2024 Elections: 2024 में जनरल इलेक्शंस आ रहे हैं जिनकी तैयारी अभी से ही शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि यह चुनाव अप्रैल और मई के बीच में हो सकते हैं। देश की आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन अब भी जब चुनाव में मुद्दों की बात आती है तो महिलाओं के उपर कम बात की जाती है। अगर बात होती भी है तो वह सिर्फ चुनाव के दिनों में होती है क्योंकि पार्टियों को वोट चाहिए होती है। उसके बाद सब पहले जैसा हो जाता है। जब बजट पेश होता है तब भी महिलाओं के लिए नाम की स्कीम पेश होती हैं। इन सब बातों का भाव यह है कि महिलाओं के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जाता। आज हम बात करेंगे कि इस बार के चुनाव में महिलाओं के मुद्दे क्या होने चाहिए?
2024 चुनाव में महिलाओं से जुड़े इन मुद्दों पर होनी चाहिए बात
Menstrual Leave
पिछले कुछ दिनों में औरतों से जुड़ा एक मुद्दा बहुत चर्चा में आया था जिसमें इस बात को उठाया जा रहा है कि महिलाओं को मेंस्ट्रूअल लीव मिलनी चाहिए या नहीं। इस बार इलेक्शंस में यह मुद्दा जरूर उठना चाहिए। लोकसभा मेंबर स्मृति ईरानी जी ने कहा था कि महावारी कोई बाधा नहीं है कि जिस की महिलाओं को छुट्टी मिलनी चाहिए। मेंसुरेशन की बात की जाए तो हर महिला का अपना एक अलग अनुभव होता है, कुछ महिलाएं पीरियड्स के दौरान ऑफिस या काम पर जाने में सहज महसूस करती हैं लेकिन कुछ इतने ज्यादा दर्द में होती हैं कि वह अपने बेड से भी नहीं उठ पाती। इस मुद्दे पर एक बिल्कुल अच्छे से डिबेट होनी चाहिए aur यह मुद्दा चुनाव में अहम होना चाहिए
Gender Pay Parity
जेंडर गैप के बारे में कोई बात नहीं करता लेकिन यह एक बहुत बड़ी समस्या है जो चुनाव का मुद्दा जरूर होना चाहिए। जब जॉब की बात आती है तब महिलाएं मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं लेकिन जब उनकी आय की बात आती है तो मर्दों को सिर्फ उनके जेंडर के कारण एक ही काम के लिए महिलाओं से ज्यादा अदा किया जाता है। महिलाओं के साथ ये बिल्कुल इंसाफ नहीं हो रहा है। ग्लोबल जेंडर गैप 2023 की रिपोर्ट के अनुसार 143 देशों में भारत का रैंक 127 है। इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इकोनामिक पार्टिसिपेशन और अपॉर्चुनिटी में प्रगति भारत के लिए एक चुनौती है। इस क्षेत्र में 36.7% जेंडर इक्वलिटी हासिल की गई है। जबकि वेतन और आय सामान्य में बढ़ोतरी देखी गई है लेकिन अभी भी यह समान नहीं है।
Women's Safety
महिलाओं की सेफ्टी आज भी बहुत बड़ा मुद्दा है। यह नहीं कहा जा सकता कि इलेक्शंस में इस मुद्दे को नहीं उठाया जाता लेकिन उसके बाद भी महिलाएं अब भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। आज आप अगर किसी महिला से पूछेंगे कि वह रात को बिना डरे हुए ट्रैवल या फिर बाहर निकल सकती है तो उनका जवाब 'नहीं' होगा। उनके मन में एक अजीब डर है। जब तक वह डर खत्म नहीं होता तब तक महिला सेफ नहीं है। आज भी महिलाओं को अपने सुरक्षा कानून के बारे में जागरूकता नहीं है। उनके पास इतनी सुविधा नहीं है कि वह खुद को जागरुक कर सके। संविधान में महिलाओं की सेफ्टी के लिए कानून दिए गए हैं लेकिन कानून भी तब मदद कर पायेगा अगर वह महिलाएं अपनी समस्या की पुलिस थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाएंगी। बहुत सारी महिलाएं समाज के डर से रिपोर्ट को दर्ज ही नहीं करवा पाती। बिलकिस बानो केस को उदाहरण के तौर पर ले लेते हैं। 2002 में उनके साथ उत्पीड़न हुआ। 2008 में मुंबई की ट्रायल कोर्ट की तरफ से उनके दोषियों का आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 2022 में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों को रिहा कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई की रद्द कर दी है। एक महिला को न्याय पाने के लिए कितने ही साल लग जाते हैं। सरकार को इस पर भी ध्यान देना होगा।
Education
सरकार की तरफ से बहुत सारे अभियान और स्कीम महिलाओं की पढ़ाई के लिए लांच की गई है और उस पर काम भी चल रहा है। मुद्दा यह है कि अभी भी पूरी तरह से भारत की महिलाएं शिक्षित नहीं है। देश के ऐसे बहुत सारे क्षेत्र हैं जहां अभी भी महिलाएं अनपढ़ हैं या उन्हें पढ़ने नहीं दिया जाता है। इस बार के चुनाव में इस बात को भी निश्चित किया जाना चाहिए कि हर घर में महिला का शिक्षित होना लाजमी है। ग्रामीण क्षेत्र में देखा जाए तो लड़कों से लड़कियों का लिटरेसी रेट कम है। आंकड़े भी दिखाते हैं भारत मैं अभी भी 145 मिलियन महिलाएं ना लिख पाती है ना पढ़ पाती है। राजस्थान के कई इलाकों में महिलाओं को पानी लाने के लिए घर से बाहर बहुत दूर जाना पड़ता है, जिस कारण उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजा जाता इसके साथ ही आज भी हम पितृसत्ता समाज में रहते हैं जहां पर लड़की के ज्यादा पढ़ने लिखने पर जोर नहीं दिया जाता।
यह कुछ बेसिक मुद्दे हैं जिनके ऊपर चुनाव में बात होनी चाहिए लेकिन मुद्दे यहीं खत्म नहीं होते हैं। हर क्षेत्र में चाहे वह साइंस, टेक्नोलॉजी या हेल्थ, सभी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए। उन्हें एक समान मौके मिलने चाहिए। उनके लिए कुछ सीटें आरक्षित होनी चाहिए। इसके साथ ही महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, यौन सेहत और अपने हकों के प्रति जागरूक करना चाहिए।