तृसत्तात्मक समाज पर शर्म आती है


2015 में पाकिस्तान के लाहौर में, अनिका(12) बच्ची की हत्या उसके पिता और भाई ने कर दी थी क्यूंकि वह गोल रोटी नहीं बनाती थी. आप बताइये, क्या यह दरिंदगी और घटिया सोच सही है? यह ही नहीं, पिछले साल की बात है, रोटी गोल न होने पर पति ने पत्नी से मारपीट की तो पत्नी ने तलाक माँगा, जो की बिलकुल सही है. अगर रिश्ते सिर्फ महिला की रोटी बनाने से चलते है तो ऐसे रिश्ते ख़त्म ही कर देने चाहिए. और जहाँ एक मासूम की जान की कीमत एक गोल रोटी है, इस गूंगे पित्तृसत्तात्मक समाज पर शर्म आती है.

इसमें कोई संदेह नहीं की, गोल रोटी काफी सुंदर दिखती है, पर क्या यह एक झूठा प्रतीक नहीं, अच्छी शादी का? क्या पत्नी की कोशिश से ऊपर है, रोटी की बनावट? विचार कीजिये.

चाहे अलग अलग देश के नक्शों वाली रोटी ही क्यों न हो, जिस दम्पति के जीवन में प्रेम और स्नेह भरपूर है, वो ही शादी सफल है.


(Pics- YouTube)
इंस्पिरेशन शादी स्वंत्र महिला शादी ज़रूरी? क्या घर के सब काम आते है? गोल रोटी पित्तृसत्तात्मक समाज
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