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टैबू रहा है, इसके बारे में बातें करने से हमारा समाज हमेशा कतराता है। या बातें होती भी है तो चुप-चाप, बंद दीवारों के अंदर। जबकी सेक्स तो इंसान की बायोलाॅजीकल जरूरतों में आता है जैसे कि हवा और पानी। हमारे समाज में अविवाहित महिलाओं को तो सेक्स की बातें करने से दूर रखा ही जाता है लेकिन यही हाल शादीशुदा औरतों का भी है। तो आइए जानते हैं कि शादीशुदा महिलाएँ सेक्स की बातें करने से अपने पति से अपनी जरूरतें साझा करने से घबराती क्यों हैं?
शादीशुदा महिलायें अपनी जरूरतें इसलिए नहीं बता पाती क्योंकि उनके दिमाग में ये बातें डाल दी गई हैं उन्हें कंडीशन कर दिया गया है कि सेक्स अच्छी चीज़ नहीं और इसकी बातें 'अच्छे घर की औरतें' नहीं करती। अपनी ज़रूरतों के बारे में बताने से उन्हें सोसाइटी से 'slut-shaming' का हर वक़्त डर बना रहता है। वे सेक्स को हमारी बायोलाॅजीकल नीड की तरह समझ ही नहीं पाती।
भारतीय समाज में सेक्स को इतना ज्यादा taboo टाॅपिक माना जाता है कि इसके बारे में बातें करने से कुँवारे और शादीशुदा दोनो ही लोग कतराते हैं। बचपन से ही हमारी दादी-नानी और माता-पिता लड़कों को लड़कियों से और लड़कियों को लड़कों से प्यूबर्टी के बाद दूर रखना शुरु कर देते हैं। यहाँ तक की कितनी ही लड़कियों को पीरियड(Periods) की जानकारी नहीं होती और उनका पहला पीरियड उनके लिये एक शॉक से कम नहीं होता। ऐसे में हम सेक्स जैसी बायोलाॅजीकल जरूरतों को दबाना सीख जाते हैं। और यही माइंडसेट शादी के बाद भी चलता रहता है।
शादीशुदा औरतें भी अपने पार्टनर से खुलकर अपनी जरूरतें नहीं बता पाती जिसका नतीजा होता है कि उनका चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है, वे नाखुश रहतीं हैं और इसका कारण का उन्हें आभास नहीं होता।
सेक्स के बारे में ऐसे समझें जैसे कि खाना, हवा और पानी। जैसे की खाना खाना या सांस लेना हमारी बुनियादी जरुरत है वैसे ही सेक्स भी। यह हर इंसान और जीव की बायोलाॅजीकल ज़रूरतों का हिस्सा है। यह बुरा नहीं और सेक्स के बारे में सोचना या क्रेव करना पूरी तरह प्राकृतिक(natural) है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि जैसे जैसे हम अवेयर और सशक्त होते जा रहें है उस तरह एक महिला को शेम करने वाली इन चीज़ों को बदलें। यह समझें की सेक्स जैसी एक बुनियादी ज़रुरत के लिये कैसे सदियों से औरतों को दबाया और शेम किया जाता रहा है।
रिसर्च से पता चला है की जो कपल खुलकर अपनी सेक्सुअल जरूरतों के बारे में एक दूसरे को बताते रहते हैं वे ज्यादा खुश और संतुष्ट रहते हैं। इसलिए अपने पार्टनर को अपनी जरूरतें और ख्वाईश(Fantasy) बताने की। यह आपके लिये खुद में एक liberate करने वाली फीलिंग होगी।
जब आप एम्पाॅवर और अवेयर हों तो आपकी जिम्मेदारी बनती है की अपने साथ की और महिलाओं और पुरुषों को भी यह जानकारी दें और उन्हें जागरुक करें। तभी हमारे समाज में भी जागरुकता आयेगी और सेक्स को बन्द दिवारों के पीछे नहीं खुलकर एक हैल्दी डिसकशन का रुप मिलेगा। तभी हमारे बच्चे भी इसके बारे में इंटरनेट या दोस्तों के ज्यादा अपने माता पिता से सही जानकारी ले सकेंगे।
अगर सेक्स को लेकर जागरुकता बढ़ेगी तो औरतों पर हो रहे रेप जैसे क्राइम भी रुकेंगे। इसलिए आगे बढ़े और खुलकर एक हैल्दी सेक्सुअल डिसकशन को बढ़ावा दें।
ऐसा क्यों होता है?
