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Photograph: (navigatingthisspace)
How to increase writing motivation: लिखने का काम सुनने में जितना आसान लगता है, असल में उतना ही चुनौतीपूर्ण भी होता है। कई बार मन में ढेरों बातें होती हैं, लेकिन जब कागज या स्क्रीन के सामने बैठते हैं तो शब्द साथ नहीं देते। कभी समय की कमी बहाना बनती है, तो कभी मन की थकान। हर लेखक, चाहे वह नया हो या अनुभवी, कभी न कभी इस परेशानी से गुजरता है कि लिखने का मन ही नहीं करता। परिवार में भी जब दूसरे कामों का दबाव बढ़ जाता है, तो लिखने का समय और मोटिवेशन कहीं पीछे छूट जाता है। असल में, राइटिंग मोटिवेशन कोई जादू नहीं है जो अचानक आए, बल्कि इसे समझदारी और छोटे-छोटे प्रयासों से मजबूत करना पड़ता है।
राइटिंग मोटिवेशन कैसे बढ़ाएं?
हर किसी के जीवन में कभी न कभी ऐसा समय आता है जब लिखने का मन ही नहीं करता। चाहे आप विद्यार्थी हों, लेखक हों, कंटेंट क्रिएटर हों या सिर्फ अपने विचारों को कागज पर उतारने वाले एक सामान्य इंसान सभी ने कभी न कभी इस चुनौती का सामना किया है। परिवारों में भी अक्सर देखा जाता है कि जब जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता है, बच्चों की पढ़ाई, घर का कामकाज, ऑफिस की मीटिंग्स सब मिलकर इतना समय खा जाते हैं कि लिखने का समय और इच्छा दोनों कहीं पीछे छूट जाती हैं। फिर धीरे-धीरे लिखने की आदत ही कमजोर होने लगती है और जब लिखना होता है तो शब्द ढूँढने पड़ते हैं।
असल में राइटिंग मोटिवेशन एक दिन में नहीं आती और ना ही हमेशा अपने आप बनी रहती है। इसे हर दिन थोड़ा-थोड़ा संजोना पड़ता है। सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि लिखना कोई दबाव नहीं होना चाहिए। जब हम लिखने को एक बोझ समझने लगते हैं, तो मन और ज्यादा भागने लगता है। इसलिए जरूरी है कि लिखने को एक आनंद की प्रक्रिया मानें, न कि एक जबरदस्ती का काम।
बहुत साधारण तरीके से शुरुआत करें। जैसे जब दिमाग भारी लगे और लिखने का बिल्कुल मन न हो, तो कोई छोटा सा वाक्य ही लिख दें। अपनी सोच को पेपर पर उतारें, चाहे वह बिखरी हुई ही क्यों न हो। कई बार एक छोटी लाइन भी धीरे-धीरे एक पैराग्राफ और फिर एक पूरी कहानी बन जाती है। हर परिवार में भी यह समझा जा सकता है जैसे कोई काम बहुत बड़ा लगे तो उसे छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर किया जाता है, वैसे ही लिखने में भी छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं।
दूसरी बात यह है कि अपने आसपास एक ऐसा माहौल बनाएं जो आपको लिखने के लिए प्रेरित करे। बहुत बार हम देखते हैं कि घर में शोर-शराबा या उलझनों के बीच लिखना कठिन हो जाता है। ऐसे में एक शांत कोना ढूंढिए या कुछ समय के लिए अपने लिए एक निजी जगह बना लीजिए जहाँ सिर्फ आप और आपके विचार हों। परिवार के लोग भी जब समझते हैं कि यह समय आपका खुद का है, तो धीरे-धीरे वो भी सहयोग देने लगते हैं।
कई बार यह भी होता है कि हम सोचते हैं कि जब मूड बनेगा तब लिखेंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि मूड का इंतजार करने से कुछ नहीं होता। लिखने के लिए एक छोटा सा नियम बनाइए हर दिन कुछ न कुछ लिखना है, चाहे वो दो लाइनें ही क्यों न हों। जैसे परिवार में बच्चे को रोज़ पढ़ने की आदत डाली जाती है, वैसे ही खुद को भी लिखने की छोटी आदत डालनी होगी। आदत बनते ही लिखना बोझ नहीं बल्कि स्वाभाव बन जाएगा।
और सबसे जरूरी बात खुद से बहुत बड़ी उम्मीदें मत रखिए। कई बार हम सोचते हैं कि जो भी लिखें, वह बिल्कुल परफेक्ट होना चाहिए। पर इस सोच से हम शुरुआत ही नहीं कर पाते। लेखन एक यात्रा है, और इसमें गलतियाँ होना भी एक हिस्सा है। जैसे घर में छोटे-छोटे झगड़े होते हैं लेकिन फिर सब सुलझ जाते हैं, वैसे ही लिखते वक्त भी खुद को मौका देना चाहिए कि हम बिना डर के अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकें।
राइटिंग मोटिवेशन बढ़ाने का असली तरीका यह है कि हम लिखने को अपने जीवन का सहज हिस्सा बना लें जैसे खाना खाना, चलना-फिरना, बातें करना। जब लिखना रोज़मर्रा की जिंदगी का एक छोटा सा हिस्सा बन जाएगा, तब मोटिवेशन की जरूरत खुद ही कम हो जाएगी और लिखने का आनंद बार-बार लौटकर आएगा।