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रानी झांसी रेजिमेंट: जब नेताजी ने महिलाओं को दिया स्वतंत्रता संग्राम का शौर्य

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में बनी रानी झांसी रेजिमेंट ने भारतीय महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका दिया। जानिए कैसे यह रेजिमेंट महिलाओं की शक्ति और समानता का प्रतीक बन गई।

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Vaishali Garg
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस और रानी झांसी रेजिमेंट: भारतीय महिलाओं की नई पहचान

Image Credit: india today

भारत की स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा में बहुत से ऐसे क्षण रहे हैं जब पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का दृष्टिकोण कुछ अलग था। उन्होंने भारतीय महिलाओं को केवल घरों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें युद्ध के मैदान में भी बराबरी की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। यह उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व का ही परिणाम था कि उन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए 'रानी झांसी रेजिमेंट' का गठन किया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अभूतपूर्व और साहसिक कदम था। यह रेजिमेंट न केवल महिलाओं की सैन्य शक्ति को पहचानने का प्रयास थी, बल्कि यह भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका को पुनः परिभाषित करने का एक कदम था।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस और रानी झांसी रेजिमेंट: भारतीय महिलाओं की नई पहचान

महिलाओं का सशक्तिकरण और नेताजी का दृष्टिकोण

इस रेजिमेंट का गठन नेताजी ने 12 जुलाई 1943 को किया, और इसका नाम रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में रखा गया, जो स्वयं एक महान वीरांगना थीं। इस रेजिमेंट ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि देश की स्वतंत्रता के लिए महिलाओं का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली हो सकता है, जितना पुरुषों का। नेताजी का यह कदम एक नया यथार्थ था, जहां महिलाएं अपने पारंपरिक दायित्वों से बाहर निकलकर संघर्ष के मैदान में उतरीं, और यह सिद्ध कर दिया कि महिलाओं में आत्मबल और साहस की कोई कमी नहीं होती।

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रानी झांसी रेजिमेंट: स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका

इस रेजिमेंट के माध्यम से नेताजी ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के लिए लड़ाई केवल पुरुषों का काम नहीं है, बल्कि यह हम सभी का, चाहे पुरुष हो या महिला, सामूहिक संघर्ष है। भारतीय महिलाओं के लिए यह एक बड़ा मोड़ था, जो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के केवल दर्शक नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदार बनने की प्रेरणा देता है। आज भी, जब हम उनकी इस वीरता की गाथा को याद करते हैं, तो हमें यह समझने की आवश्यकता है कि नेताजी का यह निर्णय भारतीय समाज में महिलाओं की ताकत और समानता की पहचान का एक प्रतीक बन चुका है।

सदस्यता और प्रशिक्षण

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रेजिमेंट में अधिकांश महिलाएं मलाया (वर्तमान मलेशिया) के रबर एस्टेट्स से आईं भारतीय मूल की किशोर स्वयंसेविकाएं थीं, जिनमें से कई ने पहले कभी भारत की धरती नहीं देखी थी। प्रारंभिक प्रशिक्षण सिंगापुर में आयोजित किया गया, जहां लगभग 170 कैडेटों ने भाग लिया। उन्हें राइफल, हैंड ग्रेनेड, बायोनेट चार्जिंग, मशीनगन आदि हथियारों के उपयोग का कठोर प्रशिक्षण दिया गया। बाद में, रंगून और बैंकॉक में भी प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए गए, और नवंबर 1943 तक रेजिमेंट की सदस्य संख्या बढ़कर 300 से अधिक हो गई। 

नेतृत्व और भूमिका

रेजिमेंट का नेतृत्व डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन (बाद में लक्ष्मी सहगल) ने किया, जो एक प्रख्यात चिकित्सक थीं। उन्होंने नेताजी के आह्वान पर इस जिम्मेदारी को स्वीकार किया और रेजिमेंट की कमांडर बनीं। रेजिमेंट की महिलाओं ने न केवल सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया, बल्कि नर्सिंग और चिकित्सा सेवाओं में भी योगदान दिया। 

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महिलाओं की भूमिका पर प्रभाव

'रानी झांसी रेजिमेंट' ने भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका को पुनर्परिभाषित किया। इसने यह साबित किया कि महिलाएं भी पुरुषों के समान साहस और समर्पण के साथ देश की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर सकती हैं। इस रेजिमेंट ने भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।

'रानी झांसी रेजिमेंट' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय है, जो हमें यह सिखाता है कि देशभक्ति, साहस और समर्पण में महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह प्रयास भारतीय महिलाओं की शक्ति और क्षमता का प्रतीक है, जो आज भी हमें प्रेरित करता है।

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