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विद्या देशपांडे ने 2012 में अपनी सहेली, मिमी के साथ 'सोल परपज़ ट्रेवल्स' की शुरुआत की। वे दोनों साथ मिलकर सिर्फ महिलाओं के लिए अच्छे अनुभव वाली छुट्टियाँ आयोजित करती हैं। ये छुट्टियाँ बहुत ख़ास होती हैं जिसमें बहुत सारे सरप्राइज़ेज़ होते हैं। वाइल्डलाइफ सफारी और ट्रेकिंग से लेकर खाना और सभ्यता सबके अनुभव होते हैं।
विद्या का कहना है कि इसके पीछे हमारा विचार यह था कि हम एक ट्रेवल ग्रुप बनाएं जिसमें महिलायें स्वतंत्र होकर बिना परिवार की ज़िम्मेदारियों के अपने घरों से निकलें और जी सकें। ये ट्रिप्स किफायती होते हैं और ग्रुप की पसंद नापसन्द के अनुसार आयोजित किए जाते हैं। विद्या, जिनको घूमने का शौक है, यह सुनिश्चित कर लेती हैं कि ग्रुप को ले जाने से पेहले वो खुद वहाँ हो आएँ। रन ऑफ़ कच्छ, राजस्थान, लेह, बीज़ और ऐसी कई जगहों पर जा चुका है.
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जब विद्या ने ये काम शुरू किया तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनमें से सबसे ज़्यादा चिंता वाली बात यह थी कि उन्हें लोगों को अन्य बड़े ट्रैवल ब्रांडों को चुनने के बजाये अपना ट्रेवल प्लान अपनाने के लिए प्रेरित करना था।
"खुद को स्थापित करना एक बड़ी समस्या है। फिर ऐसे लोग भी होते हैं जिनको आप पर भरोसा नहीं होता। यह व्यक्ति कौन है? क्या वह जानती है कि वह क्या कर रही है? वह हमें कैसे ले जायेगी? क्या हम सेफ रहेंगे? क्या हम एक अच्छे होटल में रहेंगे? ये सभी प्रश्न आते हैं खासकर जब महिलाओं की बात हो।"
उनकी यह अनुभवी यात्रा तेज़ी से बढ़ रही है और अधिक से अधिक लोग अब वो राह चुनना चाहते हैं जिसपर बहुत कम लोग चलना चाहते हैं और ऐसे में खुद को भीड़ से अलग करना महत्वपूर्ण हो गया है। विद्या इस बात का ध्यान रखती हैं कि उनका ग्रुप भरपूर मज़े ले।
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विद्या अपने कॉम्पिटिटर्स की तरह ट्रिप्स नहीं बनाती हैं। हालांकि वह यह सुनिश्चित करती हैं कि यदि कोई लेह जा रहा है तो वो पैंगोंग लेक देखने ज़रूर जाएगा, इसलिए वह इसे थोड़ा अलग तरीके से करना पसंद करती हैं। वह अपने लड़कियों के ग्रुप को रात भर पैंगोंग पर ही टेंट्स लगवाकर रुकवाती हैं!
वैसे तो पूरे विश्व में एडवेंचर करते हुए घूमना, नए लोगों से मिलना सुनने में बहुत अच्छा लग रहा होगा मगर जर्नलिस्ट से एन्त्रेप्रेंयूर बनी विद्या के लिए कोई भी ट्रिप काम के सामान ही होता हैं।
"आपको यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि पूरा ट्रिप बिना किसी अड़चन के पूरा हो जाए। हर समय कितनी चिंता लगी रहती है कि कहीं किसी का पासपोर्ट ना खो जाए या किसी का वॉलेट चोरी ना हो जाए। ऐसी चीजें आपको पूरे समय परेशान रखती हैं। हाल ही में, मेरे पास भारत में आने वाली अमेरिकी महिलाओं का एक बड़ा ग्रुप था। मैं चिंतित थी कि कहीं किसी को कोई दिक्कत या उनके साथ कोई हादसा ना हो जाए। हालांकि फोटोज़ में मुझे देखकर ऐसा लगेगा कि मैं बहुत मज़े में हूँ, लेकिन मेरे लिए यह बहुत चिंता की बात है और मुझ पर बहुत सारे काम का बोझ होता है।"
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