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नेपाल में छौपदी प्रथा: महिलाओं के अधिकारों पर कड़ा प्रहार

छौपदी प्रथा नेपाल के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अलग-थलग करने वाली प्राचीन परंपरा है। जानें इसके पीछे के सामाजिक दबाव, स्वास्थ्य प्रभाव, और इसे खत्म करने के प्रयास।

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Vaishali Garg
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Chhaupadi

Chhaupadi: A Tradition That Violates Women's Rights in Nepal: नेपाल के दूरदराज के इलाकों, खासकर पश्चिमी और मध्य-पश्चिमी क्षेत्रों में, छौपदी प्रथा महिलाओं के लिए एक कठोर वास्तविकता है। इस प्राचीन परंपरा के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अपवित्र मानकर उन्हें घर से बाहर, अस्थायी झोपड़ियों या पशुशालाओं में रहने के लिए मजबूर किया जाता है।

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नेपाल में छौपदी प्रथा: महिलाओं के अधिकारों पर कड़ा प्रहार

क्या है छौपदी प्रथा?

छौपदी प्रथा में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को समाज और परिवार से अलग कर दिया जाता है।

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  • महिलाओं को घर, रसोई और मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती।
  • वे किसी व्यक्ति, पशु, पौधों या डेयरी उत्पादों को छू भी नहीं सकतीं।
  • पहली बार मासिक धर्म आने पर यह अलगाव 14 दिनों तक चलता है, और हर महीने 5 दिन तक।

यह परंपरा महिलाओं को असुरक्षित, अस्वच्छ और अमानवीय परिस्थितियों में रहने पर मजबूर करती है।

जीवन की कठिनाइयाँ: अस्वच्छ और असुरक्षित हालात

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छौपदी प्रथा के तहत बनाए गए शेड्स या झोपड़ियां अक्सर अस्वच्छ होती हैं।

  • वेंटिलेशन की कमी, शौचालय का अभाव, और मौसम की मार महिलाओं को बीमारियों का शिकार बनाती है।
  • महिलाएं जंगली जानवरों, सांपों के काटने और शारीरिक शोषण के खतरे में रहती हैं।
  • अकेलापन, भय और अपमान उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।

एक अध्ययन के अनुसार, नेपाल के अछाम जिले में 70% किशोर लड़कियां छौपदी का पालन करती हैं, जिनमें से केवल 30% शेड्स में शौचालय की सुविधा है।

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सामाजिक दबाव का प्रभाव

कानूनी प्रतिबंधों और जागरूकता अभियानों के बावजूद, परिवार और समाज का दबाव महिलाओं को इस परंपरा का पालन करने पर मजबूर करता है। रिषि पंचमी जैसे त्योहार इन धारणाओं को और मजबूत करते हैं, जहां महिलाएं शुद्धिकरण के लिए उपवास और प्रार्थना करती हैं।

छौपदी के खिलाफ सरकारी और संगठनात्मक प्रयास

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कानूनी कदम: 2017 में नेपाल सरकार ने छौपदी को अपराध घोषित किया।

जागरूकता अभियान: मासिक धर्म से जुड़े मिथकों को तोड़ने के लिए शिक्षा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार: कुछ क्षेत्रों में घरों में अलग कमरे बनाए जा रहे हैं।

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हालांकि, इन प्रयासों का क्रियान्वयन अब भी ग्रामीण इलाकों में चुनौती बना हुआ है।

मातृत्व स्वास्थ्य पर प्रभाव

छौपदी का असर केवल मासिक धर्म तक ही सीमित नहीं है। प्रसव के बाद महिलाओं और नवजातों को भी अस्वच्छ झोपड़ियों में 10-14 दिनों तक रहना पड़ता है। इसके कारण प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्राव और संक्रमण जैसी गंभीर समस्याएं होती हैं।

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छौपदी प्रथा महिलाओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन है, जिसे खत्म करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और कड़े कानूनों के पालन की आवश्यकता है। नेपाल की महिलाओं को सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन जीने का हक है।

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