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Why Good Girl Conditioning Is Holding Back Our Daughters: भारतीय घरों में बेटी और बेटे की परवरिश में बहुत अंतर होता है। जहाँ बेटियों को हमेशा झुकना, चुप रहना, अच्छी बहू बनना, घर की जिम्मेदारियाँ निभाना, सब कुछ सहना, दूसरों की आज्ञा मानना और खाना बनाना सिखाया जाता है, वहीं बेटों को सिर्फ यह बताया जाता है कि उन्हें काम करके पैसा कमाना है। उनसे यह कभी नहीं कहा जाता कि महिलाओं के साथ कैसे पेश आना चाहिए, अपने इमोशंस को कैसे संभालना है, खुद को कैसे व्यक्त करना है या खाना बनाना भी आना चाहिए। आज हमें यह समझने की जरूरत है कि पेरेंट्स को अपनी बेटियों को 'आज्ञाकारी' बनाने से ज्यादा उन्हें खुद के लिए बोलना सिखाना चाहिए।
No More Sanskari: क्यों पेरेंट्स को अपनी बेटी को 'आज्ञाकारी' होने से ज्यादा अपने लिए बोलना सिखाना चाहिए?
संस्कारी बनने से ज्यादा, खुद के लिए बोलना ज़रूरी
हमारे समाज में संस्कारी लड़कियाँ बहुत पसंद की जाती हैं। माना जाता है कि लड़की का संस्कारी होना जरूरी है क्योंकि उसी पर परिवार की इज्ज़त टिकी होती है। लेकिन इसी संस्कारी बनने के चक्कर में कई महिलाएं खुद से दूर हो जाती हैं और दूसरों के हाथ की कठपुतली बन जाती हैं। उन्हें खुद भी पता नहीं चलता कि वे क्या चाहती थीं। बहुत सी महिलाएं अपनी पूरी ज़िंदगी चुपचाप 'संस्कारों' के नाम पर गुजार देती हैं और अंत में उन्हें कुछ नहीं मिलता न इज्जत और न पहचान।
इसलिए बेटियों को संस्कारी बनाने से पहले यह सिखाना ज़रूरी है कि जब कुछ गलत हो रहा हो, तो वे खुद के लिए बोल सकें ताकि वे पितृसत्तात्मक सोच की बलि न चढ़ें।
अपने लिए खुद सही-गलत चुनने की आज़ादी
लड़कियों को हमेशा बताया जाता है कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। इस सोच के कारण वह कभी खुद को एक्सप्लोर नहीं कर पाती। माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटी को खुद सही-गलत पहचानने की आज़ादी दें। उन्हें डिक्टेट न करें कि उनके लिए क्या अच्छा है।
उसे खुद करियर चुनने का हक होना चाहिए। वह अपनी पसंद के कपड़े पहन सके। अकेले घूम सके, जो खाना चाहे खा सके, किताबें पढ़ सके और खुद को व्यक्त कर सके। लेकिन जब आप उसे सिर्फ खाना बनाना, अच्छी बहू बनना या घर की चारदीवारी में सीमित रहना सिखाते हैं तो आप उसकी पहचान और आज़ादी उससे छीन लेते हैं।
ना कहना भी आना चाहिए
आज्ञाकारी बनने की सबसे बड़ी समस्या यह है कि आप गलत को भी 'हाँ' कह देती हैं। इससे आप ज़्यादा अत्याचार सहन करती हैं। हमारे आसपास कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें घरेलू हिंसा, दहेज, शारीरिक और मानसिक शोषण का सामना करना पड़ा है। लेकिन उन्होंने कभी आवाज़ नहीं उठाई क्योंकि उन्हें हमेशा यही सिखाया गया कि सहना ही 'अच्छी लड़की' का लक्षण है।
जब लड़की को 'ना' कहना आ जाता है, तभी वह खुद के लिए खड़ी हो पाती है। उसे समझ आता है कि वह किसकी हकदार है और क्या सहन नहीं करना चाहिए।