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Photograph: (DD News & Aksharathalukal)
5 Indian Female Poets Who Fought for Change: 21 मार्च को हर विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) मनाया जाता है। कविता भावनाओं को व्यक्त करने का एक बहुत ही सरल और ताकतवर जरिया है जिसमें हम कम शब्दों में इतनी गहरी बात कह सकते हैं जो शायद हम दूसरे लेखन के तरीकों से ना कह सके। जब भी साहित्य की बात आती है तो कविता का एक अपना स्थान है जो शायद कोई भी नहीं ले सकता है और कविता देखने में जितनी सरल लगती है शायद लिखने के लिए आपके पास शब्दों का एक भंडार होना चाहिए। आज के इस लेख में हम आपके साथ ऐसी महिला कवित्रियों के बारे में बात करेंगे जिनके शब्दों ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया और उनका साहित्य में विशेष योगदान रहा
भारत की 5 कवयित्रियाँ जिनकी कलम ने बग़ावत लिखी
1. अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ। वह सिर्फ कवयित्री ही नहीं बल्कि उपन्यासकार, निबंधकार भी थीं जिन्होंने पंजाबी और हिंदी में लिखा। प्रीतम को उनकी सबसे फेमस कविता "अज्ज आखां वारिस शाह नू" के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इस कविता में उन्होंने 1947 के विभाजन के उसे बुरे दौर को याद किया जिसे सुनकर और देखकर हर आत्मा झकझोर हो जाती है। इस कविता में अमृता प्रीतम वारिस शाह को अपने कलम की शक्ति से विभाजन के दुख के बारे में लिखने की गुहार लगाती हैं। उनकी कविताओं में शामिल हैं, "मैं तुम्हें फिर मिलूँगी", "मुलाकात", "मेरी खता", "मन जोगी तन भस्म भया", "तौसीफ़ आई थी", "विदा, "गुफा चित्र" आदि। साल 1983 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
2. महादेवी वर्मा
भारत की प्रमुख कवित्रियों में से एक महादेवी वर्मा स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म 1907 में फर्रुखाबाद में हुआ। महादेवी वर्मा को छायावादी युग की महत्वपूर्ण कवित्रियों में एक माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिलाओं के दुख-दर्द को गहरी संवेदनशीलता से व्यक्त किया। उन्हें "आधुनिक मीरा" भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी कविताओं में भक्ति और करुणा का अनूठा संगम है। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं में "नीहार" (1930), "रश्मि" (1932), "नीरजा" (1934) और "सांध्य गीत" (1936) आदि शामिल हैं। "शृंखला की कड़ियाँ" उनकी एक ऐसी रचना है जिसमें उन्होंने नारी जीवन पर लिखा कि कैसे महिलाओं के साथ भारत देश में भेदभाव होता है। महादेवी वर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956),पद्म भूषण (1956), "यामा" के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982) और मरणोपरांत पद्म विभूषण (1988) से नवाजा गया।
3. ज़ेब-उन-निसा
मुगल शासक औरंगजेब की सबसे बड़ी बेटी ज़ेब-उन-निसा ने भी भारतीय साहित्य में अपना योगदान दिया है। उनका जन्म 1638 में हुआ। वह एक मुगल राजकुमारी होने के साथ-साथ कवयित्री भी थी। ज़ेब-उन-निसा ने "मख़फ़ी" (Makhfi) उपनाम से कविताएँ लिखीं, जिसका अर्थ है "छिपी हुई" या "गुप्त"। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति "दीवान-ए-मख़फ़ी" है, जिसमें लगभग 5,000 छंद शामिल हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी 20 साल कैद में गुजारे। उनके पिता औरंगजेब ने उन्हें सलीमगढ़ किले में कैद कर दिया था।
4. सरोजिनी नायडू
भारत की प्रमुख कवित्रियों में से एक सरोजिनी नायडू भी थी जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भी मुख्य भूमिका निभाई। इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर भी रही हैं। उनका जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ।“भारत की कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू ने महिलाओं की भलाई के लिए भी बहुत सारे काम किया जैसे उन्होंने हमेशा ही महिलाओं की शिक्षा को लेकर वकालत की। इसके साथ ही उन्होंने 1917 में Women’s Indian Association के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इंटरनेशनल वूमेंस कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
5. सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान का भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख कवयित्री और लेखिका थीं। उनका जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता "झाँसी की रानी" है, जो रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को बयान करती है। उन्होंने अपने लेखन में राष्ट्रवाद और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी। उनकी प्रमुख रचनाओं में "बिखरे मोती", "मुकुल", और "यह कदम्ब का पेड़" शामिल हैं। सुभद्रा जी भारत की आजादी की लड़ाई में काफी एक्टिव रहीं और इस सिलसिले में कई बार जेल भी गईं। उन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो आज भी प्रेरणादायक है।