Female Pleasure: कैसे महिलाओं को उनकी शारीरिक जरूरतों से वंचित रखा जाता है?

सेक्स को लेकर महिलाओं की भावनाएँ होना या उन्हें एक्सप्रेस करना अक्सर ग़लत नज़रों से देखा जाता है। जबकि महिलाओं की फिज़िकल और इमोशनल नीड्स भी उतनी ही अहमियत रखती हैं।

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Deepika Aartthiya
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Photograph: (Pinterest via BigBeryl)

हमारे समाज में हमेशा से यही धारणा रही है कि सेक्स केवल पुरुषों की ज़रूरत होती है। सेक्स को लेकर महिलाओं की भावनाएँ होना या उन्हें एक्सप्रेस करना अक्सर ग़लत नज़रों से देखा जाता है। जबकि महिलाओं की फिज़िकल और इमोशनल नीड्स भी उतनी ही अहमियत रखती हैं।लेकिन सच तो ये है कि ज़्यादातर रिश्तों में महिलाओं के प्लेज़र को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। फिर चाहे वो लंबे समय का रिश्ता हो या शादीशुदा जीवन, हमेशा महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वो बस अपने साथी की इच्छाओं को पूरा करें। इस बीच भले ही उनकी खुद की भावनाएँ और इच्छाएँ पीछे छूट जाएँ।

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Female Pleasure: कैसे महिलाओं को उनकी शारीरिक जरूरतों से वंचित रखा जाता है?

1. समाज की सोच और पितृसत्ता

पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले हमारे समाज ने हमेशा से महिलाओं को केवल पुरुषों के सुख और बच्चे पैदा करने के लिए अहम समझा है। इसी के चलते महिलाओं ने भी अपनी सेक्सुअल डिसायर्स को दबाना सही समझ लिया। यही वजह है कि आज भी sexual needs को ओपनली डिस्कस करना एक taboo माना जाता है। अगर महिलाएँ अपने प्लेज़र की बात करती हैं तो उन्हें characterless या बेशर्म कहकर जज किया जाता है।

2. एजुकेशन और अवेयरनेस की कमी

हमारे देश की कई प्रॉबलम्स का कारण असल में सेक्सुअल एजुकेशन की कमी ही है। आज भी कई महिलाएँ अपने बॉडी और body requirements के बारे में पूरी तरह से अनजान हैं। कई जगहों पर तो सिचुएशन ऐसी भी है कि महिलाएँ खुद नहीं जानतीं कि उन्हें किस चीज़ से pleasure मिलता है। ऐसे में उनके लिए अपनी physical needs को बयान कर पाना और भी मुश्किल हो जाता है।

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3. कम्युनिकेशन की कमी

इंटिमेट पलों के दौरान अधिकतर महिलाएँ अपनी ज़रूरतों और फिलिंग्स को खुलकर नहीं बता पातीं। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने अपने sexual pleasure की मांग की तो उनका साथी उन्हें ग़लत समझेगा और रिश्ता भी बिगड़ सकता है। नतीजन वो चुपचाप समझौता करती रहती हैं और धीरे-धीरे इमोशनली डिसकनेक्टेड महसूस करने लगती हैं।

4. फिमेल प्लेज़र को लेकर मिथ्स

सोसाइटी में पुरुषों के सेटिसफेक्शन पर बात होती है और उसे ज़रूरी भी समझा जाता है। लेकिन महिलाओं की इंटीमेसी को सिर्फ़ उनकी ड्यूटी करार दिया जाता है। ये myths आज भी महिलाओं को उनके हक से वंचित (deprived) रखते हैं। जबकि सच ये है कि sexual satisfaction दोनों के लिए ज़रूरी और बराबर मायने रखता है।

5. क्या बदलाव ज़रूरी है

ज़रूरी है कि महिलाएँ अपनी नीड्स और प्लेज़र को समझें। सेक्सुअल सेटिसफेक्शन महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से ज़रूरी है। एक हैल्थी रिलेशनशिप वही होता है जहाँ दोनों की फिज़िकल और इमोशनल ज़रूरतों को equal importance दी जाए। अवेयरनेस, ओपन कम्युनिकेशन और consent को प्राथमिकता देकर ही इस सोच और inequality को बदला जा सकता है।

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