दानी जनजाति की महिलाएं अपनों की मौत पर उंगलियां क्यों काटती हैं?

जानिए पापुआ, इंडोनेशिया की दानी जनजाति की प्राचीन "इकिपालिन" प्रथा, जहां महिलाएं शोक में अपनी उंगली काटकर अपने प्रियजनों के प्रति प्रेम और बलिदान व्यक्त करती हैं।

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Vaishali Garg
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दानी जनजाति की 'इकिपालिन' प्रथा, जो महिलाओं को अपने किसी प्रियजन के निधन पर अपनी एक उंगली काटने के लिए मजबूर करती है, एक ऐसी परंपरा है जो समाज के दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक और सवाल उठाने वाली है। इस प्रथा को दुख, बलिदान और प्यार का प्रतीक बताया जाता है, लेकिन क्या यह सचमुच प्यार की निशानी है या फिर महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से त्रस्त करने का एक तरीका?

दानी जनजाति की महिलाएं अपनों की मौत पर उंगलियां क्यों काटती हैं?

महिलाओं पर पड़ी अमानवीय दबाव की छाया

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इकिपालिन प्रथा के तहत, जब किसी परिवार में कोई प्रियजन मरा करता है, तो महिलाओं को अपनी एक उंगली काटने के लिए बाध्य किया जाता है। यह न केवल शारीरिक पीड़ा है, बल्कि महिलाओं पर एक और अमानवीय दबाव है, जो समाज द्वारा उन पर डाला जाता है। क्या यह सही है कि किसी की पीड़ा को एक शारीरिक बलिदान से मापा जाए? क्या हम यह मान सकते हैं कि एक महिला को अपने दुख को और भी अधिक बढ़ाने के लिए एक कष्ट सहने को कहा जाए?

बलिदान और प्रेम का प्रश्न

इस प्रथा को प्रेम और बलिदान के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन क्या यह वाकई इस तरह का प्रतीक है? प्रेम और बलिदान का असली अर्थ क्या है? क्या प्रेम इस बात में निहित है कि आप अपने शरीर को नुकसान पहुंचाएं, या फिर यह उस व्यक्ति के प्रति आपके विचारों, कार्यों और स्मृतियों के माध्यम से जीवित रहता है? इस प्रकार की शारीरिक पीड़ा को बलिदान का नाम देना क्या सचमुच उचित है, या यह सिर्फ एक तरीके का शोषण है जो महिलाओं को अपनी शारीरिक अखंडता को त्यागने के लिए मजबूर करता है?

मानसिक और शारीरिक आघात

यह प्रथा महिलाओं को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से आघात पहुंचाती है। न केवल यह उन्हें शारीरिक नुकसान पहुंचाती है, बल्कि समाज में उनकी भूमिका और स्थान को भी संकीर्ण बनाती है। क्या यह महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है? क्या यह एक ऐसी प्रथा नहीं है, जो महिलाओं को केवल शारीरिक दर्द से ही नहीं, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता से भी वंचित करती है?

आधुनिकता और परंपरा का टकराव

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हालांकि यह प्रथा अब प्रतिबंधित हो चुकी है, लेकिन इसका पालन अब भी गुप्त रूप से किया जाता है। यह सवाल उठता है कि हम आधुनिक समाज में रहने के बावजूद अतीत की ऐसी प्रथाओं को क्यों सहन करते हैं? क्या हम सचमुच इस प्रकार की परंपराओं को सही ठहराकर महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं?

इकिपालिन जैसी परंपरा जो महिलाओं को शारीरिक बलिदान करने के लिए मजबूर करती है, न केवल शारीरिक रूप से गलत है, बल्कि यह मानसिक रूप से भी महिलाओं के आत्मसम्मान पर गंभीर आघात पहुंचाती है। हमें ऐसी प्रथाओं के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए, जो महिलाओं को अपने शरीर और आत्मसम्मान से समझौता करने पर मजबूर करती हैं। समाज को चाहिए कि वह महिलाओं के प्रति अपनी सोच को बदले और उन्हें स्वतंत्रता, सम्मान और प्यार की सही परिभाषा प्रदानकरे।