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रोमानी लोग एक जगह से दूसरी जगह, एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप जाते रहे। वे अपने राग और सुर भी साथ लेकर चलते रहे। आख़िर में वे स्पेन के अंडालूसिया प्रांत में आकर बसे और वहीं इस परंपरा को आगे बढ़ाया। लकड़ी के फर्श पर थाप की आवाज़ से लेकर नर्तकी के पैरों की आग तक, फ्लेमेंको एक ऐसा कला रूप है जिसे पूरे जुनून से स्पेन के दक्षिणी हिस्से में निभाया जाता है।"
जानिए स्पेनिश कला Flamenco इतिहास और कैसे जुड़ा भारत से रिश्ता
अगर कोई आपसे कहे कि इस कला का इतिहास 5,000 साल पुरानी भारतीय सभ्यता की जड़ों में छुपा है, तो? फ्लेमेंको पर कई संस्कृतियों का असर है – यहूदी, रोमानी, मूरिश और अरब। माना जाता है कि रोमानी लोग उत्तर भारत से निकले थे, लगभग 10वीं से 14वीं शताब्दी के बीच, खासकर पंजाब और राजस्थान जैसे इलाकों से।"
फ्लेमेंको की जड़ें
स्पेन में इसे अपनाने से पहले, रोमानी लोग इसे जी रहे थे। विद्वानों को लंबे समय से फ्लेमेंको और भारतीय कला रूपों के रिश्ते ने आकर्षित किया है। 20वीं सदी की शुरुआत में कलाकार विसेंटे एस्कुदेरो भी इसकी जड़ें खोजने भारत आए थे।"
भारतीय-अमेरिकी संगीतकार ओलिवर राजमानी, जो रोमानी इतिहास और उसकी भारतीय जड़ों पर काम करते हैं, बताते हैं कि फ्लेमेंको की उत्पत्ति रोमानी लोगों से जुड़ी है। उनका कहना है कि रोमानी लोग ऐतिहासिक, भाषाई और आनुवंशिक रूप से भारत से जुड़े हैं।"
राजमानी प्रसिद्ध जेनेटिसिस्ट डॉ. कुमारस्वामी थंगाराज का हवाला देते हैं, जो बताते हैं कि रोमानी लोगों की जड़ें उत्तर-पश्चिम भारत से जुड़ी हैं और कुछ प्रमाण उन्हें दक्षिण भारत की द्रविड़ सभ्यता से भी जोड़ते हैं। राजमानी का मानना है कि तमिल लोकसंगीत ‘ओप्पारी’ फ्लेमेंको के ‘कांते जुंडो’ (गहरे गीत) से काफ़ी मिलता-जुलता है। भारतीय राग ‘भैरवी’ की झलक भी फ्लेमेंको और कई यूरोपीय जिप्सी संगीत शैलियों में सुनाई देती है।
फ्लेमेंको और भारतीय शास्त्रीय कला का संगम
राजस्थान के कलाकार कुणाल ओम तावरी ने फ्लेमेंको को कथक और राजस्थानी कालबेलिया जैसी भारतीय शैलियों के साथ जोड़कर प्रस्तुतियां की हैं। अब वे स्पेन में रहकर रोमानी समुदाय से पारंपरिक गुफ़ाओं में प्रशिक्षण लेते हैं, जिन्हें सदियों से उनका मंच माना जाता है।"
फ्लेमेंको और कथक दोनों ही नृत्य भावनाओं को कहानी के रूप में पेश करते हैं। इन्हें अक्सर ‘कज़िन आर्ट फॉर्म्स’ या ‘अलग हुई बहनें’ कहा जाता है क्योंकि इनमें गहरी समानताएँ हैं।
दोनों ही नृत्य फर्श को वाद्ययंत्र की तरह इस्तेमाल करते हैं जैसे कथक में ‘तत्कार’ और घुंघरू, जबकि फ्लेमेंको में ‘ज़ापातियादो’ और ‘टाकोनेओ’।कथक में तेज़ चक्कर और सीधी मुद्रा होती है, वहीं फ्लेमेंको में नाटकीय घूम और ऊर्जा भरे मूवमेंट। दोनों में संगीतकारों के साथ लाइव संवाद और तात्कालिकता (इम्प्रोवाइज़ेशन) अहम भूमिका निभाती है।"
भारत से शुरू हुई यह भावनात्मक धरोहर, रोमानी लोगों के ज़रिए महाद्वीपों को पार करती हुई स्पेन पहुँची। वहाँ इसे नया रूप मिला, लेकिन इसकी भारतीय जड़ें आज भी ज़िंदा हैं।"