Parenting Tips: बच्चों को सीखने का अवसर दें, बार-बार ‘ना’ न कहें

माता-पिता हमेशा अपने बच्चों के लिए चिंतित रहते हैं, और वे कभी उन्हें कष्ट में नहीं देखना चाहते। कभी-कभी यही चिंता उन्हें अपने बच्चों को “ना” कहने के रूप में व्यक्त करनी पड़ती है।

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Kopal Porwal
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Parenting

Let Children Explore Stop Saying No All the Time: माता-पिता हमेशा अपने बच्चों के लिए चिंतित रहते हैं, और वे कभी उन्हें कष्ट में नहीं देखना चाहते। कभी-कभी यही चिंता उन्हें अपने बच्चों को “ना” कहने के रूप में व्यक्त करनी पड़ती है, क्योंकि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं और नई दुनिया को समझने की कोशिश कर रहे होते हैं। इसी दौरान यदि उन्हें किसी बात के लिए बार-बार मना किया जाए, तो यह उनके माता-पिता के साथ संबंधों पर गलत प्रभाव डाल सकता है।

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बच्चों को सीखने का अवसर दें, बार-बार ‘ना’ न कहें

1. बच्चों की जिज्ञासा और माता-पिता की चिंता

बच्चों की जिज्ञासा स्वाभाविक होती है। वे हर चीज़ को समझना, जानना और अनुभव करना चाहते हैं। माता-पिता की चिंता सही है, लेकिन बार-बार “ना” कहा जाना बच्चों के मन में दूरी और असुरक्षा पैदा कर सकता है। इससे बच्चे आत्मविश्वास खोने लगते हैं और माता-पिता के साथ उनका संवाद कम हो सकता है।

2. ‘ना’ कहने के नुकसान

ज़रूरत से ज़्यादा पाबंदियाँ बच्चों को चिड़चिड़ा बना सकती हैं। वे बड़ों की बातों को अनसुना करने लगते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी कोई बात समझी ही नहीं जाती। धीरे-धीरे वे बातें छुपाना शुरू कर देते हैं। लगातार मना करने से बच्चे मानसिक तनाव भी महसूस कर सकते हैं और नई चीज़ें सीखने या करने से डरने लगते हैं। यह दूरी माता-पिता और बच्चों के रिश्ते को कमजोर बना सकती है।

3. बच्चों को सीखने का अवसर देना क्यों ज़रूरी है

जब बच्चों को स्वयं सीखने और अनुभव करने का मौका मिलता है, तो उनका कॉन्फिडेंस बहुत बढ़ता है। अच्छे कार्यों पर प्रशंसा और गलतियों पर सीख, यह दोनों ही उनके विकास के लिए ज़रूरी हैं। यदि उन्हें टोका ही जाता रहे और उनकी बातों पर ध्यान न दिया जाए, तो वे समाज और सीखने की प्रक्रिया से दूरी बना लेते हैं। इसका उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन पर भी गहरा असर पड़ता है।

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4. प्यार और समझदारी से “ना” कैसे कहें

सीधे मना करने की बजाय विकल्प प्रदान करने से बच्चे सुरक्षित भी महसूस करते हैं और समझ भी पाते हैं। जैसे: “यह अभी नहीं, पर हम बाद में कर सकते हैं।”“यह इसलिए सुरक्षित नहीं है, लेकिन तुम यह कोशिश कर सकते हो।” “मैं तुम्हारी बात समझता हूँ, चलो कोई और तरीका ढूँढते हैं।” “चलो एक बार कर लो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” ऐसे जवाब बच्चों में भरोसा पैदा करते हैं और उन्हें मार्गदर्शन मिलता है। इससे माता-पिता और बच्चों का भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है।

5. स्वस्थ संवाद का महत्त्व

जब माता-पिता बच्चों की बात सुनते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं, तो बच्चे खुलकर अपनी बातें साझा करते हैं। इससे उनका डर कम होता है और वे समझदारी से रिश्ते बनाना सीखते हैं। स्वस्थ संवाद बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास की सबसे मज़बूत नींव है।

कॉन्फिडेंस children