शादीशुदा महिलायें अपनी जरूरतें इसलिए नहीं बता पाती क्योंकि उनके दिमाग में ये बातें डाल दी गई हैं उन्हें कंडीशन कर दिया गया है कि सेक्स अच्छी चीज़ नहीं और इसकी बातें 'अच्छे घर की औरतें' नहीं करती। अपनी ज़रूरतों के बारे में बताने से उन्हें सोसाइटी से 'slut-shaming' का हर वक़्त डर बना रहता है। वे सेक्स को हमारी बायोलाॅजीकल नीड की तरह समझ ही नहीं पाती।
सेक्स से दूर रहने का माइंडसेट
भारतीय समाज में सेक्स को इतना ज्यादा taboo टाॅपिक माना जाता है कि इसके बारे में बातें करने से कुँवारे और शादीशुदा दोनो ही लोग कतराते हैं। बचपन से ही हमारी दादी-नानी और माता-पिता लड़कों को लड़कियों से और लड़कियों को लड़कों से प्यूबर्टी के बाद दूर रखना शुरु कर देते हैं। यहाँ तक की कितनी ही लड़कियों को पीरियड(Periods) की जानकारी नहीं होती और उनका पहला पीरियड उनके लिये एक शॉक से कम नहीं होता। ऐसे में हम सेक्स जैसी बायोलाॅजीकल जरूरतों को दबाना सीख जाते हैं। और यही माइंडसेट शादी के बाद भी चलता रहता है।
शादीशुदा औरतें भी अपने पार्टनर से खुलकर अपनी जरूरतें नहीं बता पाती जिसका नतीजा होता है कि उनका चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है, वे नाखुश रहतीं हैं और इसका कारण का उन्हें आभास नहीं होता।
सेक्स गलत नहीं बल्कि हमारी ज़रूरतों का एक हिस्सा है।
सेक्स के बारे में ऐसे समझें जैसे कि खाना, हवा और पानी। जैसे की खाना खाना या सांस लेना हमारी बुनियादी जरुरत है वैसे ही सेक्स भी। यह हर इंसान और जीव की बायोलाॅजीकल ज़रूरतों का हिस्सा है। यह बुरा नहीं और सेक्स के बारे में सोचना या क्रेव करना पूरी तरह प्राकृतिक(natural) है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि जैसे जैसे हम अवेयर और सशक्त होते जा रहें है उस तरह एक महिला को शेम करने वाली इन चीज़ों को बदलें। यह समझें की सेक्स जैसी एक बुनियादी ज़रुरत के लिये कैसे सदियों से औरतों को दबाया और शेम किया जाता रहा है।
झिझकें नहीं, अपने पार्टनर को खुलकर अपनी जरूरतें बताएं
रिसर्च से पता चला है की जो कपल खुलकर अपनी सेक्सुअल जरूरतों के बारे में एक दूसरे को बताते रहते हैं वे ज्यादा खुश और संतुष्ट रहते हैं। इसलिए अपने पार्टनर को अपनी जरूरतें और ख्वाईश(Fantasy) बताने की। यह आपके लिये खुद में एक liberate करने वाली फीलिंग होगी।
अपने आसपास के महिलाओं और पुरुषों को भी एजुकेट करें
जब आप एम्पाॅवर और अवेयर हों तो आपकी जिम्मेदारी बनती है की अपने साथ की और महिलाओं और पुरुषों को भी यह जानकारी दें और उन्हें जागरुक करें। तभी हमारे समाज में भी जागरुकता आयेगी और सेक्स को बन्द दिवारों के पीछे नहीं खुलकर एक हैल्दी डिसकशन का रुप मिलेगा। तभी हमारे बच्चे भी इसके बारे में इंटरनेट या दोस्तों के ज्यादा अपने माता पिता से सही जानकारी ले सकेंगे।
अगर सेक्स को लेकर जागरुकता बढ़ेगी तो औरतों पर हो रहे रेप जैसे क्राइम भी रुकेंगे। इसलिए आगे बढ़े और खुलकर एक हैल्दी सेक्सुअल डिसकशन को बढ़ावा दें।