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Mother's Day Special: मदर्स डे पर पूरी दुनिया माँ के अटूट प्रेम और त्याग को सलाम करती है। लेकिन हमारे समाज में आज भी बहुत सी ऐसी चीजें हैं ऐसी बातें हैं जो कहीं न कहीं सवाल खड़े करती हैं जिनमे से एक सवाल जो अक्सर सामने आता है, क्या बच्चों की हर एक्टिविटी के लिए सिर्फ माँ को ही जिम्मेदार ठहराना सही है? जब बच्चे अच्छा करते हैं तो पूरा समाज गर्व करता है, लेकिन जब वे कोई गलती करते हैं तो उंगलियाँ सिर्फ माँ की तरफ क्यों उठती हैं?
बच्चों की हर एक्टिविटी के लिए क्या सच में माँ है जिम्मेदार?
भारतीय समाज में माँ को एक आदर्श और सर्वगुणसंपन्न भूमिका में देखा जाता है। माँ को 'पहला शिक्षक' कहा जाता है और यह बात सही भी है। वह बच्चे की शुरुआती परवरिश, संस्कार और सोच के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परंतु इस सच्चाई का यह मतलब नहीं कि बच्चों के हर व्यवहार, हर निर्णय और हर परिणाम की जिम्मेदारी केवल माँ पर ही डाली जाए।
आज के दौर में जहाँ दोनों माता-पिता कामकाजी होते हैं या फिर बच्चे स्कूल, कोचिंग, सोशल मीडिया और दोस्तों के प्रभाव में बड़े होते हैं, वहाँ सिर्फ माँ को जिम्मेदार ठहराना एकतरफा और अन्यायपूर्ण सोच को दर्शाता है। एक बच्चे के विकास में पिता, शिक्षक, समाज और यहाँ तक कि बच्चे का स्वयं का दृष्टिकोण भी बराबर का योगदान देता है।
जब बच्चा स्कूल में अव्वल आता है, तो पिता उसे इनाम देते हैं, रिश्तेदार उसकी तारीफ करते हैं। लेकिन अगर वह किसी गलत संगति में पड़ जाए, तो माँ पर उंगली उठती है, “उसने ध्यान नहीं दिया,” या “माँ ने सही परवरिश नहीं दी।” यह सोच हमें माँ की भूमिका को एक बोझ में बदल देती है।
इस सोच का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि माँ खुद को हर गलती का जिम्मेदार मानने लगती है। वह आत्मग्लानि में चली जाती है और खुद को दोषी समझने लगती है, जबकि कई बार परिस्थितियाँ उसके नियंत्रण से बाहर होती हैं। इसके अलावा, बच्चों में भी यह सोच पनपने लगती है कि उनके हर काम की जिम्मेदारी माँ की है, जिससे वे खुद अपनी जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं।
हमें यह समझने की ज़रूरत है कि एक बच्चे की परवरिश एक सामूहिक प्रयास है। माँ इसमें मुख्य व्यक्तित्व है, लेकिन अकेली नहीं। पिता की भागीदारी, शिक्षकों का मार्गदर्शन और समाज का वातावरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
माँ को सम्मान देना और उनकी मेहनत को सराहना जरूरी है, लेकिन उन्हें हर छोटी-बड़ी बात के लिए दोष देना सरासर गलत है। बच्चों की परवरिश एक साझेदारी है, जिसमें हर किसी की जिम्मेदारी बनती है। इस मदर्स डे पर यह संकल्प लें कि हम माँ को सराहें, समझें और उनका बोझ साझा करें, न कि सिर्फ उनसे एक्सपेक्टेशन रखें।