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"Representative Image" Photograph: (Freepik)
दिमागी बिमारी (Dementia) से जूझ रहे बुजुर्गों के लिए नर्सिंग होम्स और संस्थान अब पुराने रूप में दिखने लगे हैं। अब हम एक ऐसी नई और उन्नत प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं, जहां न केवल इन रोगियों की देखभाल होती है, बल्कि उन्हें अपने जीवन में गरिमा, स्वतंत्रता और मानसिक शांति भी मिलती है। यह प्रणाली है डिमेंशिया विलेजेस (Dementia Villages)।
Dementia Villages: मानसिक बीमारी से जूझ रहे बुजुर्गों के लिए सुरक्षित और स्वतंत्र वातावरण
डिमेंशिया क्या है?
डिमेंशिया एक सामान्य शब्द है, जिसका उपयोग मस्तिष्क की कार्यक्षमता में गिरावट को बताने के लिए किया जाता है। इसमें याददाश्त, सोचने, समझने और संवाद करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति का स्वतंत्र रूप से जीवन जीना कठिन हो जाता है। अल्जाइमर रोग इसके सबसे सामान्य प्रकार में से एक है, लेकिन इसके अलावा वास्कुलर डिमेंशिया, ल्यूवी बॉडी डिमेंशिया और फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया जैसे अन्य प्रकार भी हैं।
डिमेंशिया का असर न केवल रोगी पर पड़ता है, बल्कि उनके देखभाल करने वालों पर भी भारी दबाव डालता है। आमतौर पर, डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति अपना नाम और जगह भूलने से लेकर, रोजमर्रा की गतिविधियों में भी परेशानी महसूस करता है, जैसे खाना खाना या कपड़े पहनना। यह स्थिति एक तरह की अजनबियत और मानसिक भ्रम का कारण बनती है।
देखभाल करने वालों की चुनौतियाँ
देखभाल करने वालों को हमेशा इस मानसिक और शारीरिक दबाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें यह संतुलन बनाए रखना होता है कि वे अपने प्रियजनों का सही तरीके से ध्यान रखें, जबकि अपने व्यक्तिगत जीवन और जिम्मेदारियों को भी न भूलें। पारंपरिक नर्सिंग होम्स में, जहां सुरक्षा प्राथमिकता पर होती है, मरीजों को आमतौर पर स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सम्मान की कमी होती है। ये संस्थान मेडिकल रूटीन पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जो कभी-कभी रोगियों की सामाजिक और भावनात्मक भलाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
डिमेंशिया विलेज का विचार
यह कमी और चुनौती वहीं पर डिमेंशिया विलेजेस (Dementia Villages) पूरी करती हैं। 2009 में, नीदरलैंड्स के वेस्प शहर में पहला डिमेंशिया विलेज होगेविक (Hogeweyk) स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को उनके जीवन में गरिमा, स्वतंत्रता और सामान्यता का अहसास कराना था। इस गाँव में एक ऐसा वातावरण तैयार किया गया था, जहां लोग अपने जीवन के छोटे-छोटे फैसले खुद ले सकते थे, जैसे वे रोजमर्रा की चीजें खरीद सकते थे, दोस्तों से मिल सकते थे और अपने पसंदीदा कार्य कर सकते थे।
होगेविक: डिमेंशिया के लिए एक आदर्श मॉडल
होगेविक का मुख्य उद्देश्य यह था कि डिमेंशिया से पीड़ित लोग अब सिर्फ अपनी बीमारी के चश्मे से न देखे जाएं, बल्कि उन्हें उनके सपने, भावनाएँ और इच्छाएँ भी महत्त्वपूर्ण समझी जाएं। यहाँ का माहौल इस तरह से डिजाइन किया गया था कि रोगी स्वतंत्रता से घूम सकते थे, लेकिन सुरक्षा भी बनी रहती थी। छोटे-छोटे समूहों में बुजुर्गों को रहकर, एक घर जैसा माहौल प्रदान किया गया, जिससे उन्हें अपने जीवन में एक सामान्य अनुभव का अहसास होता था।
होगेविक का मॉडल इतना सफल रहा कि इसे दुनियाभर के कई देशों में लागू किया गया, और इससे डिमेंशिया के रोगियों की जीवन गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार आया। अब दुनिया भर में कई ऐसे गाँव और संस्थान बन चुके हैं, जो इस मॉडल को अपनाकर बुजुर्गों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं।
क्यों जरूरी हैं डिमेंशिया विलेजेस?
डिमेंशिया विलेजेस के बनने से न केवल रोगियों को स्वतंत्रता और गरिमा मिलती है, बल्कि उनके देखभाल करने वालों का बोझ भी कम होता है। जब एक सुरक्षित और सहायक वातावरण में लोग रहते हैं, तो उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसके अलावा, इन गाँवों में हर किसी को अपनी पहचान, रुचियों और पसंद के अनुसार जीवन जीने का अवसर मिलता है, जिससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
डिमेंशिया विलेजेस न केवल चिकित्सा की सुविधा प्रदान करते हैं, बल्कि वे एक नया सामाजिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं। ये गाँव रोगियों को उनके घर जैसा अनुभव देते हैं, जहां वे स्वतंत्र रूप से अपने जीवन का आनंद ले सकते हैं। यह विचार न केवल डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के लिए, बल्कि उनके देखभाल करने वालों के लिए भी एक बड़ा बदलाव लेकर आया है। इन गाँवों के माध्यम से, हम देख सकते हैं कि किस तरह एक सोच-समझकर किया गया डिज़ाइन एक बीमारी के चक्र को तोड़ सकता है और लोगों को सम्मान, स्वतंत्रता और गरिमा का अहसास दिला सकता है।