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इस कोरोना महामारी ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी है। बच्चों से ले कर बुज़ुर्गों तक को किसी ना किसी तरीके से इसने प्रभावित किया है। अभी हाल ही में आयोजित एक बैठक में ये खुलासा हुआ की इस महामारी के कारण मैटरनल हेल्थ पे बहुत ज़्यादा दुष्प्रभाव पड़ा है। ये बैठक हाई लेवल एक्सपर्ट्स के साथ रखी गई थी जिन्होनें इस महामारी के कारण प्रेगनेंसी और कंट्रासेप्शन में आये बदलावों पर चर्चा की।
शोध बताते हैं की इस महामारी में मैटरनल हेल्थ पे सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा है। कई प्रेग्नेंट महिलाएं इस कोरोना के समय में अपने डॉक्टर के पास समय समय पर चेक उप कराने भी नहीं जा सकीं जिस का असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। इस कोरोना के कारण पिछले साल करीब 26 मिलियन कपल्स ने अपनी फॅमिली प्लानिंग में डिस्टर्बेंस का सामना किया है। ऐसे में अनप्लांड प्रेग्नेन्सीज़ बढ़ते इकनोमिक इन्सेक्युरिटी में बस ऐड होती जा रही हैं।
शोध बताते हैं की रिप्रोडक्टिव उम्र की करीब 13 प्रतिशत महिलाएं अनप्लांड प्रेगनेंसी से गुज़र रही है जो उनके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। इस समय में कंट्रासेप्शन की सप्लाई में आए डिस्टर्बेंस के कारण ये सारी घटनाएं हो रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है की सरकार को इस क्षेत्र में भी सोचना है और जल्द से जल्द पूरे देश में कंट्रासेप्शन प्रोवाइड करने की ज़रूरत है।
इंटरनेशनल डे ऑफ़ एक्शन ऑन विमेंस हेल्थ के उपलक्ष पे हुई इस बैठक में कई सारी संस्थाओं ने भाग लिया। इनमें से मुख्य थे पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया, फेडरेशन ऑफ़ ऑब्स्टट्रिशन एंड गयनेकोलॉजिस्ट्स इन इंडिया और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन। इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ ने भी इस वेबिनार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
फेडरेशन ऑफ़ ऑब्स्टट्रिशन्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स इन इंडिया के प्रमुख ने बताया की कंट्रासेप्शन का अभाव इस महामारी में कई महिलाओं और बच्चों की जान ले चुका है। भारत में ये आभाव बहुत ज़्यादा है और इसलिए कोरोना में सब इतने प्रभावित हुए हैं। इस समय में करीब 70 प्रतिशत फ्रंटलाइन वर्कर्स महिलाएं हैं और पिछले एक साल में उनके हेल्थ और रिप्रोडक्टिव नीड्स पे किसी ने ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी है। एक्सपर्ट्स ये भी मानना है की सबसे ज़्यादा असामनता भारत के ग्रामीण इलाके में रह रहीं महिलाओं के साथ हो रहा है। ऐसे में अगर उनको कंट्रासेप्शन के इस्तेमाल और साइड इफेक्ट्स पे जल्दी जानकारी नहीं दी तो उनकी ज़िन्दगी के लिए ये अच्छा नहीं होगा।
क्या कहते हैं शोध?
शोध बताते हैं की इस महामारी में मैटरनल हेल्थ पे सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा है। कई प्रेग्नेंट महिलाएं इस कोरोना के समय में अपने डॉक्टर के पास समय समय पर चेक उप कराने भी नहीं जा सकीं जिस का असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। इस कोरोना के कारण पिछले साल करीब 26 मिलियन कपल्स ने अपनी फॅमिली प्लानिंग में डिस्टर्बेंस का सामना किया है। ऐसे में अनप्लांड प्रेग्नेन्सीज़ बढ़ते इकनोमिक इन्सेक्युरिटी में बस ऐड होती जा रही हैं।
कंट्रासेप्शन के आभाव में जा रही है ज़िंदगियाँ
शोध बताते हैं की रिप्रोडक्टिव उम्र की करीब 13 प्रतिशत महिलाएं अनप्लांड प्रेगनेंसी से गुज़र रही है जो उनके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। इस समय में कंट्रासेप्शन की सप्लाई में आए डिस्टर्बेंस के कारण ये सारी घटनाएं हो रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है की सरकार को इस क्षेत्र में भी सोचना है और जल्द से जल्द पूरे देश में कंट्रासेप्शन प्रोवाइड करने की ज़रूरत है।
इंटरनेशनल डे ऑफ़ एक्शन ऑन विमेंस हेल्थ के दिन हुई बैठक
इंटरनेशनल डे ऑफ़ एक्शन ऑन विमेंस हेल्थ के उपलक्ष पे हुई इस बैठक में कई सारी संस्थाओं ने भाग लिया। इनमें से मुख्य थे पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया, फेडरेशन ऑफ़ ऑब्स्टट्रिशन एंड गयनेकोलॉजिस्ट्स इन इंडिया और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन। इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ ने भी इस वेबिनार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
फेडरेशन ऑफ़ ऑब्स्टट्रिशन्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स इन इंडिया के प्रमुख ने बताया की कंट्रासेप्शन का अभाव इस महामारी में कई महिलाओं और बच्चों की जान ले चुका है। भारत में ये आभाव बहुत ज़्यादा है और इसलिए कोरोना में सब इतने प्रभावित हुए हैं। इस समय में करीब 70 प्रतिशत फ्रंटलाइन वर्कर्स महिलाएं हैं और पिछले एक साल में उनके हेल्थ और रिप्रोडक्टिव नीड्स पे किसी ने ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी है। एक्सपर्ट्स ये भी मानना है की सबसे ज़्यादा असामनता भारत के ग्रामीण इलाके में रह रहीं महिलाओं के साथ हो रहा है। ऐसे में अगर उनको कंट्रासेप्शन के इस्तेमाल और साइड इफेक्ट्स पे जल्दी जानकारी नहीं दी तो उनकी ज़िन्दगी के लिए ये अच्छा नहीं होगा।