एक कमी हम में पाई जाती रही है और वो है एकता की, पर हमारे लिए यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हम एक दूजे के साथी हैं ना कि प्रतिस्पर्धा, कि हमें एक दूजे का साथ देना है ना कि एक दूसरे को घसीट कर नीचे लाना है। उसके लिए एक पहल करते हैं हमारे द्वारा कहे जाने वाले कुछ वाक्यों में बदलाव करके।
1. "मैंने कभी उसको हंसते हुए नहीं देखा, उसको ज़रूर घमंड है"
इंसान की आदत होती है कि वो दूसरों पर कमेंट पर बहुत जल्दी करता है जैसे ना हंसने और घमंडी होने में कितना फर्क है, यह समझना हमारे लिए बहुत मुश्किल तो नहीं है। ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई किसी समस्या से जूझ रहा हो, हो सकता है व्यक्ति अंतरमुख हो, हो सकता है सोशल एंजायटी ही हो किसी को और उस पर इस तरह की बातें करके हम उसकी समस्या सिर्फ बढ़ाते ही हैं, ना कि कम करते हैं। हमें पुरानी कहावतों के अनुसार बोलने से पहले सोचना चाहिए।
2. "देखो उसको, किस तरह के कपड़े पहने हैं, अटेंशन के लिए कुछ भी कर सकती हैं"
हमेशा से ही लड़कियों का चरित्र उनके कपड़ो के आधार पर नापा तौला जाता रहा है। हम औरतों को तो कम से कम इस तरह के कॉमेंट्स नहीं करने चाहिए क्योंकि इनसे प्रभावित हम ही हो रहे हैं। एक सुरक्षित समाज की ज़रूरत है, जहाँ लड़कियां घूम सकें अपनी मर्ज़ी के लिबाज़ में और किसी से उनको खतरा ना हो, उनके चारित्र पर सवाल ना उठें। हम सिर्फ जिस्म मात्र तो हैं नहीं, हमें जज करना हो तो बेहतर चीज़ों से किया जाए, हमारे कौशल से किया जाए, हमारे बर्ताव से किया जाए। जिस तरह किताब का कवर मायने नहीं रखता उसके अंदर का कंटेंट मायने रखता है वैसे ही हम इंसानों के भी कपड़े मायने नहीं रखते।
3."अरे! उसके इतने सारे लड़के दोस्त हैं, यह अच्छी बात नहीं है"
कोई व्यक्ति किस से दोस्ती कर रहा है, किसके साथ समय बिता रहा है यह उस व्यक्ति के अलावा किसी और की समस्या नहीं होनी चाहिए। किसी लड़की के बेहद लड़के दोस्त है तो उस से उसका चरित्र खराब नहीं हो जाता है। दोस्त बनाएं जाते हैं एक दूसरे की पसंद मिलने पर अब जेंडर मिले न मिले वह ज़रूरी बात नहीं।
4."उसको और सतर्क रहना चाहिए, इतनी रात को बाहर जाएगी तो और क्या होने की उम्मीद रखते हैं आप"
लड़की को रात को बाहर जाने को उसके साथ हुए गलत सलूक का कारण बताना तो सीधी-सीधी विक्टिम ब्लेमिंग है। यह कहना तो ऐसा कहने के बराबर है कि आप क्यों अपना पर्स अपने पास रख कर घूम रहे हैं, आप पर्स ले कर घूमेंगे तो चोरी तो होगी ही ना। हम लड़कियां हमारे साथ होते गलत को इतना अपना चुकी हैं, लड़को के गलत व्यवहार को जैसे स्वीकार कर चुकी हैं, तो अब लड़के को कुछ नहीं कहा जाता है। हमें ज़रूरत है बदलाव की और शुरुआत हम लड़कियां कर सकती हैं विक्टिम ब्लेमिंग को बंद कर के।
5."जब आप बॉस के साथ सोएंगे तो प्रमोशन तो मिलेगा ही ना"
वर्क प्लेस को एक सुरक्षित और कंफर्टेबल प्लेस बना लें सब मिल कर तो काम करना सब ही के लिए बेहतर हो जायेगा। अगर कोई लड़की प्रमोट होती है तो हम जा कर उसे बधाई दें और उसके लिए खुश हों ना कि उसको नीचा दिखाने के लिए जलन में बॉस के साथ सोने जैसी आपत्तीजनक बातें उसके बारे में कहें।
अगर हम सब लड़कियां आपस में सहेलियों की तरह मिल जाएं तो आसमां छू सकती हैं, तो क्यों ना छू लें? क्यों हम एक दूसरे को पीछे घसीटने में लगे रहते हैं? आओ मिल जाएं, एक दूसरे का हाथ बंटा कर एक दूसरे का सहारा बन जाएं।
Bad Comments Of Society For Women: महिलाओं के लिए कमैंट्स
