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(Image Credit: Tribune India)
All About Hola Mahalla: भारत देश में होली के अलग-अलग ढंगो से मनाया जाता है वही पंजाब राज्य में होली के जगह होला मोहल्ला मनाया जाता है जो सिखों का त्यौहार है। इसे बहुत धूमधाम से सिखों के पांच तख्तों में से एक श्री आनंदपुर साहिब में तीन दिनों के लिए मनाया जाता है। यह तखत सिखों के इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आईए जानते हैं इस साल यह कब मनाया जा रहा है और इसके पीछे का क्या इतिहास है?
Hola Mahalla: जानें कब है? क्यों कैसे मनाया जाता है? क्या यह होली से अलग है?
इस साल होला मोहल्ला 25 से 27 मार्च को मनाया जा रहा है। सिखों के तखत श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर साहिब में इस पर्व को मनाया जाता है जो पंजाब के रूपनगर जिला में मौजूद है। आंनदपुर साहिब को खालसा पंथ की 'जन्म भूमि' हुई कहा जाता है क्योंकि बैसाखी वाले दिन यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की साजना की थी।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने की शुरुआत
होली रंगों का त्यौहार है लेकिन इसे होला मोहल्ला के रूप में मनाने की शुरुआत 1700 में श्री सिखों के दसवें गुरु, गोविंद सिंह जी द्वारा आनंदपुर साहिब में की गई थीं। इसमें खालसा फ़ौज के बीच नकली युद्ध करवाए जाते थे और जो अच्छा प्रदर्शन करते थे उन्हें भेंट की जाती थी। यह होली का पुल्लिंग है। इस शब्द के अर्थ की बात की जाएं तो होला शब्द अरबी का शब्द है जिसका मतलब हमला करना है मोहल्ला यहाँ पर यद्ध किया जाता था। सिखों के दो दल बनाए जाते थें जिनके बीच युद्ध मुकाबले करवाएं जाते थें। इसके साथ ही घोड़सवारी, तलवारबाज़ी और नेजेबाजी आदि करवाएं जाते थें। इन मुकाबलों को देखने के लिए लोग भी शामिल होते थे। इसके साथ ही लंगर और कीर्तन भी होता था। ऐसा कहा जाता है कि जब युद्ध खतम हो जाता था तब एक दूसरे पर रंग फेंके जाते थें। आज भी यह परम्परा देखने को मिलती है।
श्रद्धालु बड़ी संख्या में आनंदपुर साहिब एकत्र होते हैं
आज के समय में इसका रूप बदल गया है लेकिन आज भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में आनंदपुर साहिब एकत्र होते हैं जहां पर 3 दिन के लिए होला मोहल्ला मनाया जाता है। इस दिन नगर कीर्तन निकाला जाता है जिसकी अगुवाई पांच प्यारे करते हैं। इसमें कीर्तन होता है, जगह जगह लंगर लगाएं जाते हैं। देश-विदेश से भरी संख्या में लोग होला मोहल्ला देखने पहुँचते है। इस समय पूरा पंजाब एक साथ देखने को मिलता हैं। पंजाब के हर गांव से लोग एक दूसरे मिल जुलकर इस पावन पर्व को देखने जाते हैं। निहंगों का होला मोहल्ला में खास महत्व हैं। उनकी तरफ से ट्रेडिशनल तरीके से घोड़ सवारी, गतका, नेजेबाजी और के जौहर दिखाएं जाते हैं। वे अभी भी पारंपरिक शैली को धारण करते हैं जो गुरु साहब के समय में प्रचलित थी। इन्हें गुरु साहब की लाडली फ़ौज कहा जाता है।