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हर दौर के साथ परवरिश का तरीका भी बदलता जा रहा है। कभी बच्चों को ज़्यादा अनुशासन में रखा जाता था, तो आज कुछ माता-पिता उन्हें हर फैसले में शामिल कर रहे हैं। चीन और जापान में चल रहे दो अलग-अलग तरीकों ने दुनियाभर में बहस छेड़ दी है। एक तरफ चीन में Reverse Parenting की लहर है, तो दूसरी ओर जापान में बच्चों को बहुत कम उम्र से ही स्वतंत्र बनने की प्रेरणा दी जाती है।
क्या भारत अपना सकता है चीन का 'Reverse Parenting' मॉडल?
चीन में उलटी परवरिश: जब बच्चा घर संभालता है
हाल ही में चीन के एक छोटे बच्चे की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हुई। उसका नाम यूआनयूआन है, और वह अपने घर की ज़िम्मेदारी खुद निभाता है। सुबह-सवेरे उठकर कुत्तों को घुमाना, बाजार से सब्ज़ी लाना, और पूरे परिवार के लिए खाना बनाना उसकी दिनचर्या का हिस्सा है। उसकी मां उसे यह सब करने देती हैं, बल्कि प्रोत्साहित करती हैं।
इस तरीके को Reverse Parenting कहा जा रहा है। इसमें माता-पिता बच्चों को ज़िम्मेदारी देना शुरू करते हैं ताकि वे जीवन के व्यावहारिक पहलुओं को जल्दी समझ सकें। इस परवरिश में बच्चा केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रहता, बल्कि घर के कामों और फैसलों में भी सक्रिय भूमिका निभाता है।
जापान का तरीका: छोटी उम्र में बड़ा भरोसा
जापान में एक लोकप्रिय टेलीविज़न कार्यक्रम ‘Old Enough!’ में बहुत छोटे बच्चों को अकेले बाहर भेजा जाता है। ये बच्चे कभी दूध लेने जाते हैं, कभी दवाई, तो कभी किसी पड़ोसी के घर कोई सामान देने। बेशक पीछे से उन पर निगरानी रखी जाती है, लेकिन बाहरी तौर पर वे पूरी तरह स्वतंत्र दिखते हैं।
यह संभव हो पाता है क्योंकि जापान में समाजिक भरोसा गहरा है, अपराध की दर कम है और सार्वजनिक स्थान बच्चों के लिए सुरक्षित माने जाते हैं। इस तरह वहां के बच्चे शुरू से आत्मनिर्भरता और ज़िम्मेदारी सीख जाते हैं।
भारत में क्या यह तरीका अपनाया जा सकता है?
भारत की परवरिश में बच्चों को अक्सर सुरक्षा और सुविधा में रखा जाता है। मां-बाप बच्चों को किसी तरह की थकान, गलती या जोखिम से दूर रखना चाहते हैं। यहां कई परिवारों में बच्चों को रसोई तक में हाथ लगाने नहीं दिया जाता, और अगर कोई बच्चा खाना बनाए या झाड़ू लगाए, तो समाज उसे ‘मजदूरी’ मानता है।
सड़कें असुरक्षित हैं, ट्रैफिक बेकाबू है, और पड़ोसी उतने भरोसेमंद नहीं होते जितने जापान में हैं। ऐसे माहौल में किसी छोटे बच्चे को बाहर भेजना एक चिंता का विषय बन जाता है।
इसके अलावा बच्चों पर पढ़ाई का बोझ भी बहुत जल्दी शुरू हो जाता है। घंटों की कोचिंग, होमवर्क और परीक्षा की तैयारी में उनका सारा समय चला जाता है। ऐसे में घर के काम या ज़िम्मेदारी लेने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है।
क्या भारत में इसे पूरी तरह अपनाना ज़रूरी है?
इसका जवाब है - नहीं। भारत को इस मॉडल को पूरी तरह अपनाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन उससे प्रेरणा जरूर ली जा सकती है। हम अपने बच्चों को छोटे-छोटे काम सौंप सकते हैं। जैसे कि अपना कमरा साफ़ करना, अपने कपड़े संभालना, या हफ्ते में एक दिन खाना बनाने की योजना बनाना।
उन्हें निर्णय लेने का मौका देना - जैसे जेबखर्च कैसे खर्च करना है या छुट्टी के दिन की योजना कैसे बनानी है - उनके आत्मविश्वास को बढ़ा सकता है। यह सब घर के अंदर ही संभव है और सुरक्षित भी।
बच्चों पर भरोसा करना क्यों ज़रूरी है?
चीन और जापान के उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि अगर बच्चों पर भरोसा किया जाए, उन्हें जिम्मेदारियों में भागीदारी दी जाए, तो वे उम्र से पहले परिपक्व हो सकते हैं। उन्हें सिर्फ़ पढ़ाई ही नहीं, जीवन जीने की समझ भी विकसित होती है।
भारत में बदलाव धीरे-धीरे ही सही, लेकिन शुरू होना चाहिए। बच्चों को सिर्फ़ निर्देशित न करें, उन्हें सोचने, करने और गलती से सीखने का भी अधिकार दें। यही असली परवरिश है।