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आईसीयू बेड की भारी कमी के खिलाफ संघर्ष किया है।
गंभीर रूप से बीमार रोगियों में, जब ऑक्सीजन सपोर्ट विफल हो जाता है, तो एक्सपर्ट्स ऑक्सीजन को बनाए रखने के लिए मैकेनिकल वेंटिलेशन का सहारा लेते हैं।
हालांकि, कुछ रोगी इस तरह की मदद लेने में सक्षम नहीं हैं - जीवित रहने के लिए आवश्यक गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए उनके दिल और फेफड़े बहुत कमजोर या रोग ग्रस्त हो गए हैं।
ऐसे एक्सट्रीम मामलों में, डॉक्टर ECMO या एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सीजन लगाने का विकल्प चुन सकते हैं, जो शरीर के बाहर आर्टिफिशियल हृदय और फेफड़ों की जोड़ी के रूप में कार्य करता है (इस प्रकार 'एक्स्ट्राकोर्पोरियल'), जो रोगी के ब्लड से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है और उसमें ऑक्सीजन भरता है।
ईसीएमओ मशीन रोगी की गर्दन, छाती या कमर के माध्यम से एक बड़ी नस या आर्टरी में प्लास्टिक ट्यूब डालने का काम करती है। यह ट्यूब मरीज के ब्लड को ऑक्सिजनेटर, या आर्टिफिशियल फेफड़ों में जाने देती है।
ऑक्सिजनेटर ब्लड में ऑक्सीजन को डालता है और कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है, इससे पहले कि पंप इस ब्लड को एक अलग ट्यूब के माध्यम से रोगी में वापस भेजता है, उसी फ्रीक्वेंसी और फोर्स के साथ जितना कि रोगी के दिल की होती है।
इस मशीन का उपयोग तब किया जाता है, जब रोगियों के लिए अन्य सभी मेडिकल ऑप्शंस समाप्त हो जाते हैं, जिनके फेफड़े उनके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान नहीं कर सकते हैं या कार्बन डाइऑक्साइड से खुद को मुक्त नहीं कर सकते हैं।
इसका उपयोग उन रोगियों के लिए भी किया जा सकता है जिनका हृदय शरीर में पर्याप्त ब्लड पंप नहीं कर सकता है, और उन लोगों के लिए जो हृदय या फेफड़ों के ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
• एक बड़ी कॉम्प्लिकेशन जो उत्पन्न हो सकती है, वह है ब्लीडिंग। ईसीएमओ के दौरान रोगियों को ब्लड को पतला करने वाली दवा की आवश्यकता होती है, जिसके कारण उनके शरीर में अलग-अलग स्थानों पर ब्लीडिंग शुरू हो सकती है।
• साथ ही, जो मरीज ईसीएमओ पर होते हैं, उनकी किडनी में कभी-कभी पर्याप्त ब्लड फ्लो नहीं हो पाता है। इससे उनकी किडनी काम करना बंद कर सकती है, एक ऐसी स्थिति जिसे एक्यूट रीनल फेलियर के रूप में भी जाना जाता है।
• इंफेक्शन एक बहुत ही वास्तविक और बड़ा खतरा है। ईसीएमओ मशीन से ट्यूब मरीज के शरीर के बाहर से सीधे उसके ब्लडस्ट्रीम में जाती है। इससे रोगी के शरीर में इंफेक्शन के प्रवेश करने का खतरा हमेशा बना रहता है।
ईसीएमओ (ECMO) की प्रक्रिया क्या है?
गंभीर रूप से बीमार रोगियों में, जब ऑक्सीजन सपोर्ट विफल हो जाता है, तो एक्सपर्ट्स ऑक्सीजन को बनाए रखने के लिए मैकेनिकल वेंटिलेशन का सहारा लेते हैं।
हालांकि, कुछ रोगी इस तरह की मदद लेने में सक्षम नहीं हैं - जीवित रहने के लिए आवश्यक गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए उनके दिल और फेफड़े बहुत कमजोर या रोग ग्रस्त हो गए हैं।
ऐसे एक्सट्रीम मामलों में, डॉक्टर ECMO या एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सीजन लगाने का विकल्प चुन सकते हैं, जो शरीर के बाहर आर्टिफिशियल हृदय और फेफड़ों की जोड़ी के रूप में कार्य करता है (इस प्रकार 'एक्स्ट्राकोर्पोरियल'), जो रोगी के ब्लड से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है और उसमें ऑक्सीजन भरता है।
ईसीएमओ (ECMO) कैसे काम करता है?
ईसीएमओ मशीन रोगी की गर्दन, छाती या कमर के माध्यम से एक बड़ी नस या आर्टरी में प्लास्टिक ट्यूब डालने का काम करती है। यह ट्यूब मरीज के ब्लड को ऑक्सिजनेटर, या आर्टिफिशियल फेफड़ों में जाने देती है।
ऑक्सिजनेटर ब्लड में ऑक्सीजन को डालता है और कार्बन डाइऑक्साइड को हटाता है, इससे पहले कि पंप इस ब्लड को एक अलग ट्यूब के माध्यम से रोगी में वापस भेजता है, उसी फ्रीक्वेंसी और फोर्स के साथ जितना कि रोगी के दिल की होती है।
इस मशीन का उपयोग तब किया जाता है, जब रोगियों के लिए अन्य सभी मेडिकल ऑप्शंस समाप्त हो जाते हैं, जिनके फेफड़े उनके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान नहीं कर सकते हैं या कार्बन डाइऑक्साइड से खुद को मुक्त नहीं कर सकते हैं।
इसका उपयोग उन रोगियों के लिए भी किया जा सकता है जिनका हृदय शरीर में पर्याप्त ब्लड पंप नहीं कर सकता है, और उन लोगों के लिए जो हृदय या फेफड़ों के ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
ईसीएमओ प्रक्रिया में कौन से रिस्क शामिल हैं?
• एक बड़ी कॉम्प्लिकेशन जो उत्पन्न हो सकती है, वह है ब्लीडिंग। ईसीएमओ के दौरान रोगियों को ब्लड को पतला करने वाली दवा की आवश्यकता होती है, जिसके कारण उनके शरीर में अलग-अलग स्थानों पर ब्लीडिंग शुरू हो सकती है।
• साथ ही, जो मरीज ईसीएमओ पर होते हैं, उनकी किडनी में कभी-कभी पर्याप्त ब्लड फ्लो नहीं हो पाता है। इससे उनकी किडनी काम करना बंद कर सकती है, एक ऐसी स्थिति जिसे एक्यूट रीनल फेलियर के रूप में भी जाना जाता है।
• इंफेक्शन एक बहुत ही वास्तविक और बड़ा खतरा है। ईसीएमओ मशीन से ट्यूब मरीज के शरीर के बाहर से सीधे उसके ब्लडस्ट्रीम में जाती है। इससे रोगी के शरीर में इंफेक्शन के प्रवेश करने का खतरा हमेशा बना रहता है।