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लेकिन सवाल यह है, कि लड़कियों के लिए यह सब सामान्य बनाया किसने ?
- पहली बार पीरियड्स आने पर, लड़की को माँ ने सबसे अलग ले जाकर इसके बारे में समझाया। फिर आगे से जब भी पीरियड्स की बात हुई, तो सबसे अलग जाकर, धीमी आवाज में ही हुई। और लड़की को पहला इशारा मिल गया।
- जब पहली बार school में लड़की के कपड़ों पर stain लगा, तो school के बच्चों ने उसके पीठ-पीछे अजीब बातें बनाई। ये बातें जब लड़की तक पहुँची, तो उसे अपना दूसरा इशारा मिल गया।
- अब फिर जब पहली बार लड़की को खुद से पैड खरीदना पड़ा, तो उसे पैड कागज़ में लपेटकर दिया गया। आस-पास के लोगों ने बड़ी अलग नज़रों से लड़की को घूरा भी। इन अलग-सी नज़रों से उसका पहली बार सामना हुआ। और लड़की को तीसरा इशारा मिल गया।
किसी भी लड़की को पीरियड्स में होने वाली शर्म और हीन-भावना, आप और हम देते है। और फिर इसके बाद लड़की के लिए यही शर्म सामान्य हो जाती है।
बेटियों को समाज में भेजने से पहले, हमें जरूरत है, कि हम उनके साथ घर पर पीरियड्स से जुड़ी तमाम बातें करें। और इस बार धीमी आवाज में बिल्कुल नहीं, बल्कि एकदम नॉर्मल गपशप की तरह। उनको यह समझाए कि पीरियड्स, शरीर की अन्य गतिविधियों की तरह ही बिल्कुल सामान्य है। इससे पीरियड्स में होने वाली शर्म, लड़कियों में सामान्य नहीं बनेगी। बेटियों को यह भी साफ बताएँ, कि कुछ लोग पीरियड्स को एक शर्म का विषय मानते है। इसीलिए जब वह बाहर जाएगी, तो उसको कुछ ऐसे लोगों का भी सामना करना होगा। ऐसी बातें पहले ही साफ करने से, लड़कियां खुद को mentally तैयार कर पाएंगी और समाज की उन अजीब-सी नज़रों का हिम्मत से सामना कर सकेंगी। आपकी बेटी की हिम्मत, सबकी बेटियों के लिए एक सुरक्षित समाज की नींव होगी।