गीतिका लिडर, दिवंगत ब्रिगेडियर एल. एस. (टोनी) लिडर की पत्नी, 2021 में हुए हेलीकॉप्टर क्रैश के बाद अपनी ज़िंदगी को नए सिरे से संभालने की कहानी साझा कर रही हैं। इस हादसे ने न सिर्फ उनके पति बल्कि जनरल बिपिन रावत और अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की भी जान ले ली। इस त्रासदी के बाद गीतिका को अकेले अपनी बेटी की परवरिश करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके जीवन की यह यात्रा हिम्मत, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल है।
गीतिका लिडर की कहानी: हौसले, संघर्ष और नए जीवन की मिसाल
हादसे की वो मनहूस घड़ी
गीतिका याद करती हैं कि हादसे का दिन एक आम दिन की तरह ही शुरू हुआ था। उनके पति, ब्रिगेडियर लिडर, जनरल बिपिन रावत के साथ वेलिंगटन जा रहे थे। उन्होंने रोज़ की तरह अपने पति को विदा किया, लंच और स्नैक्स पैक किए, यह जाने बिना कि यह उनकी आखिरी मुलाकात होगी।
कुछ घंटों बाद, जब हेलीकॉप्टर क्रैश की खबर आई, तो उनके लिए यह यकीन करना मुश्किल था। गीतिका बताती हैं कि पाँच घंटे तक अनिश्चितता और डर के बीच इंतज़ार करना उनके जीवन के सबसे कठिन पलों में से एक था। उम्मीद थी कि शायद उनके पति बच गए हों, लेकिन जब वरिष्ठ अधिकारी उनके घर पहुंचे, तो उनकी सबसे बुरी आशंका सच साबित हुई।
आर्मी वाइफ होने की चुनौतियाँ
गीतिका के अनुसार, एक आर्मी वाइफ की ज़िंदगी में सिर्फ प्यार और गर्व नहीं, बल्कि अनगिनत त्याग और चुनौतियाँ भी शामिल होती हैं। उन्होंने बताया कि आर्मी परिवारों के लिए हर "गुडबाय" एक अनिश्चितता भरा होता है। हर बार जब कोई सैनिक ड्यूटी पर जाता है, तो उसके परिवार के लिए यह आशंका बनी रहती है कि वह लौटेगा या नहीं।
वह कहती हैं, "मुझे हमेशा पता था कि मेरे पति का काम खतरों से भरा है, लेकिन इस तरह से उन्हें खो दूंगी, इसकी कभी कल्पना नहीं की थी।"
शोक और स्वीकृति का सफर
इस हादसे के बाद, गीतिका को शोक के पाँच चरणों (इनकार, गुस्सा, मोलभाव, अवसाद और स्वीकृति) से गुज़रना पड़ा। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने महज़ 12 घंटों के भीतर ही इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया। यह सिर्फ उनकी मानसिक मजबूती ही नहीं, बल्कि उनकी बेटी, वृद्ध माता-पिता और पूरे परिवार के प्रति उनकी जिम्मेदारी भी थी।
गीतिका कहती हैं, "मैं जानती थी कि अगर मैं बिखर गई, तो मेरा परिवार भी बिखर जाएगा। मेरे पति चाहते थे कि मैं मज़बूती से आगे बढ़ूँ, और मैंने वही किया।"
एकल माता-पिता बनने की चुनौती
गीतिका के लिए अपनी बेटी आशना की परवरिश करना सबसे बड़ा दायित्व था। उन्होंने अपनी बेटी को समझाया कि "सबसे बुरा समय अब खत्म हो चुका है, अब हमें आगे बढ़ना है।" उन्होंने अपनी बेटी को सकारात्मकता और आत्मनिर्भरता सिखाई, ताकि वह भी जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सके।
उन्होंने यह भी बताया कि समाज में अकेली माँ होने के नाते उन्हें कई पूर्वाग्रहों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया।
बांझपन और समाज का दबाव
गीतिका ने बांझपन से जुड़े अपने संघर्षों के बारे में भी खुलकर बात की। उन्होंने कई बार गर्भपात का दर्द झेला और समाज के अनगिनत तानों का सामना किया। वह बताती हैं कि "हमारे समाज में माँ बनना ही महिला के अस्तित्व की पहचान मान लिया जाता है, जो कि गलत है।"
आखिरकार, उनकी बेटी आशना उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं थी, जिसने उनकी ज़िंदगी को एक नया मकसद दिया।
स्वतंत्र जीवन और आत्मनिर्भरता
पति के जाने के बाद, गीतिका को हर फैसले अकेले लेने पड़े। उन्होंने खुद को संभाला, आत्मविश्वास हासिल किया और जीवन को नए तरीके से जीना सीखा।
वह बताती हैं, "पहले मेरे पति के फैसले मुझे सुरक्षा का एहसास कराते थे, लेकिन अब मैंने सीखा है कि खुद पर भरोसा कैसे किया जाए।"
उन्होंने अपनी बेटी को भी यही सिखाया कि एक महिला को आत्मनिर्भर और सतर्क रहना चाहिए।
शिक्षा में करियर: बच्चों से जुड़ाव
गीतिका ने अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा देने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में करियर चुना। उन्होंने 2013 में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और अब यह उनके लिए एक जुनून बन गया है।
उनका कहना है कि, "बच्चों के साथ समय बिताना मेरे दिन का सबसे सुखद हिस्सा होता है।"
गीतिका लिडर की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, आगे बढ़ने का रास्ता हमेशा होता है। उन्होंने अपनी हिम्मत, आत्मनिर्भरता और अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी को सबसे ऊपर रखा और एक नई ज़िंदगी बनाई। उनकी किताब "I Am A Soldier’s Wife" उनकी इसी प्रेरणादायक यात्रा की कहानी है।
उनका संदेश साफ़ है: "हर दिन को आखिरी दिन की तरह जियो, अपनों के साथ हर लम्हा जियो और ज़िंदगी में चाहे जो भी हो, खुद को कभी कमजोर मत समझो।"