History And Significance Of Karwa Chauth : करवाचौथ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।
जानें करवाचौथ का इतिहास और महत्व क्या है
करवाचौथ का इतिहास बहुत पुराना है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, करवा नाम की एक स्त्री थी, जिसके पति का नाम वीरव्रत था। एक दिन वीरव्रत युद्ध में शत्रुओं से घिर गए। करवा ने अपनी पतिव्रता धर्म की शक्ति से यमराज को प्रसन्न कर वीरव्रत की जान बचा ली। तब से करवा चौथ का व्रत मनाया जाने लगा। करवा चौथ का त्योहार पति और पत्नी के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह दिन महिलाओं को अपने पति के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को व्यक्त करने का एक अवसर प्रदान करता है।
करवाचौथ के दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। सुबह को सरगी में हलका और पौष्टिक खाना खाकर वे व्रत की शुरुआत करती हैं। दिन भर महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्र देव की पूजा करती हैं। शाम को चंद्रोदय के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।
करवाचौथ के दिन महिलाएं विशेष रूप से सजती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। वे अपने पति से करवा चौथ की पूजा की थाली में से मिठाई खाकर व्रत खोलती हैं। इस दिन महिलाओं को अपने पति से उपहार भी मिलते हैं।
करवाचौथ का त्योहार भारत के सभी हिस्सों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन विवाहित महिलाओं के लिए बहुत ही खास होता है। इस दिन वे अपने पति के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को व्यक्त करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं।
करवाचौथ का त्योहार भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह दिन विवाहित महिलाओं को अपने पति के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बनाने और अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने का एक अवसर प्रदान करता है।