Why Are Women Obsessed With Weight? दुनिया भर में सदियों से महिलाओं को एक खामोश महामारी जकड़े हुए है - वह है शारीरिक बनावट, खासकर वजन को लेकर उनका बेइंतहा जुनून। यह जुनून सिर्फ आईने के सामने खड़े होकर खुद को आंकने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके दैनिक जीवन में भी व्याप्त रहता है, चाहे वह कपड़ों का चुनाव हो, खानपान का फैसला हो या फिर रोज़मर्रा की बातचीत ही क्यों ना हो। The Rulebreaker Show के लेटेस्ट एपिसोड में, कंटेंट क्रिएटर Sakshi Sindwani ने शरीर की छवि और वजन के इर्द-गिर्द इस चिर-परिचित संवाद पर गहराई से चर्चा की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार यह शारीरिक बनावट को लेकर जुनून कम उम्र से ही महिलाओं के मनोविज्ञान को प्रभावित करता है और उनके पूरे जीवन में अस्वस्थ्य आत्म-छवि को जन्म देता है।
महिलाएं वजन को लेकर इतना जुनूनी क्यों होती हैं?
Sakshi Sindwani का अपने शरीर की छवि के साथ रिश्ता
एक कंटेंट क्रिएटर के रूप में, सार्वजनिक जीवन में होने का मतलब है नेगेटिव फीडबैक, ट्रोलिंग या तुलना का सामना करना। सोशल मीडिया की दुनिया में, किसी व्यक्ति को उसकी शारीरिक बनावट से परे देखना बहुत कम होता है। खासकर उन महिलाओं के मामले में जिनकी बॉडी टाइप या त्वचा पारंपरिक 'सौंदर्य मानदंडों' पर खरी नहीं उतरती है, तो उनके शरीर को उनके कंटेंट का विस्तार माना जाता है।
इन्फ्लुएंसर साक्षी को भी अपने फैशन कंटेंट में शरीर को सकारात्मक रूप से अपनाने और शारीरिक बनावट को स्वीकार करने के बारे में बात करने की उम्मीद का सामना करना पड़ता है, भले ही यह ज़रूरी न हो। The Rulebreaker Show में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए, साक्षी ने इस बात पर चर्चा की कि वजन और शरीर की छवि के बारे में ये बातचीत इतनी सर्वव्यापी क्यों है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं का शारीरिक बनावट को लेकर जुनून "हम जिस तरह से पली बढ़ी हैं, दुनिया के सौंदर्य मानदंडों और पितृसत्ता में निहित है।" सिंदवानी ने कहा, "जब हम महिलाएं लगभग 16 साल की थीं, तब हमें 'स्लट-शेमिंग' का सामना करना पड़ता था। इसलिए हम लगातार अपने शरीर को लेकर सजग रहती हैं।"
शारीरिक छवि और आत्म-छवि: महिलाओं के दिमाग को कैसे कंडीशन किया जाता है
साक्षी का मानना है कि शारीरिक बनावट के बारे में महिलाओं की मानसिकता सिर्फ सौंदर्य मानदंडों को पूरा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्म-मूल्य के बारे में असुरक्षाओं को भी जन्म देती है और हानिकारक मनोवैज्ञानिक चक्रों को कायम रखती है। उन्होंने बताया कि "हम महिलाएं सोचती हैं कि अगर हम परफेक्ट नहीं हैं, तो लोग हमारी तरफ आकर्षित नहीं होंगे।"
सिंदवानी ने आगे बताया कि इस तरह का विश्वास महिलाओं को बाहरी स्रोतों, खासकर रोमांटिक रिश्तों से मान्यता प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित करता है। उन्होंने बताया कि महिलाओं का मानना है कि एक खास तरह से ना दिखने से हमें वो आकर्षण और स्नेह नहीं मिल पाएगा जिसकी हम तलाश कर रही हैं। इससे आगे चलकर खुद के बनाए खालीपन को भरने के लिए किसी साथी को ढूंढने की धारणा बनती है।
"मुझे नहीं पता कि महिलाएं खुद को बुद्धिमान होने पर भी अधूरा क्यों समझती हैं। वो इस तथ्य पर लगातार अटकी रहती हैं कि 'मुझे अपने आप का सबसे परफेक्ट वर्जन बनना है, वरना मैं कुछ नहीं हूं'।"
साक्षी ने बड़ी ही सटीक तरीके से बताया कि कैसे महिलाओं को बार-बार इस बात का एहसास कराया जाता है कि वो प्यार पाने के लायक नहीं हैं, इस वजह से वो बाहरी चीज़ों से खुद को अच्छा साबित करने की कोशिश करती हैं और फिर भी अंदर से अधूरापन महसूस करती हैं। इस जाल को तोड़ने की ख्वाहिश रखते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि महिलाओं को अपने शरीर को उसकी खूबियों और खामियों के साथ स्वीकार करने के अपने आंतरिक द्वंद्व को सुलझाने का मौका नहीं मिलता है।