इससे जुड़ी एक प्रचलित धारणा यह भी है कि नारीवाद केवल महिला हित के लिए है और संभवत यह पुरुषो व पितृसतात्मक समाज के लिए एक खतरा या चुनौती के तौर पर देखा जाता है।
यही कारण है कि 'नारीवादी' या 'फेमिनिस्ट' जैसे शब्दों को सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित किया जाता रहा है। लेकिन नारीवाद का असल मतलब - समानता है। ऐसे सभी पैमाने जैसे कि - ज़ेंडर, जाति, धर्म, आदि जिनके आधार पर समाज में भेद-भाव किया जाता है, नारीवाद उन सभी पैमानों पर प्रत्येक इंसान के लिए समानता के अधिकार की मांग करता है। यह केवल महिलाओं से या केवल उनके ही अधिकारो से जुड़ा नही है।
नारीवादी सोच हर उन कार्यो पर एक प्रशनचिन्ह है जो समाज के द्वारा केवल लिंग के आधार पर विभाजित किए गए हैं। सदियों से यही चलता भी आ रहा है। जैसे महिलाओं को सिर्फ घर को और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी दी जाती है और पुरुषों पर घर की आर्थिक जिम्मेदारियों का भार होता है।
यही लिंग आधारित सामाजिक कार्य विभाजन अक्सर मनुष्य के तनाव व अल्प विकास का कारण बनता है। नारीवाद इसी शोषण के खिलाफ एक आवाज है।मुख्यत नारीवाद को पुरुषों के लिए खतरे के तौर पर इसलिए देखा जाता है क्योंकि जिन क्षेत्रों में पहले सिर्फ पुरुषों का ही दबदबा होता था अब वहां पर महिलाएं भी काम करती हैं। जिस कारण पुरुषों को लगता है की महिलाएं उनकी प्रतिस्पर्धी हैं और वे उनके स्थान पर कब्जा कर रही हैं।
हमारा भारतीय पितृसत्तात्मक समाज पुरुषों को स्वाभाविक रूप से प्रधान नायक के तौर पर तैयार करता है, और पुरुषों की यह भावना कि महिलाएं हर क्षेत्र में उनके स्थान पर कब्जा कर रही हैं, यही मुख्य कारण है कि वे नारीवाद को महिलाओं के साथ ही जोड़ते हैं और उसे केवल महिला ऊधार का ज़रिया मानते हैं। लेकिन हमें इस पूर्वाग्रह को छोड़कर यह समझने की जरूरत है कि महिलाएं यहां पुरुषों का स्थान या अवसर छीनने के लिए नहीं हैं।
वे यहां अपने खुद के लिए स्थान और अवसर बनाने के लिए हैं। नारीवाद एक तरीका है समावेशी विकास का। जो सबके लिए बराबरी की बात करता है। जहां किसी भी लिंग, जाति, धर्म के होने के बावजूद, प्रत्येक व्यक्ति समानता और समान अवसरों का आनंद ले सकता है। इसलिए नारीवाद या नारीवादी होने का मतलब पुरूष विरोधी होना नही है अपितु समाज में होने वाले लिंग आधारित भेदभाव को चुनौती देना है।