Know Your Desire: महिलाओं की सेक्शुअल फैंटेसी कोई गुनाह नहीं

हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना होगा जहाँ महिलाएँ अपने यौन विचारों को अपराध समझकर न छिपाएँ बल्कि उन्हें आत्मविश्वास के साथ अपनाएं महिलाओं की यौन कल्पनाएँ अपराध नहीं हैं

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Sanya Pushkar
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Know Your Desire Womens Sexual Fantasies Are Not a Crime: हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना होगा जहाँ महिलाएँ अपने यौन विचारों को अपराध समझकर न छिपाएँ बल्कि उन्हें आत्मविश्वास के साथ अपनाएं। जब महिलाएं अपनी इच्छाओं को जानेंगी तब वे अपने रिश्तों में भी अधिक संतुलित और संतुष्ट होंगी। महिलाओं की यौन कल्पनाओं को स्वीकार करना एक प्रगतिशील समाज की निशानी है। यह समय है जब हम को एक आंदोलन की तरह अपनाएं और महिलाओं की कामनाओं को अपराध नहीं अधिकार मानें। महिलाओं की यौन कल्पनाएँ अपराध नहीं हैं

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महिलाओं की यौन कल्पनाएँ अपराध नहीं हैं

 1. कामनाओं की अभिव्यक्ति का अधिकार

हर व्यक्ति की तरह महिलाओं को भी अपनी यौन इच्छाओं और कल्पनाओं को समझने और स्वीकारने का पूरा अधिकार है। समाज में लंबे समय से महिलाओं की यौनिकता को दबाया गया है और उनके विचारों व इच्छाओं को पाप या अपराध की दृष्टि से देखा गया है। जबकि यौन इच्छाएँ किसी भी इंसान की स्वाभाविक भावना होती हैं। इस निबंध का उद्देश्य है  यह समझाना कि महिलाओं की यौन कल्पनाएँ कोई अपराध नहीं बल्कि उनकी स्वतंत्रता और पहचान का हिस्सा हैं।

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2. समाजिक मानसिकता और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण

भारतीय समाज अभी भी पितृसत्तात्मक सोच से प्रभावित है जहाँ पुरुषों की इच्छाओं को स्वाभाविक और सामान्य माना जाता है जबकि महिलाओं की यौन इच्छाओं को शर्मनाक करार दिया जाता है। यदि कोई महिला अपनी कामनाओं के बारे में खुलकर बात करती है तो उसे बदनाम चरित्रहीन या संस्कृति के खिलाफ कहकर चुप कराने की कोशिश की जाती है। यह भेदभाव समाज में लैंगिक असमानता और महिलाओं के आत्मविश्वास को प्रभावित करता है।

3. यौनिकता और मानसिक स्वास्थ्य

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महिलाओं की यौनिकता को स्वीकार करना केवल सामाजिक बदलाव नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। जब महिलाएँ अपनी इच्छाओं को दबाती हैं तो वह अवसाद चिंता आत्मग्लानि जैसी मानसिक परेशानियों का शिकार हो सकती हैं। खुलकर कल्पनाएँ करना उन्हें समझना और खुद को एक्सप्रेस करना एक स्वस्थ दिमाग की पहचान है। यह आत्मसम्मान बढ़ाने में भी सहायक होता है।

4. मीडिया और यौन शिक्षा की भूमिका

फिल्में किताबें और डिजिटल मीडिया के माध्यम से अब महिलाएं अपने अनुभवों और इच्छाओं को साझा कर रही हैं। वे अपने विचारों को लेखों पॉडकास्ट और सोशल मीडिया के जरिए सामने ला रही हैं। साथ ही यौन शिक्षा का अभाव भी एक बड़ी समस्या है। यदि किशोरावस्था से ही लड़कियों को सही और वैज्ञानिक तरीके से यौन शिक्षा दी जाए तो वे अपनी भावनाओं और शरीर को बेहतर तरीके से समझ पाएंगी।

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5. कानून और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

भारत के संविधान में हर नागरिक को अपनी स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है जिसमें निजी जीवन और पसंद भी शामिल है। किसी की यौन कल्पनाएँ निजी होती हैं और जब तक वे किसी की सहमति के विरुद्ध नहीं हैं तब तक वे न तो अपराध हैं और न ही अनैतिक। महिलाओं को यह समझना और समाज को यह स्वीकारना चाहिए कि उनके विचार अपराध नहीं बल्कि इंसान होने का प्रमाण हैं।

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