10 Things Related To Chhath Puja: छठ पूजा हमारे देश के मुख्य पर्व में से एक है। यह पर्व बिहार, झारखंड व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक खास पर्व है, लेकिन बिहार में इसका अनूठा रूप है। छठ पर्व ही एक मात्र ऐसा अवसर है, जहां उगते और डूबते हुए सूरज की उपासना की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार छठ पर्व कार्तिक मास के छठे दिन मनाया जाता है। जिसमें चार दिन की अवधि में संयम और अनुष्ठान का पालन होता है। इस त्यौहार पर सूर्य देव और छठ माता की पूजा की जाती है। छठ पूजा मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है, जिसे लोग बड़े उल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाते हैं। यह चार दिन का एक महापर्व है, जिसमें नहाय खाय, खरना, संध्या व सुबह अर्घ्य देने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यह पूजन करने से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बने रहने के साथ-साथ संतान की उन्नति के भी मार्ग खुलते हैं।
जानें छठ पूजा से जुड़ी 10 बातें
1. छठ पूजा में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है
इस महापर्व पर सूर्य देव व उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा साथ ही उनकी बहन छठी मैया की पूजा की जाती है। मान्यता है कि सूर्य देव की उपासना करने से मान सम्मान व जीवन में तरक्की मिलती है।
2. क्यों की जाती छठी मैया की पूजा
माना जाता है कि छठी मैया संतानों की रक्षा करने वाली देवी है, इसलिए इस दिन हर व्रती महिलाएं अपने संतान की रक्षा व उन्नति के लिए छठी मैया की पूजा करती है। बता दें कि संसार की रचना के वक्त प्रकृति को 6 भागों में बांटा गया था। जिसमें छठा अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है। जिसे छठी मैया के रूप में भी पूजा की जाती है। साथ ही छठी मैया को ब्रह्म देव की मानस पुत्री भी माना गया है।
3. 36 घंटे का निर्जला उपवास
यह चार दिन तक चलने वाला महापर्व है। जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है और दूसरे दिन संध्या वक्त खरना पूजन के बाद रोटी व खीर ग्रहण करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। जो सुबह अर्घ्य के बाद ही व्रत का समापन पारण ग्रहण करने पर होता है।
4. क्यों देते हैं डूबते हुए सूरज को अर्घ्य
आमतौर पर सूर्योदय के वक्त सूर्य देव की पूजा का विधान है, लेकिन इस महापर्व में अस्तगामी सूर्य को भी अर्घ्य देने का विधान है, जो इस महापर्व का सबसे अनोखा रूप है। इस दिन डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देने का संदेश यह रहता है कि जो डूबा है उसका उदय होना निश्चित है। यानि आप कितनी भी विषम परिस्थिति में क्यों ना रहो, उसका सवेरा होना तय है।
5. व्रत की शुरुआत नहाय खाय से
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो व्रत का पहला दिन होता है। इस दिन नमक वर्जित होता है। व्रती महिलाएं सबसे पहले स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण कर पूजन करती हैं, फिर लौकी की सब्जी व चावल खासतौर पर इस दिन खाने का विधान व परंपरा है।
6. दूसरा दिन खरना
छठ पर्व का दूसरा दिन खरना होता है, जिसमें सूर्यास्त के बाद संध्या वक्त गाय के दूध की खीर व रोटी बनाकर पूजन की जाती है। फिर खीर व रोटी को ग्रहण कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
7. तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
यह दिन बेहद खास व मुख्य होता है, क्योंकि इसमें डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं। जिसमें उन्हें सूप में फल, ठेकुआ व केले की कदली रख कर अर्घ्य दिया जाता है।
8. चौथा दिन उदयीमान सूर्य को अर्घ्य
यह पर्व का सबसे अंतिम दिन होता है, जिसमें व्रती उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देती है। इस दिन सूर्य देव अपनी पत्नी उषा के साथ होते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की पत्नी उषा को अर्घ्य देने से वंश वृद्धि का वरदान मिलता है। इस तरीके से 36 घंटे की निर्जला उपवास के बाद व्रत संपन्न होता है।
9. कैसे करें पारण
मान्यता के मुताबिक चार दिन के इस कठिन महापर्व को पूजा में चढ़ाया हुआ प्रसाद, जैसे ठेकुआ, फल व कच्चा दूध पीकर ही व्रत खोलने से इसके फल प्राप्त होने के साथ-साथ व्रत संपन्न होता है।
10. क्या है छठ पूजा का सामाजिक संदेश
इस पर्व पर हमें यह सामाजिक संदेश मिलता है कि यह पर्व सभी सामाजिक भेदभाव से ऊपर उठकर एकता व बराबरी जीवन जीने का परिचय देता है, क्योंकि सूर्य देव को समर्पित सूप और डाल सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं। जिसका इस्तेमाल करना बताता है कि सभी जाति के लोग बराबर है, कोई भेदभाव नहीं है।