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Why Is Autism Diagnosed Later In Women? ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जो इंसान के सोचने, समझने और दूसरों से बातचीत करने के तरीके को प्रभावित करती है। यह आमतौर पर बचपन में ही पता चल जाता है, लेकिन कई महिलाओं को इसकी सही पहचान बहुत देर से मिलती है, कभी-कभी तो वयस्क होने के बाद ही। इसकी वजह यह है कि महिलाओं में ऑटिज्म के लक्षण पुरुषों से थोड़े अलग होते हैं और कई बार वे अपने लक्षणों को छुपा भी लेती हैं। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर महिलाओं में ऑटिज्म की पहचान इतनी देर से क्यों होती है।
World Autism Awareness Day 2025: क्यों महिलाओं में ऑटिज्म का पता देर से चलता है?
महिलाओं में लक्षण अलग कैसे होते हैं?
ऑटिज्म के लक्षण हर किसी में एक जैसे नहीं होते। लड़कों में यह जल्दी पहचान में आ जाता है, क्योंकि उनके व्यवहार में बदलाव साफ दिखाई देता है। लेकिन लड़कियाँ कई बार अपने लक्षणों को छुपा लेती हैं। वे दूसरों की नकल कर सकती हैं, जिससे वे सामाजिक रूप से सामान्य लगती हैं। हालाँकि, उनके लिए यह करना आसान नहीं होता और अंदर ही अंदर वे संघर्ष कर रही होती हैं।
मास्किंग: जब महिलाएँ अपने असली लक्षण छुपा लेती हैं
महिलाएँ अक्सर समाज में घुलने-मिलने के लिए अपने ऑटिज्म के लक्षणों को छुपाने की कोशिश करती हैं। इसे ‘मास्किंग’ कहा जाता है। वे दूसरों की तरह बोलने, हंसने और बातचीत करने का नाटक कर सकती हैं ताकि वे अलग न दिखें। यह उन्हें मानसिक रूप से थका देता है और कई बार चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं। लेकिन बाहर से देखने पर वे सामान्य लगती हैं, जिससे डॉक्टर और परिवार वाले भी उनके ऑटिज्म को पहचान नहीं पाते।
डॉक्टरों की जांच में भी गड़बड़ी क्यों होती है?
ऑटिज्म की जांच करने वाले ज़्यादातर टेस्ट लड़कों के लक्षणों पर आधारित होते हैं। क्योंकि लड़कियों में लक्षण थोड़े अलग तरीके से दिखते हैं, इसलिए डॉक्टर भी कई बार इसे पहचानने में चूक कर जाते हैं। कई बार वे इसे किसी और समस्या, जैसे कि एंग्जायटी या डिप्रेशन समझ लेते हैं, जिससे सही समय पर ऑटिज्म का पता नहीं चलता।
समाज की सोच भी एक वजह है
हमारे समाज में लड़कियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे शांत और सामाजिक हों। अगर कोई लड़की लोगों से ज़्यादा बातचीत नहीं करती या अलग तरह से व्यवहार करती है, तो इसे ऑटिज्म नहीं बल्कि शर्मीलेपन या चिंता का नाम दे दिया जाता है। इस वजह से लड़कियों के ऑटिज्म को गंभीरता से नहीं लिया जाता और उनका सही समय पर इलाज नहीं हो पाता।
देर से पता चलने का असर
अगर किसी महिला को बचपन में ऑटिज्म का पता नहीं चलता, तो वह बड़ी होकर कई मुश्किलों का सामना कर सकती है। उसे लोगों से घुलने-मिलने में दिक्कत आ सकती है, आत्म-संदेह हो सकता है और वह अकेलापन महसूस कर सकती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अब इस विषय पर जागरूकता बढ़ रही है, जिससे महिलाओं को सही समय पर ऑटिज्म का पता चल सके और उन्हें ज़रूरी मदद मिल सके।
Disclaimer: इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद जानकारी केवल आपकी जानकारी के लिए है। हमेशा चिकित्सा या स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने से पहले किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।