Sakshi Malik की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी

ओलंपिक विजेता Sakshi Malik ने The Rulebreaker Show में अपने संघर्षों, समाज की आलोचनाओं और सफलता की कहानी साझा की। जानिए कैसे उन्होंने रूढ़ियों को तोड़कर इतिहास रचा

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Vaishali Garg
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भारतीय महिला खिलाड़ी अब सिर्फ खेलों में भाग ही नहीं ले रहीं, बल्कि अपनी पहचान भी बना रही हैं। उन्हीं में से एक हैं Sakshi Malik, जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीतकर इतिहास रच दिया। लेकिन इस सफर में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा मानसिक तनाव, आर्थिक कठिनाइयाँ और समाज की आलोचनाएँ। हाल ही में The Rulebreaker Show में उन्होंने अपने शुरुआती संघर्षों के बारे में खुलकर बात की।

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Sakshi Malik की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी

जब समाज ने रोकने की कोशिश की

The Rulebreaker Show में Sakshi Malik ने Shaili Chopra से बातचीत के दौरान बताया कि जब उन्होंने कुश्ती में करियर बनाने का फैसला किया, तो समाज ने उन्हें हतोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा, "शुरुआत में बहुत संघर्ष था। मैं एक ऐसे खेल में थी जिसे सिर्फ लड़कों के लिए माना जाता था। मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा समर्थन किया, लेकिन परिवार के बाकी लोग मुझे पीछे खींचने की कोशिश कर रहे थे।"

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वह बताती हैं कि रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता से कहा, "इस खेल में लड़की को क्यों डाल दिया? ये लड़कों का खेल है। इसकी कद-काठी मर्दों जैसी हो जाएगी, फिर इसकी शादी कैसे होगी?"

लेकिन Sakshi Malik के इरादे अडिग थे। वह जानती थीं कि अगर उन्हें अपने सपने पूरे करने हैं, तो समाज की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा।

स्कूल में भी झेलनी पड़ी जिल्लत

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सिर्फ समाज ही नहीं, स्कूल में भी Sakshi को अपमान सहना पड़ा। उन्होंने बताया, "स्कूल में बच्चे कहते थे कि 'ये रेसलर है, इससे दूर रहो।' यह सुनकर मुझे बुरा लगता था। मुझे दूध लेकर जाना पड़ता था, लेकिन मैं उसे छुपाकर ले जाती थी, क्योंकि डर था कि बच्चे मेरा मज़ाक उड़ाएँगे।"

इसके अलावा, जब वह साइकिल से स्कूल जाती थीं, तो राह चलते लोग ताने कसते थे, "अरे, ये लड़का है या लड़की?" इन सब बातों से उन्हें ठेस पहुँचती थी, लेकिन उनके माता-पिता हमेशा उनके साथ खड़े रहे।

आलोचना से सम्मान तक का सफर

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आज Sakshi Malik सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक मिसाल हैं। उन्होंने 2016 के Rio Olympics में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतकर दुनिया को दिखा दिया कि उनकी मेहनत बेकार नहीं गई। उन्होंने कहा, "जब मैं पदक जीतने लगी, तो वही लोग जो मेरा मज़ाक उड़ाते थे, अब मुझसे मिलने और फोटो खिंचवाने के लिए इंतजार करते हैं!"

Sakshi Malik ने सिर्फ पदक ही नहीं जीते, बल्कि भारतीय महिला पहलवानों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई है। वह खेलों में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और सुरक्षा के मुद्दों पर भी मुखर रही हैं।

नारी शक्ति की पहचान

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आज Sakshi Malik सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि भारत की हर उस लड़की के लिए प्रेरणा हैं, जो समाज की बंदिशों को तोड़कर अपने सपनों को पूरा करना चाहती है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि अगर हौसला और मेहनत हो, तो कोई भी बाधा सफलता की राह में नहीं आ सकती।

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