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प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत ना हो इसीलिए कई तरह के टेस्ट होते हैं। इस टेस्ट को मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट कहते हैं।
मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट में कई तरह के टेस्ट होते हैं जो प्रेग्नेंट महिला को रिकमेंड किएं जाते है। कुछ टेस्ट शिशु के हेल्थ कंडीशन या chromosomal abnormalities को देखने के लिए किएं जाते है। हालांकि कई बार प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले टेस्ट से प्रेगनेंसी या शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
1. पहला ट्रिमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट दसवीं सप्ताह से शुरू हो जाते हैं। इस टेस्ट में ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड शामिल होता है।
• अल्ट्रासाउंड टेस्ट में शिशु का इमेज दिखाने के लिए साउंड वेव का इस्तेमाल किया जाता है।
• इस अल्ट्रासाउंड टेस्ट से आपको आपके शिशु का आकार और पोजीशन पता चलता है। साथ ही यह भी कि आपके शिशु का हेल्थ कंडीशन सही है कि नहीं।
• इसके अलावा नुचल ट्रांस्लुएंसी अल्ट्रासाउंड भी होता है जिसमें देखा जाता है कि शिशु को डाउन सिंड्रोम का कोई खतरा है कि नहीं।
• ब्लड टेस्ट में दो टेस्ट होते हैं जिसमें आपके ब्लड के सब्सटेंस के लेवल का मेजर किया जाता है। साथ ही एचआईवी या अन्य तरह की बीमारी और RH फैक्टर का जांच किया जाता है।
2. दूसरा ट्रिमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट यह टेस्ट 14 और 18 सप्ताह के बीच में होता है।
• इसमें भी अल्ट्रासाउंड टेस्ट होता है लेकिन इसमें शिशु को सर से लेकर पैर तक एग्जामिन किया जाता है। ताकि पता लगाया जा सके कि आपके बच्चे को कोई दिक्कत है कि नहीं।
• इसमें भी ब्लड टेस्ट और साथ में ग्लूकोस स्क्रीनिंग टेस्ट होता है। इसमें देखा जाता है कि आपको गेस्टेट्जनल डायबिटीज की दिक्कत है कि नहीं। क्योंकि गेस्टेट्जनल डायबिटीज के कारण शिशु को डिलीवरी वक्त कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
3. तीसरा स्क्रीनिंग टेस्ट से पता लगाया जाता है कि कहीं प्रेग्नेंट वूमेन को जी बी एस से खतरा तो नहीं है। जीबीएस के कारण शायद आपको कोई हानि ना पहुंचे लेकिन आपके बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है।
मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट क्या है?
मैटरनल स्क्रीनिंग टेस्ट में कई तरह के टेस्ट होते हैं जो प्रेग्नेंट महिला को रिकमेंड किएं जाते है। कुछ टेस्ट शिशु के हेल्थ कंडीशन या chromosomal abnormalities को देखने के लिए किएं जाते है। हालांकि कई बार प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले टेस्ट से प्रेगनेंसी या शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
यह टेस्ट कब होते हैं ?
1. पहला ट्रिमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट दसवीं सप्ताह से शुरू हो जाते हैं। इस टेस्ट में ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड शामिल होता है।
• अल्ट्रासाउंड टेस्ट में शिशु का इमेज दिखाने के लिए साउंड वेव का इस्तेमाल किया जाता है।
• इस अल्ट्रासाउंड टेस्ट से आपको आपके शिशु का आकार और पोजीशन पता चलता है। साथ ही यह भी कि आपके शिशु का हेल्थ कंडीशन सही है कि नहीं।
• इसके अलावा नुचल ट्रांस्लुएंसी अल्ट्रासाउंड भी होता है जिसमें देखा जाता है कि शिशु को डाउन सिंड्रोम का कोई खतरा है कि नहीं।
• ब्लड टेस्ट में दो टेस्ट होते हैं जिसमें आपके ब्लड के सब्सटेंस के लेवल का मेजर किया जाता है। साथ ही एचआईवी या अन्य तरह की बीमारी और RH फैक्टर का जांच किया जाता है।
2. दूसरा ट्रिमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट यह टेस्ट 14 और 18 सप्ताह के बीच में होता है।
• इसमें भी अल्ट्रासाउंड टेस्ट होता है लेकिन इसमें शिशु को सर से लेकर पैर तक एग्जामिन किया जाता है। ताकि पता लगाया जा सके कि आपके बच्चे को कोई दिक्कत है कि नहीं।
• इसमें भी ब्लड टेस्ट और साथ में ग्लूकोस स्क्रीनिंग टेस्ट होता है। इसमें देखा जाता है कि आपको गेस्टेट्जनल डायबिटीज की दिक्कत है कि नहीं। क्योंकि गेस्टेट्जनल डायबिटीज के कारण शिशु को डिलीवरी वक्त कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
3. तीसरा स्क्रीनिंग टेस्ट से पता लगाया जाता है कि कहीं प्रेग्नेंट वूमेन को जी बी एस से खतरा तो नहीं है। जीबीएस के कारण शायद आपको कोई हानि ना पहुंचे लेकिन आपके बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है।