Advertisment

भारत में क्यों है Fair Skin का जुनून? जानें सच्चाई क्या है!

क्या आप जानते हैं कि अगर आपकी त्वचा गोरी नहीं है, तो आपका जीवन कैसा हो सकता है? कई लोगों का मानना है कि गोरी त्वचा ही खूबसूरती है और बाकी सब कम हैं। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? आइए आज इस गंभीर मुद्दे पर बात करते हैं।

author-image
Vaishali Garg
New Update
Why Indians Are Obsessed With Fair Skin?

Why Indians Are Obsessed With Fair Skin? क्या आप जानते हैं कि अगर आपकी त्वचा गोरी नहीं है, तो आपका जीवन कैसा हो सकता है? कई लोगों का मानना है कि गोरी त्वचा ही खूबसूरती है और बाकी सब कम हैं। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? आइए आज इस गंभीर मुद्दे पर बात करते हैं।

Advertisment

भारत में क्यों है Fair Skin का जुनून?

कैसे शुरू हुआ गोरी त्वचा का जुनून

बॉलीवुड गानों से लेकर विज्ञापनों तक, हर जगह गोरी त्वचा को ही खूबसूरती का पैमाना बताया जाता है। 1919 में पहली फेयरनेस क्रीम "अफगान स्नो" आई और उसके बाद 1975 में एक जानी-मानी कंपनी की क्रीम ने सबकुछ बदल दिया। इन क्रीमों के विज्ञापनों में अक्सर सांवली त्वचा को कमतर और गोरी त्वचा को बेहतर दिखाया जाता है। भारत में हर 10 में से 7 लोग कोई न कोई फेयरनेस प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं। मीडिया और मनोरंजन उद्योगों का लोगों की सोच पर गहरा प्रभाव पड़ता है, और ये उद्योग अस्वस्थ और अवास्तविक सौंदर्य मानकों को बढ़ावा दे रहे हैं।

Advertisment

शादी और रंग

शादी के विज्ञापनों में भी अक्सर गोरे दूल्हे-दुल्हन की ही तलाश दिखाई जाती है। यह जुनून सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि 2005 में भारत की पहली पुरुषों की फेयरनेस क्रीम भी आ गई।

बॉलीवुड का प्रभाव

Advertisment

बॉलीवुड फिल्मों और टीवी शो में अक्सर सांवली त्वचा वाले लोगों को शादी करने में मुश्किलें दिखाई जाती हैं। यहां तक कि बड़े कलाकारों द्वारा ऐसे उत्पादों का विज्ञापन करना स्थिति को और खराब कर देता है।

"ये काली काली आँखें, ये गोरे गोरे गाल।" "तेनु काला चश्मा जचदा ए, जचदा ऐ गोरे मुखड़े पे।" "चुरा के दिल मेरा, गोरीया चली।"

ये कुछ लोकप्रिय बॉलीवुड गाने हैं जो सीधे-सीधे रंगभेद को बढ़ावा देते हैं। हम इन्हें इतनी आसानी से स्वीकार लेते हैं कि हमें एहसास ही नहीं होता कि ये कितना गलत है।

Advertisment

इतिहास का प्रभाव

गोरी त्वचा का जुनून हमारे इतिहास से भी जुड़ा है। शासक वर्ग आमतौर पर गोरे होते थे, जिससे गोरी त्वचा को शक्ति से जोड़ा जाने लगा। 

रंगभेद, वर्गभेद और जातिवाद

Advertisment

रंगभेद, वर्गभेद और जातिवाद एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। फिल्मों में भी ऊँची जाति के लोग गोरे दिखाए जाते हैं, जबकि निम्न वर्ग के लोगों को सांवला। इसका मुख्य कारण यह है कि श्रमिक वर्ग दिन भर धूप में काम करता है जबकि उच्च वर्ग ज्यादातर घर के अंदर रहता है।

2014 में सरकार ने ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगा दी जिनमें सांवले लोगों को कमतर दिखाया जाता था, लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हुआ। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए सबसे पहले अपना नजरिया बदलना होगा और ऐसी चीजों का इस्तेमाल और प्रचार बंद करना होगा जो नस्लवाद को बढ़ावा देती हैं।

इस गंभीर मुद्दे पर आपकी क्या राय है? कमेंट में बताएं। 

Advertisment

शादी बॉलीवुड Fair Skin Indians
Advertisment