Image Credit: Tata Trust
Swings and Saree: Meherbai Tata - India's First Olympic Tennis Player: पेरिस ओलंपिक्स 2024 की धूम अभी से देश में शुरू हो चुकी है। हमारे खिलाड़ी देश का नाम रोशन करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मगर इस जोश के साथ-साथ उन दिग्गजों को भी याद करना ज़रूरी है जिन्होंने भारत को अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में पहचान दिलाई। ऐसी ही एक अग्रणी महिला हैं लेडी मेहरबाई टाटा। सौ साल पहले वह ओलंपिक खेलों में मिश्रित युगल टेनिस खेलने वाली भारत की पहली महिला थीं।
Meherbai Tata: साड़ी में टेनिस खेलने वाली भारत की पहली ओलंपियन
स्वदेशी अंदाज में वैश्विक प्रतिस्पर्धा (Global Competition with Traditional Touch)
मेहरबाई मैदान पर तो सफेद पोशाक में ही उतरीं, लेकिन बाकी खिलाड़ियों से अलग दिखीं। उन्होंने स्कर्ट और टी-शर्ट की जगह पारसी साड़ी पहनकर न सिर्फ खेल का जौहर दिखाया बल्कि सांस्कृतिक रूढ़ियों को भी तोड़ा।
मेहरबाई का जन्म 10 अक्टूबर 1879 को हुआ था। उनके पिता जेरबाई भाभा मैसूर राज्य के शिक्षा महानिरीक्षक थे। पारसी परिवार में जन्मीं मीराबाई को पश्चिमी उदार विचारों के साथ भारतीय संस्कृति का भी मिश्रण मिला। उन्होंने मैट्रिक के बाद अंग्रेजी और लैटिन की पढ़ाई की और कॉलेज में विज्ञान विषय लिया।
मेहरबाई की मुलाकात जमशेदजी टाटा के बेटे दोराबजी टाटा से हुई। दोनों की रुचियां, जैसे खेल और यात्रा, एक जैसी थीं। मीराबाई और दोराबजी की शादी 14 फरवरी 1898 को हुई। 1910 में दोराबजी को उद्योग जगत में योगदान के लिए नाइटहुड मिला, जिसके बाद मीराबाई को लेडी का खिताब मिला। टेनिस की शौकीन मीराबाई ने वेस्टर्न इंडिया टेनिस टूर्नामेंट में ट्रिपल क्राउन जीता था, जो उनकी कई उपलब्धियों में से एक है।
टाटा विरासत की रक्षक (Guardian of the Tata Legacy)
आज टाटा ग्रुप के बिना भारत की कल्पना भी मुश्किल है। लेकिन इस विरासत को बचाने में अहम भूमिका निभाने वाली एक महत्वपूर्ण शख्सियत को भुला दिया जाता है। वे हैं लेडी मीराबाई टाटा, जिन्होंने जरूरत के वक्त टाटा ग्रुप को संकट से निकाला।
यही नहीं, मेहरबाई ने टाटा ग्रुप के भविष्य को भी आकार दिया। अपने परोपकारी कार्यों के माध्यम से उन्होंने कंपनी को कई योगदान दिए। जब कंपनी संकट में थी, तब मीराबाई ने निस्वार्थ भाव से अपने 245.35 कैरेट के जुबली हीरे को गिरवी रख दिया था। यह हीरा उनके पति दोराबजी की तरफ से प्यार का प्रतीक था और कोहिनूर से दोगुना बड़ा था।
महिला सशक्तिकरण की ध्वजवाहक (Champion of Women's Empowerment)
लेडी मेहरबाई सिर्फ टाटा परिवार से जुड़े होने के लिए ही नहीं जानी जातीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। उनका मानना था कि भारत तभी तरक्की कर सकता है जब महिलाओं को समाज में ऊंचे तबके के पुरुषों के समान दर्जा दिया जाए। उन्होंने महिला शिक्षा और समान अधिकारों की पुरजोर वकालत की।
नेशनल विमेन्स काउंसिल और ऑल इंडिया विमेन्स कॉन्फ्रेंस की सदस्य रहीं लेडी मीराबाई ने 1927 में हिंदू विवाह विधेयक के लिए जोरदार लड़ाई लड़ी। 1929 में मीराबाई के प्रयासों से च बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित हुआ। उन्होंने प्रस्तावित नए संविधान में महिलाओं के लिए समान राजनीतिक दर्जा की भी मांग की।
मेहरबाई ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी वूमेन्स काउंसिल की स्थापना की और भारत को इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ वूमेन से जोड़ा। वह रेड क्रॉस सोसाइटी की सदस्य भी रहीं, जिसके माध्यम से उन्होंने महिलाओं, प्रवासियों, मजदूरों और अन्य वंचितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
18 जून 1931 को ल्यूकेमिया से लड़ने के बाद रूथिन, नॉर्थ वेल्स के एक नर्सिंग होम में लेडी मीराबाई टाटा का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के कुछ ही समय बाद, दोराबजी ने अपनी अधिकांश व्यक्तिगत संपत्ति दान कर दी, जिसमें विभिन्न टाटा उद्यमों में पर्याप्त मात्रा में शेयरहोल्डिंग, जमीन संपत्ति और उनकी दिवंगत पत्नी के आभूषण शामिल थे।
मीराबाई टाटा न सिर्फ एक सफल खिलाड़ी थीं बल्कि समाज सुधारक और परोपकारी महिला भी थीं। उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा और महिलाओं के लिए समानता का मार्ग प्रशस्त किया। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है।