भारत में जल्द ही ओवर-द-काउंटर (OTC) हार्मोनल गर्भनिरोधक गोलियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की विशेषज्ञ उप-समिति ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स, 1945 में संशोधन की सिफारिश की है, जिसके तहत आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों (ECP) को केवल डॉक्टर की पर्ची पर ही उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है।
ओवर-द-काउंटर हार्मोनल पिल्स पर संभावित प्रतिबंध: महिलाओं के स्वास्थ्य पर क्या होगा असर?
इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स
ECP, जिसे 'मॉर्निंग-आफ्टर पिल' के नाम से भी जाना जाता है, भारत में पहली बार 2002 में पेश की गई थी। ये गोलियाँ असुरक्षित यौन संबंध के 72 घंटे के भीतर गर्भधारण को रोकने में मदद करती हैं। वर्तमान में 0.75mg की लेवोनोरजेस्ट्रल की गोलियाँ बिना पर्ची के बेची जा सकती हैं, लेकिन अब इस नियम में बदलाव की संभावना जताई जा रही है।
क्या है ओटीसी हार्मोनल पिल्स पर प्रतिबंध का कारण?
विशेषज्ञों के अनुसार, OTC ड्रग्स की उपलब्धता अनियोजित गर्भधारण को रोकने में मदद करती है, लेकिन कुछ राज्यों जैसे तमिलनाडु में इन गोलियों तक पहुंचना कठिन हो रहा है। सितंबर 2023 में तमिलनाडु सरकार ने इन दवाओं के "अविवेकपूर्ण उपयोग" के चलते OTC बिक्री पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद इस विषय पर विचार करने के लिए CDSCO द्वारा एक छह-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि इन दवाओं का उपयोग अनियोजित गर्भधारण और गर्भपात को रोक सकता है। हालाँकि, समिति के एक उच्च सूत्र ने बताया कि अधिकांश विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि गर्भनिरोधक दवाओं को खरीदने के लिए डॉक्टर की पर्ची अनिवार्य होनी चाहिए। समिति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्सटेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स की सिफारिशों पर भी विचार किया है।
क्या महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर?
हालांकि समिति का उद्देश्य महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा है, फिर भी डॉक्टरों के बीच इस प्रस्ताव को लेकर मतभेद हैं। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि हार्मोनल गर्भनिरोधक दवाएं गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं, जबकि अन्य डॉक्टरों का मानना है कि विशेष रूप से आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों को बिना डॉक्टर की पर्ची के उपलब्ध होना चाहिए।
अगर यह प्रतिबंध लागू होता है, तो महिलाओं को आवश्यक दवाओं तक पहुंचने में कठिनाई हो सकती है, जिससे अनियोजित गर्भधारण और अवैध गर्भपात की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, यह कदम महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उठाया जा रहा है, और इसका अंतिम निर्णय विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर आधारित होगा।