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Photograph: (freepik)
भारतीय घरों में बच्चों को अक्सर डांटकर ही समझाया जाता है। जब भी बच्चा कोई गलती करता है तो सबसे पहला पेरेंट्स का रिएक्शन डांटना ही होता है। इससे कई बार बच्चा अपनी गलतियाँ छुपाने लगता है और उसके अंदर डर भी बैठ जाता है। आजकल ऐसी कई खबरें आ रही हैं कि जहाँ अगर पेरेंट्स बच्चों को डांट देते हैं तो कभी-कभी बच्चे आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पेरेंट्स को बच्चों को डांटना चाहिए या नहीं? चलिए आज इस मुद्दे पर बात करते हैं।
Parenting Tips: क्या माता-पिता को बच्चे की डांटना चाहिए?
डांटना और डिसिप्लिन में अंतर
बच्चों को डांटना मतलब है कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना, उन्हें शर्मिंदगी महसूस करवाना, नीचा दिखाना या उन पर आरोप लगाना। कई बार पेरेंट्स डांटने के साथ बच्चों को सज़ा भी देने लगते हैं।
वहीं, डिसिप्लिन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शांति से रहकर हर दिन बच्चों पर काम किया जाता है। उन्हें सिखाया जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। प्रेरक पेरेंट्स बच्चों के साथ समय बिताते हैं, न कि सिर्फ गलती होने पर उन्हें डांटते हैं। इससे बच्चों के अंदर सेल्फ-कंट्रोल आता है और वे धीरे-धीरे अच्छी आदतें सीखने लगते हैं।
डांटने की बजाय सही तरीका
डांटने की बजाय बच्चों से प्यार से बात करनी चाहिए। अपनी आवाज़ को धीमा रखना चाहिए और बच्चे की गलती को समझाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चा आपसे डरेगा नहीं, बल्कि अगर कोई गलती होगी तो भी वह आपके पास आएगा। लेकिन अगर आप लगातार डांटते रहेंगे तो बच्चे चीज़ें आपसे छुपाने लगेंगे और दूसरों से मदद लेने लगेंगे।
बच्चे को गलत ठहराना बनाम उसके व्यवहार को गलत ठहराना
अक्सर पेरेंट्स बच्चे की गलती पर सीधे उसकी पर्सनालिटी पर सवाल उठा देते हैं। जैसे “तुम हमेशा ऐसे ही करते हो”, “तुमसे तो कोई उम्मीद नहीं है”, “तुम्हारी उम्र के बच्चे तुमसे कितने बेहतर हैं।” इस तरह की बातें तुलना और हीनभावना पैदा करती हैं, जो बच्चों की मानसिकता पर गहरा असर डालती हैं।
असल में पेरेंट्स को बच्चे की आदत या बिहेवियर को गलत कहना चाहिए, न कि पूरे बच्चे को।
नतीजों का महत्व
बच्चों को यह समझना चाहिए कि अगर वे कुछ गलत करेंगे या आपकी बात नहीं मानेंगे तो उन्हें नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। जैसे अगर बच्चे ने होमवर्क नहीं किया है तो उसका स्क्रीन टाइम कम कर दिया जाए। अगर बच्चा जुबान लड़ाता है तो कुछ समय तक उससे बात न की जाए। इससे बच्चों को समझ आता है कि हर एक्शन का कोई न कोई रिज़ल्ट होता है।
इमोशनल कनेक्शन
बच्चों से इमोशनल लैंग्वेज में बात करनी चाहिए। अगर बच्चे की किसी हरकत से आपको गुस्सा आया है तो मारने-पीटने के बजाय आप कह सकते हैं, “मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी” या फिर कुछ समय के लिए उनसे दूरी बना सकते हैं।
जब पेरेंट्स गुस्से में आकर बच्चों को मारते-पीटते हैं, तो यह उनकी मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुँचाता है। बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता। इसलिए पेरेंट्स को भी चाहिए कि वे अपनी भावनाएँ बच्चों के सामने सही तरीके से रखें और उन्हें सिखाएँ कि वे भी अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकें।