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जानिए नवरात्री के छठे दिन क्यों करते है देवी कात्यायनी देवी की पूजा

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Swati Bundela
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क्यों की जाती है छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा ?


मान्‍यता है कि महर्षि कात्‍यायन की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्‍म लिया था. इसलिए उन्‍हें कात्‍यायनी कहा जाता है. मां कात्‍यायनी को ब्रज की अधिष्‍ठात्री देवी माना जाता है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्‍ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्‍यायनी की ही पूजा की थी. कहते हैं, मां कात्‍यायनी ने ही अत्‍याचारी राक्षस महिषाषुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त करवाया था. माँ कात्ययायनी देवी की पूजा करने से भक्तों को हर दुःख से मुक्ति मिलती है।
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मां कात्‍यायनी का रूप


मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकदार और भव्य है. इनकी चार भुजाएं हैं. मां कात्यायनी के दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है. बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल होता है. मां कात्‍यायनी शेर की सवारी करती हैं। माँ कात्यायनी के मुख पर एक अलग ही तेज होता है।
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माँ कात्यायनी की पूजा


मां कात्‍यायनी का मनपसंद रंग लाल है. ऐसी मान्‍यता है कि माँ कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से वह बेहद प्रसन्‍न होती हैं. नवरात्रि के छठे दिन पूजा करते वक्‍त मां कात्‍यायनी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है. माँ कात्यायनी को लाल मेहंदी, चूड़ियाँ और लाल बिंदी भी चढ़ाई जाती है।
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देवी कात्यायनी
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