जानिए ओवरथिंकिंग से इमोशनल बैलेंस कैसे बिगड़ता है

लगातार छोटी-छोटी चीज़ों के बारे में सोचने से, पुरानी बातों को दोहराने या आने वाले कल के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता करने से इमोशनल बैलेंस पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

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Dimpy Bhatt
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how overthinking can disrupt emotional balance

आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में ज़्यादा सोचना एक आदत बन गई है जो धीरे-धीरे लोगों के मन की शांति छीन रही है। लगातार छोटी-छोटी चीज़ों के बारे में सोचने से, पुरानी बातों को दोहराने या आने वाले कल के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता करने से इमोशनल बैलेंस पर बहुत बुरा असर पड़ता है। महिलाओं को अक्सर यह एहसास नहीं होता कि उनकी उदासी, थकान या चिड़चिड़ाहट असल में ज़्यादा सोचने का नतीजा है। जब दिमाग हर समय एक्टिव रहता है, तो दिल और मन को आराम मिलना मुश्किल हो जाता है।

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जानिए ओवरथिंकिंग से इमोशनल बैलेंस कैसे बिगड़ता है

1. हर बात का बोझ दिल पर पड़ने लगता है

जब आप चीज़ों के बारे में ज़्यादा सोचते हैं, तो छोटी बाते भी बहुत बड़ी लगने लगती है। दिल पर उन चीज़ों का बोझ आ जाता है जो नॉर्मल होनी चाहिए। इमोशन्स धीरे-धीरे बहुत ज़्यादा हो जाते हैं, और इंसान को लगातार स्ट्रेस रहता है। इससे इमोशनल बैलेंस बिगड़ जाता है और खुश रहने की क्षमता कम हो जाती है। 

2. नेगेटिव सोच हावी हो जाती है

ज़्यादातर सोच तब नेगेटिव हो जाते हैं जब मन बार-बार एक ही विचार दोहराता है। "अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा?" और "मैंने ऐसा क्यों कहा?" ये ऐसे सवालों हैं जो मन में बने रहते हैं। इसके नतीजे में खुद पर शक बढ़ता है और आत्मविश्वास कम होता है। इस नेगेटिव सोच से इमोशनल हेल्थ को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचता है। 

3. रिश्तों पर भी असर पड़ता है

ज़्यादा सोचने से खुद के साथ-साथ रिश्तों पर भी असर पड़ता है। बात-बात पर चीज़ों का गलत मतलब निकालने, ज़्यादा उम्मीदें रखने या हर शब्द को ज़्यादा एनालाइज़ करने से रिश्तों में दूरी आ सकती है। इससे मेंटल इंस्ताबिलिटी बढ़ती है और इमोशनल कनेक्शन कमजोर होने लगता है।

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4. थकान और बेचैनी बढ़ जाती है

जब तक दिमाग हमेशा सोचता रहता है, उसे आराम नहीं मिल सकता। इसका सीधा असर नींद, एनर्जी और मूड पर पड़ता है। फिजिकल एक्टिविटी न होने पर भी इंसान को थकान महसूस होती है। यह दिमागी थकान इमोशनल बैलेंस को पूरी तरह हिला देती है, जिससे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा या रोना आ सकते हैं।  

5. खुद से जुड़ाव कम हो जाता है

जो इंसान ज़्यादा सोचता है, वह अपने अंदर की बातों पर ध्यान देना बंद कर देता है। वह दूसरों की बातों, यादों और भविष्य की चिंताओं में उलझ जाता है। इस वजह से, खुद को समझने और महसूस करने की उसकी काबिलियत कम हो जाती है। ओवरथिंकिंग से बाहर निकलना आसान नहीं, लेकिन इसे पहचानना पहला कदम है।

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