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एक कमी हम में पाई जाती रही है और वो है एकता की, पर हमारे लिए यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हम एक दूजे के साथी हैं ना कि प्रतिस्पर्धा, कि हमें एक दूजे का साथ देना है ना कि एक दूसरे को घसीट कर नीचे लाना है। उसके लिए एक पहल करते हैं हमारे द्वारा कहे जाने वाले कुछ वाक्यों में बदलाव करके।
1. "मैंने कभी उसको हंसते हुए नहीं देखा, उसको ज़रूर घमंड है"
इंसान की आदत होती है कि वो दूसरों पर कमेंट पर बहुत जल्दी करता है जैसे ना हंसने और घमंडी होने में कितना फर्क है, यह समझना हमारे लिए बहुत मुश्किल तो नहीं है। ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई किसी समस्या से जूझ रहा हो, हो सकता है व्यक्ति अंतरमुख हो, हो सकता है सोशल एंजायटी ही हो किसी को और उस पर इस तरह की बातें करके हम उसकी समस्या सिर्फ बढ़ाते ही हैं, ना कि कम करते हैं। हमें पुरानी कहावतों के अनुसार बोलने से पहले सोचना चाहिए।
2. "देखो उसको, किस तरह के कपड़े पहने हैं, अटेंशन के लिए कुछ भी कर सकती हैं"
हमेशा से ही लड़कियों का चरित्र उनके कपड़ो के आधार पर नापा तौला जाता रहा है। हम औरतों को तो कम से कम इस तरह के कॉमेंट्स नहीं करने चाहिए क्योंकि इनसे प्रभावित हम ही हो रहे हैं। एक सुरक्षित समाज की ज़रूरत है, जहाँ लड़कियां घूम सकें अपनी मर्ज़ी के लिबाज़ में और किसी से उनको खतरा ना हो, उनके चारित्र पर सवाल ना उठें। हम सिर्फ जिस्म मात्र तो हैं नहीं, हमें जज करना हो तो बेहतर चीज़ों से किया जाए, हमारे कौशल से किया जाए, हमारे बर्ताव से किया जाए। जिस तरह किताब का कवर मायने नहीं रखता उसके अंदर का कंटेंट मायने रखता है वैसे ही हम इंसानों के भी कपड़े मायने नहीं रखते।
3."अरे! उसके इतने सारे लड़के दोस्त हैं, यह अच्छी बात नहीं है"
कोई व्यक्ति किस से दोस्ती कर रहा है, किसके साथ समय बिता रहा है यह उस व्यक्ति के अलावा किसी और की समस्या नहीं होनी चाहिए। किसी लड़की के बेहद लड़के दोस्त है तो उस से उसका चरित्र खराब नहीं हो जाता है। दोस्त बनाएं जाते हैं एक दूसरे की पसंद मिलने पर अब जेंडर मिले न मिले वह ज़रूरी बात नहीं।
4."उसको और सतर्क रहना चाहिए, इतनी रात को बाहर जाएगी तो और क्या होने की उम्मीद रखते हैं आप"
लड़की को रात को बाहर जाने को उसके साथ हुए गलत सलूक का कारण बताना तो सीधी-सीधी विक्टिम ब्लेमिंग है। यह कहना तो ऐसा कहने के बराबर है कि आप क्यों अपना पर्स अपने पास रख कर घूम रहे हैं, आप पर्स ले कर घूमेंगे तो चोरी तो होगी ही ना। हम लड़कियां हमारे साथ होते गलत को इतना अपना चुकी हैं, लड़को के गलत व्यवहार को जैसे स्वीकार कर चुकी हैं, तो अब लड़के को कुछ नहीं कहा जाता है। हमें ज़रूरत है बदलाव की और शुरुआत हम लड़कियां कर सकती हैं विक्टिम ब्लेमिंग को बंद कर के।
5."जब आप बॉस के साथ सोएंगे तो प्रमोशन तो मिलेगा ही ना"
वर्क प्लेस को एक सुरक्षित और कंफर्टेबल प्लेस बना लें सब मिल कर तो काम करना सब ही के लिए बेहतर हो जायेगा। अगर कोई लड़की प्रमोट होती है तो हम जा कर उसे बधाई दें और उसके लिए खुश हों ना कि उसको नीचा दिखाने के लिए जलन में बॉस के साथ सोने जैसी आपत्तीजनक बातें उसके बारे में कहें।
अगर हम सब लड़कियां आपस में सहेलियों की तरह मिल जाएं तो आसमां छू सकती हैं, तो क्यों ना छू लें? क्यों हम एक दूसरे को पीछे घसीटने में लगे रहते हैं? आओ मिल जाएं, एक दूसरे का हाथ बंटा कर एक दूसरे का सहारा बन जाएं।