Paris Olympics 2024: अक्सर एक अनजाना नाम इतिहास के पन्नों पर यादगार बन जाता है। ऐसा ही एक नाम है हरियाणा की रीतिका हुड्डा का। भारी वजन वर्ग 76 किलो में कुश्ती करने वाली हुड्डा इस वर्ग में पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली एकमात्र भारतीय महिला हैं। उन्हें 2023 में तिराना, अल्बानिया में हुए U-23 विश्व चैंपियनशिप में ऐतिहासिक जीत के लिए जाना जाता है। वह देश की पहली महिला U-23 विश्व चैंपियन बनीं।
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रीतिका हुड्डा का ओलंपिक सफर
साल 2023 में हुड्डा ने U-23 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। इसके बाद उन्होंने गोवा में हुए नेशनल गेम्स में भाग लिया और पूर्व एशियाई चैंपियन दिव्या काकरान को हराकर स्वर्ण पदक जीता।
बचपन में हुड्डा भी एक ऐसी ही लड़की थी जो अपने भाई-बहनों से लड़ती थी, शरारतें करती थी और स्कूल जाती थी। लेकिन जब उनके परिवार वालों ने देखा कि उनमें एक पहलवान छिपी है, तो चीजें बदलने लगीं।
हुड्डा के परदादा 'बलू पहलवान' के नाम से जाने जाते थे, जो कि एक दिग्गज थे। ताकत और प्रतिस्पर्धा की भावना उनके खून में थी। हुड्डा के सेना अधिकारी पिता ने उन्हें गति दी और समझाया कि वह वास्तव में क्या करना चाहती हैं।
जब उनके परिवार वालों को उनकी पहलवान बनने की क्षमता का एहसास हुआ, तो उन्होंने उन्हें मनदीप द्वारा चलाए जा रहे छुट्टू राम स्टेडियम में दाखिला दिला दिया, जहां से साक्षी मलिक जैसी पदक विजेता निकली थीं। हालांकि, अखाड़े में ज्यादा लड़कियां नहीं थीं। इसलिए हुड्डा को लड़कों से मुकाबला करना पड़ता था।
हुड्डा अपने प्रशिक्षण के प्रति दृढ़ थीं। वह स्टेडियम छोड़ने वाली आखिरी व्यक्ति भी होती थीं जब तक कि उन्हें प्रशिक्षण से संतुष्टि नहीं मिल जाती थी।
राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में हुड्डा की पहली कोशिश
आठ महीने के प्रशिक्षण के बाद, रीतिका हुड्डा ने राज्य स्कूल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी पहली शुरुआत की। तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अखाड़े में शामिल होने के दो साल के भीतर, हुड्डा ने अपने आयु वर्ग की चैंपियनशिप में कई पुरस्कार जीते। उन्होंने 2017 में अपने आयु वर्ग में अपना पहला राष्ट्रीय कैडेट जीता। हालांकि, उन्हें सीनियर स्तर पर खेलने और जीतने के लिए सालों इंतजार करना पड़ा।
कुश्ती के लिए वजन कम करने में विश्वास नहीं करतीं हुड्डा
कई सालों तक हुड्डा ने 72 किलो वर्ग में कुश्ती की, लेकिन अब आगामी ओलंपिक में 76 किलो वर्ग में उतरेंगी। हुड्डा इस विचार से सहमत नहीं हैं कि अपने से कम वजन वर्ग में लड़ने के लिए वजन कम किया जाए।
पेरिस खेलों में हुड्डा का मुकाबला देखना एक और प्रेरणादायक कहानी होगी, चाहे वह पदक जीते या नहीं।
रीतिका हुड्डा सिर्फ एक नाम नहीं हैं, बल्कि देश के लिए एक उम्मीद हैं। उनकी जद्दोजहद, दृढ़ता और प्रतिभा उन्हें एक प्रेरणा बनाती हैं। हम सभी को उनके सफर का समर्थन करना चाहिए और उन्हें शुभकामनाएं देनी चाहिए।