Married Women Rights: समय के साथ परिवर्तन जरूरी होता है। समय के साथ साथ स्त्री के अधिकारों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। 1829 में सती प्रथा खत्म होने से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिपल तलाक़ को असंवैधानिक घोषित करने तक समय के साथ स्त्रियों की स्थिति में सुधार करने की कोशिश ज़ारी है।
समय के साथ साथ स्त्रियों को अधिकार की गिनती तो बढ़ती जा रही है परंतु उनकी स्थितियों में बहुत खासा सुधार देखने को नहीं मिल है। आज भी हर क्षेत्रों में उनका उत्पीड़न ज़ारी है। इसका प्रमुख कारण यह है की स्त्रियों के लिए अधिकार तो बना दिए गए है पर आज भी बहुत स्त्रियां अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार आज भी ढेरो कैस विवाहित स्त्रियों के है। समय की मांग यह है की स्त्रियों को उनके अधिकारों से अवगत कराया जाए। विवाहित स्त्री के कुछ महत्वपूर्ण अधिकार निम्नलिखित है।
1. स्त्री धन का अधिकार
हिंदू विवाह अधिनयम के अनुसार शादी के वक्त महिलाओं को मिले पैसे पर उनका हक़ होता है। उनका खर्च कहां कैसे और कितना करना है इसका अधिकार केवल महिलाओं के पास होता है न की उनके ससुरलवालो के पास।
2. रिश्तों में प्रतिबद्धता का अधिकार
जब तक पति अपनी पत्नी को तलाक़ नही ले लेता, वह किसी और स्त्री के साथ संबंध या विवाह नहीं कर सकता। ऐसा करने पर भारतीय दण्ड सहिता की धारा ५९७ के अंतरागर्त एडल्टरी के चार्ज लगेगा।
3. अपने बच्चे की कस्टडी का अधिकार
अगर पति और पत्नी अलग अलग रह रहे है तो नाबालिग बच्चे को अपने पास रखने का अधिकार मां का होता है। अगर मां पैसे नही अर्जित करती तो बच्चे की परवरिश का खर्च पिता को उठाना होगा।
4. भरण पोषण का अधिकार
हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम १९५६ के सेक्शन १७ के अनुसार हिंदू पति से भरण पोषण पाने की हकदार होगी। सेक्शन २५ के अंतर्गत तलाक़ के बाद भी वह एलिमनी की हकदार होगी।
5.४ घरेलू हिंसा से बचाव का अधिकार
घरेलू हिंसा अधिनियम २००५ के अंतर्गत २००५ के अंतर्गत महिला अपने पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर पुलिस में केस दर्ज कर सकती है।
इसी प्रकार और भी विभिन्न महत्वपूर्ण अधिकार है जिन्हे शादीशुदा स्त्रियों का जानना बहुत जरुरी है।