केरल की रहने वाली राधामणि, जिन्हें मणियम्मा के नाम से जाना जाता है, ने उम्र और लिंग की सभी बाधाओं को पार करते हुए अपनी ड्राइविंग के जुनून को कायम रखा है। एक समय जो महिला गाड़ी चलाने से डरती थीं, आज वह 74 साल की उम्र में 12 से अधिक वाहनों के लाइसेंस रखती हैं और केरल की पहली भारी वाहन ड्राइविंग स्कूल की संस्थापक हैं। उनकी कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह साबित करती है कि सच्ची लगन और समर्थन से कोई भी बाधा अजेय नहीं होती।
74 वर्षीय मणियम्मा: उम्र और लिंग की बाधाओं को पार करने वाली केरल की पहली महिला भारी वाहन ड्राइवर
मणियम्मा का सफर: डर से ड्राइविंग तक
मणियम्मा का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था और उनकी शादी 10वीं की परीक्षा देने के एक महीने बाद हो गई थी। उनके पति ने हमेशा उनका साथ दिया और 1981 में उन्होंने अपने पति के प्रोत्साहन से ड्राइविंग सीखने का फैसला किया। शुरुआती डर को पीछे छोड़ते हुए, मणियम्मा ने ड्राइविंग में महारत हासिल की और यहां तक कि बस चलाने में भी सक्षम हो गईं।
पहली भारी वाहन ड्राइविंग स्कूल की स्थापना
1988 में, मणियम्मा ने केरल में पहला भारी वाहन ड्राइविंग स्कूल स्थापित किया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनके पति की प्रेरणा से उन्होंने भारी वाहन लाइसेंस लिया और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि 2004 में उन्होंने अपने पति को एक दुर्घटना में खो दिया, लेकिन मणियम्मा ने हिम्मत नहीं हारी और उनके सपने को आगे बढ़ाया।
रिकॉर्ड्स की दुनिया में मणियम्मा
मणियम्मा ने 2014 से उपकरणों के लाइसेंस लेने शुरू किए, जिनमें रोड रोलर, ट्रैक्टर, क्रेन और फोर्कलिफ्ट शामिल हैं। उनके पोते ने जब देखा कि उनके पास इतने सारे लाइसेंस हैं, तो उन्होंने उन्हें भारतीय रिकॉर्ड्स की किताब में दर्ज कराने का फैसला किया। आज मणियम्मा सबसे अधिक लाइसेंस रखने वाली सबसे बुजुर्ग महिला हैं और उनका पोता सबसे कम उम्र का लाइसेंस धारक है।
महिलाओं के प्रति धारणा को बदलने का संदेश
मणियम्मा का मानना है कि महिलाओं में ड्राइविंग के प्रति डर का भाव उनकी आत्मविश्वास को प्रभावित करता है, लेकिन इस सोच को बदलने की जरूरत है। उनका कहना है, "आपको अपने भविष्य का फैसला खुद करना चाहिए, उसे किस्मत पर नहीं छोड़ना चाहिए।"
मणियम्मा की कहानी न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि यह बताती है कि उम्र और लिंग किसी भी व्यक्ति की क्षमताओं को सीमित नहीं कर सकते। उनके हौसले और समर्पण ने उन्हें एक अद्वितीय स्थान पर पहुंचा दिया है, और वह समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं।